भोपाल के जहरीले तालाबों में हो रही सिंघाड़े की खेती, मीडिया रिपोर्ट्स से रहवासियों में खौंफ

यूनियन कार्बाइड के जहरीले तालाब में दबंगों द्वारा की जा रही है सिंघाड़े की खेती, मत्स्य पालन का भी कारोबार जारी, सोशल एक्टिविस्ट रचना ढींगरा में सिंघाड़ों को बताया जहरीला

Updated: Sep 24, 2021, 11:15 AM IST

भोपाल। बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड प्राइवेट कॉर्पोरेशन में घटित दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के 37 वर्ष बाद भी लोगों के मन में उस घटना को लेकर खौफ है। इसी बीच मीडिया रिपोर्ट्स ने जहरीले सिंघाड़े का दावा कर भोपालवासियों का खौफ और बढ़ा दिया है। दरअसल, यूनियन कार्बाइड के जहरीले तालाबों में सिंघाड़े की खेती हो रही है। दावा किया जा रहा है कि ये सिंघाड़े लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों ने इन दावों को सिरे से खारिज किया है।

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में अपुष्ट श्रोतों के हवाले से दवा किया जा रहा है कि यूनियन कार्बाइड के तालाबों में उगाए जा रहे सिंघाड़ा खाने से लोगों के मस्तिष्क और हार्ट पर दुष्प्रभाव होगा। मामला सामने आने के बाद बाजारों में बिक रहे सिंघाड़ों को लेकर लोग खौफजदा हो गए हैं। भोपाल ग्रुप फ़ॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा के मुताबिक जहरीले तालाबों में जो सिंघाड़े उगाए जा रहे हैं वह लोगों के लिए जानलेवा भी साबित हो सकते है। 

रचना ढींगरा के मुताबिक सरकारी व गैर सरकारी 17 अध्ययनों में पता चला है कि इन तालाबों में भारी मात्रा में रासायनिक कचरे दफ्न हैं। ढींगरा के मुताबिक ये इतने खतरनाक रसायन हैं कि मस्तिष्क, गुर्दे, हार्ट को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाते हैं। इसके साथ ही बच्चों के अंदर जन्मजात विकृति पैदा करने वाले रसायन भी तालाब के नीचे मौजूद हैं। ऐसे में इन तालाबों के सिंघाड़े और माछलियां खाना जानलेवा साबित हो सकता है।

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हालांकि, पर्यावरणविद डॉ सुभाष पांडेय के मुताबिक यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरों का सिंघाड़ों से कोई लेना देना नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि करीब 4 दशक पहले ये कचरे जमीन में काफी नीचे गाड़े गए हैं। डॉ पांडेय ने कहा, 'इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि तालाब के नीचे रासायनिक कचरों का प्रभाव सिंघाड़ों पर पड़ेगा। रासायनिक कचरे भूमि में नीचे की ओर जा सकते हैं, लेकिन सिंघाड़ों को दूषित करने के लिए उपर की ओर तो नहीं आ सकते।'

भूजल के लिए होगा खतरनाक: डॉ पांडेय

डॉ पांडेय ने सिंघाड़ों की खेती को भूजल के लिए खतरनाक बताया है। उन्होंने कहा कि रासायनिक कचरे तो पहले से भूजल को जहरीला कर रहे थे। अब सिंघाड़ों की खेती में उर्वरक का प्रयोग हो रहा होगा। ये रासायनिक उर्वरक तालाब में नीचे जाकर भूजल को जहरीला करेंगे। डॉ पांडेय के मुताबिक यदि इन तालाबों में अन्य अपशिष्ट पदार्थ डाले जा रहे हों, या स्थानीय लघु इंडस्ट्री के कचरे फेंके जा रहे हों, तब अवश्य सिंघाड़े जहरीले होंगे। 

1977 से 1984 के बीच भरा गया जहरीला कचरा

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड ने वर्ष 1977 से 1984 के बीच अपने कारखाने के पीछे लगभग 14 एकड़ भू-भाग पर तीन सौर्य वाष्पीकरण तालाबों (Solar Evaporation Ponds) का निर्माण कराया था। इन तालाबों को अत्यंत ज़हरीले कचरे के निराकरण के लिए बनाया गया था जिस कारण स्थानीय लोग इन्हें जहरीला तालाब भी कहते हैं। इनमें नीचे प्लास्टिक की एक मोटी लाइनिंग बिछाई गई थी। इन तालाबों को बनाने के पीछे मकसद था कि इनमें तरल रासायनिक कचरों को फेंका जाए ताकि वो गर्मियों में स्वयं ही वाष्पीकरण के द्वारा खत्म हो जाएंगी। बताया जाता है कि फैक्ट्री के अंदर भी लगभग 21 अन्य जगहों पर ऐसे जहरीले रासायनिक कचरों को दबाया गया है।

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भोपाल गैस हादसे के 2 वर्ष पहले अप्रैल 1982 में जब स्थानीय मवेशियों की आकस्मिक मौत की खबरें आने लगी तब पहली बार इस मामले में तूल पकड़ा। उसी वर्ष यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन को यह जानकारी दी कि तालाब में लगी उच्च घनत्व पॉलीथिन (High Density Polythene) फट रही है जिससे विषाक्त रसायन रिसकर वहां के भूजल में मिल रहे हैं। भारतीय विष विज्ञान संस्थान के मुताबिक भोपाल के 42 बस्तियों में 6 प्रकार के अत्यंत जहरीले रसायन पाए गए हैं। इन जैविक प्रदूषकों से तकरीबन एक लाख की आबादी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।