मध्य प्रदेश में महंगा साबित हो रहा है नया मंडी कानून, ठगी के शिकार 48 किसान

मध्यप्रदेश में मंडी के बाहर अनाज बेचने वाले किसानों के साथ हुई ठगी के कुल 48 मामले सामने आए हैं, जिनमें केवल तीन मामलों का ही निपटारा हो सका है

Updated: Dec 24, 2020, 10:36 PM IST

Photo Courtesy: Business Standard
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भोपाल। हम सीधे किसानों से संवाद कर रहे हैं, फिर ज़ोर देकर कहना चाहूंगा, तीनों कृषि कानून किसानों के हित में हैं और उनका लाभ मिल रहा है।"... पिपरिया के किसानों से राइस की कंपनी ने तय किया था कि हम 3 हज़ार रुपए प्रति क्विंटल धान खरीदेंगे। ये अनुबंध पालन नहीं किया तो एसडीएम ने कार्रवाई की और कंपनी को देना पड़ा। किसान को न्याय मिल रहा है इन कानूनों के तहत। इसलिए कांग्रेस भ्रमित न करे।...
 - शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश 

ये कथन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का है, जो उन्होंने 14 दिसंबर को मीडिया से चर्चा के दौरान कहा था। अब शिवराज के इन कथित दावों में कितनी हकीकत है, यह भी जान लेना जरूरी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान केंद्र सरकार के कृषि कानूनों को किसानों के हित में होने का दावा करते हुए होशंगाबाद के एक किसान का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि केंद्र के कृषि कानूनों का प्रदेश के किसान काफी लाभ उठा रहे हैं (इसमें मई महीने में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा लागू किया गया मॉडल मण्डी एक्ट भी शामिल है)।

48 मामले, जब किसान नए कृषि कानूनों की वजह से ठगी का शिकार हुए

इस तकरीर के बाद तस्वीर का दूसरा पहलू जानिए। किसान संगठनों और किसानों के लिए काम कर रहे संगठनों का दावा है कि मध्य प्रदेश में नए कृषि कानूनों के लागू होने के बाद अब तक कुल 48 ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें किसानों ने मंडी के बाहर अपना अनाज बेचा और ठगी के शिकार हुए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दावों की मुखालिफत करता वेबसाइट, न्यूज़ क्लिक का आंकड़ा यह बताता है कि 48 ठगी के मामलों में से केवल तीन ही ऐसे मामले हैं, जिनमें किसानों को इंसाफ मिल सका है। जबकि 45 किसान अभी भी दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। 

मंडी के बाहर अनाज को बेचा इसलिए पांच महीने से पैसों के लिए दौड़ रहा हूं 

गुना ज़िले के रहने वाले मनोज धाकड़ (25 वर्षीय) कह रहे हैं कि मंडी के बाहर अनाज को बेचा इसलिए पांच महीने से पैसों के लिए दौड़ रहा हूं। मनोज धाकड़ गुना ज़िले के उन 13 किसानों में शामिल हैं जो एक व्यापारी के द्वारा ठगे गए हैं। नए कृषि कानूनों के लागू होने के बाद अपनी फसल पर अच्छे दाम मिलने की उम्मीद में गुना ज़िले के जमरा गांव के रहने वाले कुल 13 किसानों ने मंडी के बाहर एक व्यापारी को अपनी फसल लगभग 20 लाख रुपए में बेची थी। पांच महीने से ज़्यादा का समय हो चुका है। सभी 13 किसान अभी भी अपनी फसल की कीमत पाने के इंतज़ार में हैं। 

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मनोज धाकड़ पिछले 6 महीनों से कलेक्टर और ज़िले के पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में भटक रहे हैं लेकिन अभी तक धाकड़ को उनकी फसल पर एक लाख बीस हजार रूपए का भुगतान नहीं हुआ है। मनोज धाकड़ ने देवेंद्र अग्रवाल को इसी साल 9 जून को अपने अनाज की बिक्री की थी।

