सोचा न था, सिंधिया ‘कुसी’ के लिए कांग्रेस को धोखा देंगे : दिग्विजय
मध्यप्रदेश में जारी राजनीतिक खींचतान के बीच कांग्रेस के वरिष्ठर नेता दिग्विजय सिंह ने भाजपा में शामिल होने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया पर तंज कसा है। दिग्विजय ने आक्रोशपूर्ण ट्वीट करते हुए कहा कि मैंने कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि महाराज कांग्रेस और गांधी परिवार को धोखा दे सकते हैं। वह भी किसके लिए- मोदी शाह के अंदर राज्यसभा की सीट और कैबिनेट मंत्री पद ले लिए।
भोपाल।
ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा कांग्रेस छोड़ देने पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में आक्रोश हैं। वे लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके समर्थक नेता भी असमंजस में हैं कि वे व्यक्तिगत निष्ठा निभाएं या विचारधारा का साथ दें। इस बीच वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने दिल की बात कही है। उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट कर कहा कि मैं सत्ता से बाहर रहा और कांग्रेस पार्टी के लिए 2004 से 2014 तक काम किया, इस तथ्य के बावजूद कि मुझे मंत्रिमंडल में शामिल होने और राज्यसभा में जाने की पेशकश की गई थी लेकिन मैंने विनम्रता से मना कर दिया। मैं अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से आसानी से लोकसभा में आ सकता था लेकिन मैंने मना कर दिया और कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली। क्यों? क्योंकि मेरे लिए विश्वसनीयता और विचारधारा अधिक महत्वपूर्ण है जो दुर्भाग्य से भारतीय राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गई है। दुखद है।
I never expected Maharaj (Sorry as I myself come from a feudal background I don't address him as Jyotiraditya) to cross over and ditch Congress and Gandhi Family and for what? Rajya Sabha and Cabinet berth under ModiShah? Sad never expected this from him.
— digvijaya singh (@digvijaya_28) March 14, 2020
But I politely declined. I could have easily come to Lok Sabha from Rajgarh my home constituency but I declined and got Congress candidate win. Why? Because to me credibility and ideology is more important which unfortunately has disappeared from Indian Political Scene. Sad.
— digvijaya singh (@digvijaya_28) March 14, 2020
Will serve Congress till last breath: Digvijaya Singh | Bhopal News - Times of India
— digvijaya singh (@digvijaya_28) March 14, 2020
I stayed out of Power and worked for Congress Party from 2004 to 2014, in spite of the fact that I was offered to join the Cabinet and get into Rajya Sabha. https://t.co/QAykuIED5B
सत्ता की भूख अधिक बढ़ी हो गई
मैंने कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि महाराज (क्षमा करें, क्योंकि मैं खुद एक रियासती पृष्ठभूमि से आता हूं, मैं उन्हें ज्योतिरादित्य कह कर संबोधित नहीं कर सकता) कांग्रेस और गांधी परिवार को धोखा देंगे और किसके लिए! राज्यसभा और कैबिनेट मंत्री बनने मोदीशाह के नेतृत्व में? दुःखद है कभी भी उनसे यह उम्मीद नहीं करता था। लेकिन फिर कुछ लोगों के लिए पॉवर ऑफ हंगर (सत्ता की भूख), विश्वसनीयता और विचारधारा जो एक स्वस्थ लोकतंत्र का सार है से अधिक महत्वपूर्ण है।
संघ की प्रतिबद्धता का प्रशंसक
मैं संघ / भाजपा से बिलकुल सहमत नहीं हूँ लेकिन उनकी विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की प्रशंसा करता हूँ। आरएसएस 1925 से 90 के दशक तक अपने अंतिम लक्ष्य "हिंदू राष्ट्र" को भुलाए बगैर दिल्ली में सत्ता में आने के लिए इंतजार किया। उन्होंने सफलतापूर्वक समाजवादियों और विशेष रूप से जेपी और अब नीतीश को आरएसएस प्रचारक को पीएम बनाए जाने के अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मूर्ख बनाया है। मैंने ऐसे आरएसएस कार्यकर्ताओं को भी देखा है जिन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर अपने परिवार को संघ के लिए काम करने के लिए छोड़ दिया। लेकिन अब आरएसएस के नए प्रचारक बदल गए हैं। नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रचारकों की इस नई नस्ल का सबसे शानदार उदाहरण हैं। मैं नरेंद्र मोदी जी का प्रशंसक नही हूँ बल्कि उनके सबसे कटु आलोचकों में से एक हूँ, लेकिन हर मुद्दे और हर अवसर पर बिना कोई समझौता किए देश को ध्रुवीकृत करने के उनके साहस के प्रयास की प्रशंसा करता हूं। ऐसा करते वक़्त उन्होंने कभी परवाह नही की कि भारत के सनातन धर्म और हिंदू धर्म की मान्य परंपराओं द्वारा बुने गए सामाजिक ताने बाने को नष्ट करने से देश को क्या नुकसान हो रहा है? राजमाता विजया राजे सिंधिया जी, जिनके लिए मेरे मन में अभी भी बहुत सम्मान है, वे चाहती थी कि मैं 1970 में जनसंघ में शामिल हो जाऊं, जब मैं राघौगढ़ नगर पालिका का अध्यक्ष था, लेकिन मैंने विनम्रता से मना कर दिया जब मैंने गुरु गोलवलकर की किताब "बंच ऑफ थॉट्स" को पढ़ा और आरएसएस के नेताओं से बातचीत की।
मेरा धर्म सनातन धर्म है
मैं ऐसे परिवेश में पला बढ़ा जहाँ मेरे पिता नास्तिक थे और मेरी माँ बहुत धार्मिक थीं। मेरे लिए मेरा धर्म सनातन धर्म है और सार्वभौम भाईचारे में मेरा विश्वास है। 1981 में जब मैं भारत के सबसे अधिक सम्मानित और वरिष्ठतम जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी से मिला तब मेरी मान्यताओं को और दृढ़ता मिली। और मैंने उनसे "दीक्षा" ले ली। मेरे लिए मेरा धर्म मानवतावाद "इन्सानियत" है जो हिंदुत्व के बिलकुल विपरीत है। अपने आप को शक्तिशाली बनाने की बजाय मेरे लिए सत्ता सिर्फ मानवता की सेवा करने के संकल्प को पूरा करने का साधन मात्र है।