पुलिसकर्मियों को Suicide से बचाने के लिए Guidelines

मानसिक अवसाद से पीडित कर्मियों की Counselling के निर्देश

Publish: Jul 09, 2020, 07:13 AM IST

इंदौर। समाज के साथ ही पुलिसकर्मियों में फैलने वाले डिप्रेशन और सुसाइछड को देखते हुए विशेष शस्‍त्र बल इंदौर के आईजी ने आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस पत्र में मानसिक तनाव के लक्षण और उससे मुक्ति के उपायों को सुझाया गया है।

आईजी विशेष शस्‍त्र बल इंदौर द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि कुछ समय से पुलिस इकाइयों में पुलिस आत्महत्या किए जाने की घटनाएं सामने आ रही है। इसमें से अधिकांश  मामलों में मानसिक अवसाद मुख्‍य होता है। पारिवारिक कलह, कार्य का अत्यधिक दबाव और वित्तीय समस्याएं अवसाद के मुख्य कारण है। मानसिक अवसाद से जुडी इस आत्महत्या की घटनाओं को समय रहते नियंत्रित किया जाना नितांत आवश्यक है, ताकि यह किसी भी पुलिस कर्मी पर, किसी भी प्रतिकूल परिस्थितियों में हावी न हो सके, और कर्मी को अपने अमूल्य जीवन को समाप्त करने की स्थिति कदापि निर्मित न हो सके।

अवसाद की रोकथाम के लिए जारी निर्देश - 

1- मानसिक अवसाद (Mental Depression) के प्रमुख लक्षण पर्याप्त नींद न आना, सामान्य-से-सामान्य कार्य/दायित्व भी अत्यन्त जटिल प्रतीत होना, भ्रम की स्थिति बनी रहना, भूख की कमी, स्वास्थ्य में गिरावट, मन की एकाग्रता बाधित होना, हमेशा असहज महसूस करना, स्मरण शक्ति कमजोर होना हमेशा एकांत वास में रहना आदि ।

2 - जिन पुलिस कर्मियों में उपरोक्त लक्षण दिखाई दे रहे हों अथवा ऐसे पुलिस कर्मी जिनमें इस तरह का व्यवहार लंबे समय से देखने में आ रहा हो, ऐसे कर्मचारियों को सर्वप्रथम संबंधीत कंपनी निरीक्षक/कंपनी प्रभारी प्राथमिकता के आधार पर चिन्हित करें। साथ ही इन कर्मियों का स्वास्थ्य परीक्षण किसी योग्य मनोचिकित्सक से करवाकर, इसकी पुष्टि करवायें कि कर्मी में मनोरोग के ही लक्षण हैं।

 3- ऐसे मानसिक अवसाद से पीडित कर्मियों को, मनोरोग के निदान हेतु उचित परामर्श केन्द्र में ले जाकर, उनकी विशेष रूप से संबंधित चिकित्सक के माध्यम से "Counselling" करवाई जाए।

 4- वाहनों के किसी कर्मी को यदि किसी प्रकार की विभागीय परेशानियां दिक्कतें आ रही है, तो संबंधित कंपनी निरीक्षक/प्रभारी का यह दायित्व है, कि वह उस कर्मचारी को व्यक्तिगत समय दें और उसकी प्रत्येक परेशानियों और दिक्कतों को सुने तथा उसका हर संभव त्वरित निराकण करें यदि समस्या का निदान संबंधीत कंपनी निरीक्षक/प्रभारी स्तर का नहीं है, तो तत्काल इस संबंध में अपने उच्चाधिकारी/वरिष्ठ अधिकारी के माध्यम से कर्मचारी की समस्या का समाधान करवाना सुनिश्चित करें। उसकी समस्या के निदान हेतु हर स्टेप्स की जानकारी उसे दी जाए ताकि, वह आश्वस्त हो सके उसकी समस्या के निदान हेतु विभागीय स्तर पर प्रयास जारी है ।

5- संबंधित कंपनी निरीक्षक/प्रभारी किसी भी कर्मचारी को, जटिल एवं दुर्गम ड्यूटी स्थल पर लंबे समय तक तैनात नहीं रखें, अर्थात कर्मचारियों के रोटेशन का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए । यदि कर्मियों के ड्यूटी रोटेशन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तो, इससे संबंधीत कर्मी में अन्य सामान्य स्थल पर ड्यूटी कर रहे कर्मियों के प्रति वैमनस्यता का भाव उत्पन्न होने की आशंका निर्मित होने लगेगी, और कर्मी अनावश्यक मानसिक रूप से स्वयं को असहज महसूस करने लगेगा, जो उसके एवं विभाग के अनुकूल नहीं कहा जा सकता।

 6- कर्मचारी द्वारा संबंधित निरीक्षक के माध्यम से मुख्य कार्यालय में अवकाश, विभनि/साभनि, विभागीय अनुमति. यात्रा भत्ता, मकान किराया, अधिक वसूली, ऐरियर्स, अथवा किसी प्रकार की कोई कार्यालयीन समस्या आदि के संबंध में आवेदन-पत्र प्रस्तुत किया जाता है, तो उस कर्मचारी के प्रकरण की जा रही कार्यालयीन कार्यवाही की अद्यतन स्थिति कंपनी निरीक्षक/प्रभारी संबंधीत शाखा से ज्ञात कर, संबंधीत कर्मी को अवगत कराएंगे, ताकि कर्मचारी स्वंय संतुष्ट हो सके। 

7- कर्मियों को सही समय पर अवकाश पर छोडा जाए। यदि वह अवकाश से अनुपस्थित होकर कर्तव्य पर लौटाता है, तो सर्वप्रथम इसका मुख्य एवं सही कारण आवश्यक रूप से ज्ञात कर लिया जाए। यदि उसके अवकाश से अनुपस्थित होने की वजह कोई गंभीर है, अनुपस्थित होना ही एक मात्र विकल्प था तो वाहिनी मुख्यालय में उसका प्रकरण निराकरण हेतु भेजने के दौरान संबंधीत निरीक्षक/प्रभारी इस संबंध में अपना अभिमत आवश्यक रूप से अंकित करें, ताकि उस तथ्य को दृष्टिगत रखते उसकी अनुपस्थिति प्रकरण का निराकरण सक्षम अधिकारी द्वारा सुनिश्चित किया जा सके।

8- अधिकांशत जिलों में विशेष बल, कंपनियों के ठहरने हेतु भवन उपलब्ध है अतः इस भवन के आस-पास ग्राउंड तैयार करवाकर, विभिन्न खेल गतिविधियां नियमित रूप से आयोजित की जाए ताकि कर्मियों पर पडने वाला मानसिक दबाव काफी हद तक कम हो सके। 

9- कर्मियों द्वारा अपने खाली समय में प्रेरणादायक साहित्य, सकारात्मक दृष्टिकोण में वृद्धि करने वाली पुस्तकें एवं अन्य पत्र-पत्रिकाओं को पढने का चलन भी अपनी दिनचर्या में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए।