इंदौर कृषि महाविद्यालय के छात्रों का प्रदर्शन जारी, हजारों करोड़ की जमीन कॉरपोरेट को देने की तैयारी

कृषि महाविद्यालय की जमीन पर भू माफियाओं की नजर, कॉरपोरेट को औने पौने भाव में देने की तैयारी, 25 हजार करोड़ रुपए की है जमीन, विश्वभर में अनुसंधान के लिए मशहूर है इंदौर कृषि महाविद्यालय, छात्रों ने कहा- एक इंच जमीन नहीं देंगे

Updated: Jul 23, 2022, 02:05 PM IST

इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में करीब एक सदी पुराने कृषि अनुसंधान की बेशकीमती जमीन को हथियाने की एक बार फिर से कवायद शुरू हो गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्य सरकार इस हजारों करोड़ रुपए की जमीन कॉरपोरेट को देकर यहां बहुमंजिला इमारत और सिटी फॉरेस्ट बनाना चाहती है। सरकार और प्रशासन के इस कदम का कृषि महाविद्यालय के वर्तमान और पूर्व छात्र पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक प्रदेश का लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग जमीन की डिटेल्स जुटाकर इसे नीलाम करने की कवायद कर रहा है। हाल ही में शासन के निर्देश पर जिला प्रशासन ने जमीन का अवलोकन कर महाविद्यालय प्रशासन से सारी जानकारी भी मांगी थी। लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग के प्रमुख सचिव अनिरुद्ध मुखर्जी इस सिलसिले में इंदौर भी आए थे। उन्होंने कलेक्टर मनीष सिंह सहित संभागायुक्त कार्यालय के अन्य अधिकारियों के साथ बैठक भी की है।

महाविद्यालय में 20-25 साल से कुछ अनुसंधान परियोजनाएं चल रही हैं। यदि जमीन छीन ली गई तो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अन्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग से चल रही अनुसंधान परियोजनाएं ठप हो जाएंगी। महाविद्यालय के वर्तमान और पूर्व विद्यार्थियों ने इस कदम के खिलाफ अनिश्चितकालीन धरना आंदोलन शुरू कर दिया है। छात्रों का कहना है कि हम एक इंच जमीन भी किसी को हथियाने नहीं देंगे। राज्य सरकार ने कृषि महाविद्यालय की जमीन लेकर इसके बदले जिले में ही दूसरी जगह जमीन उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा है। 

बताया जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान कृषि विशेषज्ञों ने कृषि संबंधी अनुसंधान के लिए इस जमीन को चिन्हित किया था। तकरीबन 97 साल पहले होलकर शासकों ने कृषि अनुसंधान के लिए यह बेशकीमती जमीन उपलब्ध कराई थी। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने यहां लंबे समय तक कृषि संबंधी अनुसंधान किया। वर्ष 1935 में महात्मा गांधी इस संस्थान में बन रहे जैविक खाद निर्माण कार्यक्रम को देखने आए थे और इसकी खूब सराहना की।

मध्य प्रदेश की स्थापना के बाद सन 1959 में यहां शासकीय कृषि महाविद्यालय के की स्थापना हुई और यहां पढ़कर हजारों कृषि एक्सपर्ट्स निकले जो दुनियाभर में कृषि संबंधी काम कर रहे हैं। आज राज्य सरकार ही इस ऐतिहासिक संस्थान में अनुसंधान और शिक्षण कार्य बंद करके इसकी लगभग 300 एकड़ से ज्यादा की जमीन बेचने की तैयारी में है। जिस राज्य सरकार के मुखिया स्वयं कृषि बैकग्राउंड से आते हों, वहां कृषि महाविद्यालय को इस तरह नष्ट करने की साजिश समझ से परे है। 

महाविद्यालय के पूर्व छात्र और किसान नेता केदार शंकर सिरोही जो इस आंदोलन का नेतृत्व भी कर रहे हैं, वह बताते हैं कि यह जमीन लगभग 363 एकड़ है। वर्तमान में इसकी अनुमानित कीमत 25 हजार करोड़ है। सिरोही के मुताबिक राज्य सरकार ऑक्सीजोन और फॉरेस्ट जोन के नाम पर इसे हथियाना चाहती है। सिरोही कहते हैं कि यह क्षेत्र अपने आप में पहले से ही ऑक्सीजोन है। सिरोही के मुताबिक इस जमीन के लिए बहुत बड़े स्तर पर षड्यंत्र रचा जा रहा है और मौजूदा शिवराज सरकार की मंशा हजारों करोड़ रुपए कमीशन लेकर इसे निजी हाथों में सौंपने की है।

सिरोही कहते हैं कि लैंड यूज बदलकर बीजेपी सरकार इसे अपने कॉरपोरेट मित्रों औने पौने भाव में देगी और उनसे हजारों करोड़ रुपए कमीशन लिया जाएगा। खास बात ये है कि इंदौर क्षेत्र के बीजेपी नेता भी इस कदम के खिलाफ हैं। शिवराज कैबिनेट में जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने इस संबंध में सीएम चौहान को पत्र लिखा है और उन्होंने कृषि अनुसंधान की जमीन महाविद्यालय के पास रहने देने का आग्रह भी किया है। 

केदार सिरोही कहते हैं कि मंत्री तुलसी सिलावट को पता है कि इस जमीन से हजारों करोड़ कमीशन प्राप्त होंगे। लेकिन उन्हें एक भी रुपया नहीं मिल रहा है, इसलिए वे इसके खिलाफ हैं। सरकार यदि कमीशन का कुछ हिस्सा सिंधिया और सिलावट को देती है तो वे भी सरकार के साथ हो जाएंगे। सिरोही के मुताबिक जमीन हथियाने के इस खेल में स्थानीय कलेक्टर मनीष सिंह का बहुत बड़ा रोल है। इंदौर कलेक्टर इस डील को मूर्त रूप देने में पूरी तरह से लगे हुए हैं।

आंदोलनकारी कृषि छात्रों ने कहा कि अनुसंधान महाविद्यालय में मालवा और निमाड़ क्षेत्र के विद्यार्थी सिर्फ कृषि की पढ़ाई ही नहीं करते, बल्कि यहां की जमीन पर भारत सरकार के सहयोग से अलग-अलग फसलों और जलवायु आधारित आठ-दस अनुसंधान परियोजनाएं भी चल रहीं हैं। इनमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली से पोषित बारानी कृषि अनुसंधान, करड़ी अनुसंधान, कपास अनुसंधान, दलहन अनुसंधान, मक्का अनुसंधान एवं ज्वार अनुसंधान फसल परियोजना के अलावा जलवायु अनुकूलन कृषि परियोजना, क्रियात्मक अनुसंधान परियोजना, लवण ग्रसित भूमि परियोजना चल रही है। 

छात्रों के मुताबिक कृषि अनुसंधान से जुड़ी भूमि की संरचना तैयार होने में वर्षों लग जाते हैं। ऐसे में यदि इस कृषि महाविद्यालय को अन्यत्र विस्थापित कर दिया गया, तो अनुसंधान के कार्यों में तो बाधा आएगी ही, जो प्रयोग अभी चल रहे हैं उसके नतीजों पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। बता दें कि इस बेशकीमती ज़मीन पर भू माफियाओं की पहले से नज़र है। दो बार इसे निजी हाथों में सौंपने की कवायद हो चुकी है लेकिन विरोध के बाद सरकार को अपने कदम पीछे लेने पड़े थे।