राम कृष्ण एक अन्य किसान हैं जो यह दावा करते हैं कि उन्होंने देवेंद्र अग्रवाल नामक उसी व्यापारी को आठ लाख रुपए के भुगतान के समझौते पर अपनी फसल बेची थी। राम कृष्ण धाकड़ बताते हैं कि अग्रवाल ने तीन लाख रुपए कैश में भुगतान किया था। इसके बाद दो लाख और डेढ़ लाख  रुपए के कुल दो चेक अग्रवाल ने दिए थे। लेकिन बैंक ने इन दोनों चेक को हस्ताक्षर में खामी के चलते अस्वीकृत कर दिया गया। राम कृष्ण धाकड़ के पास 25 एकड़ की भूमि का स्वामित्व है। 

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राम कृष्ण धाकड़ बताते हैं कि इस धोखाधड़ी के बाद उन्होंने पुलिस में आईपीसी की धारा 420 के तहत फसल खरीदने वाले व्यापारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। लेकिन व्यापारी ने रामकृष्ण को डराने धमकाने के लिए अपने गुंडों को भेज दिया और रामकृष्ण को मुकदमा वापस नहीं लेने पर जान से मारने की धमकी देकर चले गए। धाकड़ बताते हैं कि हमें अलग अलग फोन नंबरों से कॉल आते हैं और जान से मार डालने की धमकी दी जाती है। व्यापारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुए चार महीने से ज़्यादा का समय बीत चुका है लेकिन किसानों से ठगी करने का आरोपी देवेंद्र अग्रवाल फरार है। अग्रवाल को मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ से ज़मानत मिली थी, जिसके बाद से ही वह फरार चल रहा है।

ऐसे ही 13 किसान मंडी के बाहर अपनी फसल बेचने का खामियाजा भुगत रहे हैं। जबकि नए कृषि कानूनों के तहत व्यापारियों को फसल खरीद के तीन दिन के भीतर किसानों को भुगतान करने का प्रावधान है। 

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 गुना कलेक्टर ने कहा कि यह सच है कि देवेंद्र अग्रवाल 13 किसानों से 20 लाख की खरीदी कर फरार हो गया है। गुना के कलेक्टर कुमार पुरषोत्तम का कहना है ठगी को अंजाम देने वाला व्यापारी राजस्थान का रहने वाला है। न तो गुना ज़िले में उसके पास कोई ज़मीन है और न ही उसके पास बैंक बैलेंस है। पैसों के नाम पर उसके बैंक खाते में महज़ 400 रुपए हैं। (ज्ञात हो कि नए कृषि कानूनों के तहत व्यापारी और किसान को देश के किसी भी कोने में फसल बेचने और खरीदने की छूट है)

हालांकि कलेक्टर कुमार पुरषोत्तम के अनुसार देवेंद्र अग्रवाल ने किसानों से अप्रैल महीने में फसल खरीदी थी, चूंकि किसानों और उसके बीच कोई एग्रीमेंट नहीं हुआ था लिहाज़ा व्यापारी को दण्डित करना कठिन है। लेकिन दूसरी तरफ पुलिस को की गई शिकायत में किसानों का कहना है कि उन्होंने 9 जून को ही फरार व्यापारी देवेंद्र अग्रवाल को अपनी फसल बेची थी। 

किसानों के साथ बढ़ते ठगी के मामलों पर संज्ञान लेते हुए राज्य मंडी बोर्ड ने बोर्ड के ज्वाइंट डायरेक्टरों से मामलों को ट्रैक करने के लिए कहा है। खुद मंडी बोर्ड के मैनेजिंग डायरेक्टर संदीप यादव ने इस बात की पुष्टि की है। 

ऐसे ही मामले होशंगाबाद, बालाघाट, जबलपुर, ग्वालियर और बड़वानी ज़िलों में भी देखने को मिले हैं। जिन तीन मामलों में किसानों को इंसाफ मिला उनमें होशंगाबाद का मामला भी है। जिसका ज़िक्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कर रहे हैं। हालांकि पिपरिया के किसान आज भी ऐसी शिकायतों के साथ भटकते मिल रहे हैं कि फॉर्च्यून नाम की कंपनी ने उन्हें धोखा दिया। 

