बालाघाट: घटिया चावल के बाद अब गरीबों के लिए आया सड़ा हुआ गेहूं

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बांटने के लिए सीहोर से बालाघाट लाया गया 26 हजार क्विंटल सड़ा गेहूं, बवाल बढ़ता देख कलेक्टर ने लगाई वितरण पर रोक

Updated: Jan 14, 2021, 07:45 AM IST

Photo Courtesy: Naidunia
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बालाघाट। मध्य प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत पहले जहां गरीबों के लिए जानवरों को खिलाने वाला चावल भेजा गया था वहीं अब पीडीएस के तहत पॉल्ट्री ग्रेड गेहूं धड़ल्ले से भेजा जा रहा है। मामले का खुलासा बालाघाट में हुआ जहां रेलवे रैक से 26 हजार क्विंटल बुरी तरह से सड़ा हुआ गेहूं भेजा गया है। यह गेहूं पीडीएस के तहत गरीबों को बांटने के लिए भेजा गया है।

जानकारी के मुताबिक मालगाड़ी से जब यह गेहूँ उतारा गया तो उसमें से दुर्गंध आ रही थी। गेहूं पूरी तरह सड़ा व घुन लगा हुआ था। इसके बावजूद नागरिक आपूर्ति निगम ने भी माल भंडारगृहों में रखवा लिया। एक प्रमुख हिंदी अखबार ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से बताया कि 11 जनवरी को सीहोर से यहां आए गेहूं में घुन इतना ज्यादा लग चुका था कि वह आटे जैसा हो गया था। कुछ बोरियों में सड़े गेहूं के बीच कीड़े बिलबिलाते भी दिखाई दे रहे थे। अधिकांश बोरियों में डस्ट था वहीं कुछ बोरियों का गेहूं लुगदी जैसा बन गया था।

मामला तूल पकड़ता देख बालाघाट कलेक्टर दीपक आर्य ने इस गेंहू के वितरण पर रोक लगा दी है। क्लेक्टर ने बुधवार को नागरिक आपूर्ति निगम के जिला प्रबंधक को निर्देश दिया है कि उचित मूल्य दुकानों में इसकी वितरण पर तत्काल रोक लगाई जाए और इसे गोदाम में अलग से रखा जाए। हालांकि, अबतक इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है कि इसमें से कितना गेहूं बांटने के लिए भेजा जा चुका है।

हैरान करने वाली बात यह है कि दो दिन पहले ही जिस नागरिक आपूर्ति निगम ने सड़े हुए गेंहू को स्वीकार किया था अब उसे ही इसकी गुणवत्ता जांचने को भी कहा गया है। मालगाड़ी के 42 डिब्बों में 52 हजार बोरियों में आए इस गेहूं की कीमत करीब पांच करोड़ रुपए बताई जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सड़े हुए गेहूं सुदूर आदिवासी इलाकों में बांटी भी गई है और अब भी इसे आदिवासी इलाकों में खपाया जा रहा है। 

गौरतलब है कि बालाघाट जिले में शासकीय उचित मूल्य की राशन दुकानों से गरीबों की थाली में एक रुपये किलो की दर से पहुंचाए जाने वाले शासकीय राशन को लेकर लगातार सवालियां निशान लगते रहे हैं। हाल ही में यहां राशन दुकानों से वितरित किए जाने वाले चावल को केंद्रीय टीम ने जांच के बाद खाने के लायक नहीं बताया था। यह स्थिति सिर्फ बालाघाट ही नहीं मध्यप्रदेश के दर्जनों जिलों से लगातार इस तरह की खबरें आती रहती है बावजूद इसके खुद को गरीबों का बेटा बताने वाले सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कोई ठोस कदम उठाने की जहमत नहीं ली।