MP में नवजात मृत्यु दर 35 और मातृ मृत्यु दर में तीसरा स्थान, कमलनाथ ने साधा निशाना
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सीएम यादव पर लगाया सत्ता के जश्न में डूबे रहने का आरोप, कहा रोज़ नए मुद्दे उठाकर विज्ञापन में जुटे रहते हैं मुख्यमंत्री
भोपाल। मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। इसी बीच राज्य में मातृ और शिशु मृत्यु दर को लेकर चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मध्य प्रदेश में प्रति 1 लाख में से 3500 नवजात और 173 प्रसूताएं जिंदा नहीं बचतीं। राज्य के अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 61 फीसदी पद भी खाली पड़े हैं।
रिपोर्ट सामने आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सीएम मोहन यादव को स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान देने की नसीहत दी है। कमलनाथ ने एक ट्वीट में लिखा, 'मध्य प्रदेश का यह दुर्भाग्य है कि यहाँ की डॉक्टर मोहन यादव सरकार प्रदेश के बुनियादी मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं देती। अगर मीडिया रिपोर्ट्स को देखें तो मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल अत्यंत ख़राब है। लेकिन इस बदहाली के बावजूद स्वास्थ्य सेवाएं मध्य प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में कहीं नहीं आती और मुख्यमंत्री हर रोज़ नये जुमले उछालकर अपना विज्ञापन करने में जुटे रहते हैं।'
कमलनाथ ने आगे लिखा, 'मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रदेश की 1 करोड़ ग्रामीण आबादी के पास उप स्वास्थ्य केंद्र जैसी बेसिक इलाज की सुविधा नहीं है। अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 61 फीसदी पद खाली पड़े हैं। मातृ और शिशु मृत्यु दर में हालात ये हैं कि 1 लाख में 3500 नवजात और 173 मां जिंदा नहीं बचतीं। मप्र सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर के मामले में देश में तीसरे नंबर पर है। वहीं, शिशु मृत्यु दर के आंकड़े भी चिंताजनक हैं। एमपी में 1 हजार नवजात में से 35 की मौत हो जाती है। शिशु मृत्यु दर 1 हजार में 48 और 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर भी 56 है।'
पूर्व मुख्यमंत्री ने आगे लिखा, 'मप्र के सरकारी अस्पतालों में 4167 पद स्वीकृत हैं। इनमें से सिर्फ 1604 पद ही भरे हुए हैं। इसमें भी स्त्री रोग विशेषज्ञों के कुल 708 पदों में से 390 पद खाली हैं। वहीं, शिशु रोग विशेषज्ञों के कुल 624 पदों में से 315 पद खाली है। अस्पतालों में 75% सर्जन की कमी है। यह कुछ ठोस आंकड़े हैं जो बताते हैं कि मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। अगर इसके साथ ही प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कर्मचारियों की हड़ताल पर नज़र डालें तो पता चलेगा की स्थिति और भी ख़राब है।'
कमलनाथ ने मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव को नसीहत देते हुए कहा कि अब उन्हें कुर्सी पर बैठे एक साल से ज़्यादा का वक़्त हो गया है। इतना वक़्त कुर्सी मिलने का जश्न मनाने के लिए पर्याप्त है और अब उन्हें अपने इवेंट के अलावा जनता के स्वास्थ्य की तरफ़ भी ध्यान देना चाहिए।
बता दें कि भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय हर तीन साल में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे(NFHS) रिपोर्ट जारी करता है। इस समय साल 2019 से लेकर 2021 तक NFHS-5 की रिपोर्ट मौजूद है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मप्र में एक लाख में से 173 महिलाएं गर्भावस्था, डिलीवरी या उसके बाद के पीरियड में जटिलताओं की वजह से दम तोड़ देती हैं। मप्र सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर के मामले में देश में तीसरे नंबर पर है। वहीं, शिशु मृत्यु दर के आंकड़े भी चिंताजनक हैं। एमपी में 1 हजार नवजात में से 35 की मौत हो जाती है। शिशु मृत्यु दर 1 हजार में 48 और 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर भी 56 है।