होशंगाबाद, बड़वानी और जबलपुर में किसानों की रक्षा करने प्रशासन तो सामने आ गया लेकिन अभी भी कुल मामलों में 93 प्रतिशत से ज़्यादा मामले ऐसे हैं जिसमें किसान इंसाफ के इंतज़ार में दर दर की ठोकरें खा रहे हैं।

मध्यप्रदेश में राज्य सरकार मई महीने में मॉडल मंडी एक्ट लेकर आई थी। जिसके तहत बिना किसी लाइसेंस या फीस के प्राइवेट मंडियों को खोलने की अनुमति है। राज्य सरकार के मॉडल मंडी एक्ट की बदौलत प्रदेश की 47 मंडियों में अक्टूबर महीने में कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया। वहीं 143 मंडियों में कारोबार 50 से 60 फीसदी घट गया। जिन 69 मंडियों में कारोबार जारी रहा उसकी वजह यह रही कि मंडियों में सब्जी और फलों की आवक बनी रही। ( प्रदेश में कुल 259 मंडियां हैं और उनमें कारोबार में नरमी के आंकड़े राज्य सरकार की सरकारी वेबसाइट ई-अनुज्ञा के हैं। ) 

हालांकि राज्य सरकार का कृषि विभाग यह दावा करता है कि अक्टूबर में मंडियों में आवक इसलिए कम रही क्योंकि राज्य सरकार ने उस समय मंडी शुल्क को एक तिहाई तक घटाने की घोषणा की थी। लेकिन प्रदेश में उपचुनाव के कारण लगी आचार संहिता के कारण राज्य सरकार इस घोषणा को लागू नहीं कर पाई। इसलिए व्यापारी मंडी शुल्क कम होने के इंतज़ार में मंडियों तक नहीं पहुंचे। 

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शुल्क घटाने के राज्य सरकार के निर्णय के खिलाफ मंडी बोर्ड एसोसिएशन के संयोजक बीबी फौजदार ने 26 नवंबर को कृषि विभाग को पत्र लिखकर कहा था कि राज्य सरकार द्वारा मण्डी शुल्क घटाने के निर्णय की वजह से प्रदेश की मंडियों का टैक्स कलेक्शन घट गया है। इस निर्णय से पहले से ही आर्थिक बोझ झेल रही मंडियों पर और बुरा असर पड़ा है। क्योंकि मंडियों के पास अपने कर्मचारियों और पेंशनरों तक को वेतन भुगतान के पैसे नहीं बचे है।

बीबी फौजदार के मुताबिक, पिछले वर्ष के मुकाबले मंडियां केवल 36 फीसदी टैक्स ही जुटा पाई हैं। अप्रैल से अक्टूबर की अवधि में मंडियों में 220 करोड़ का टैक्स जुटाया गया है। जबकि पिछले वर्ष (अप्रैल 2019 से मार्च 2020) मंडियों ने 1200 करोड़ का टैक्स जुटाया था।

 बीते एक महीने से चल रहा किसान आंदोलन का सबसे बड़ा कारण यही गिनाया जा रहा है कि कृषि कानूनों के चलते मंडियां ठप हो जाएंगी। आंदोलनरत किसानों का कहना है कि शुरू में उन्हें व्यापारी अच्छे दाम देंगे लेकिन मंडियों के बाहर अनाज बेचे जाने के बाद जब मंडियां ठप हो जाएंगी। और तब निजी क्षेत्रों द्वारा किसानों का शोषण शुरू हो जाएगा। 

हालांकि मध्यप्रदेश सरकार का कृषि विभाग कहता है कि राज्य में मंडियों के बाहर किसान अपनी फसलों को एमएसपी से ज़्यादा और अच्छे दामों पर बेच रहे हैं। दूसरी तरफ कृषि विभाग खुद यह कहता है कि चूंकि किसानों ने फसल मंडी के बाहर बेचा है, लिहाज़ा उनका रिकॉर्ड रख पाना कृषि विभाग के लिए संभव नहीं है।