कैसे कहें हैप्‍पी मदर्स डे…बच्‍चों की मृत्‍यु दर बढ़ गई

शिवराज मामा की सरकार में बच्‍चों की मृत्‍यु दर घटने की जगह बढ़ गई है।

Publish: May 10, 2020, 09:52 PM IST

आज जब हम हैप्‍पी मदर्स डे कह कर मां को याद कर रहे हैं तब ही यह बुरी खबर भी आई है कि एमपी में शिशु मृत्‍यु दर देश की सर्वाधिक है। एमपी में जन्‍म लेने वाले एक हजार बच्‍चों में से 48 बच्‍चे अपना पहला जन्‍मदिन नहीं मना पाते हें। यानि एक साल के अंदर की मां अपने बच्‍चे खो देती है। बात इतनी ही नहीं है एक साल में एमपी की शिशु मृत्‍यु दर यानि एमएमआर 1 पाइंट बढ़ गई है। तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी एमपी ऐसा बिरला राज्‍य है जहां बच्‍चों की मृत्‍यु दर घटने की जगह बढ़ गई है। ऐसे हालत में बच्‍चों को बचाने के लिए कोई उपाय किए बिना कैसे कहा जा सकता है – हैप्‍पी मदर्स डे?

एमपी में मातृत्‍व अधिकार की इस बुरी स्थिति का खुलासा एसआरएस यानि सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के द्वारा जारी ताजा आंकड़े में हुआ है। एसआरएस डेटा के अनुसार एमपी में आईएमआर यानि शिशु मृत्‍यु दर 48 है। देश का औसत 32 है। एमपी में जहां एक हजार जन्‍म पर 48 बच्‍चों की एक वर्ष की उम्र के अंदर मौत हो जाती है वहीं देश में यह आंकड़ा 32 है। लिंग के अनुसार देखें तो एमपी में बालक आईएमआर 51 है जबकि बालिका आईएमआर 46 हैं। गांवों में आईएमआर 52 है जबकि शहरों में 36 है। साफ है कि शहरों में स्थिति बनिस्‍बत अच्‍छी है।

दु:ख की बात इतनी ही नहीं है कि एमपी में आईएमआर देश की सबसे ज्‍यादा है। असल परेशानी यह है कि एक साल में यह बढ़ गई जबकि तमाम योजनाएं चला कर सरकार मान रही थी कि यह घटेगी। एसआरएस की ही वर्ष 2017 की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे अधिक 47 बच्चे प्रति हजार थी। पूरे देश में यह दर 33 है। साल 2016 में भी यह दर 47 ही थी। तब प्रदेश में 15 सालों की भाजपा सरकार थी और उसने अपने प्रचार में बच्‍चों की सेहत सुधार के लिए सबसे अधिक खर्च और काम करने का दावा किया था। बच्‍चों के मामा कहे जाने वाले मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में ‘भांजों’और ‘बहनों’ की सेहत सुधारने के लिए बड़े वादे किए थे।

गौरतलब है कि 28 दिन, 1 साल और 5 साल के बच्‍चों की मौत के आंकड़ें हमारी स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की गुणवत्‍ता को बताते हैं। एक वर्ष से कम उम्र में बच्‍चों की मौत स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की कमियों को उजागर करती है। विशेषज्ञों के अनुसार प्रदेश में शिशु मृत्यु की बड़ी वजह समय प्रसव, टीकाकरण की कमी, संक्रमण और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। कुपोषण भी एक बड़ी वजह है। कम उम्र में तथा कुपोषण में मां बनी महिला कुपोषित बच्चे को ही जन्म देती है।

क्‍या बच्‍चे और मां का स्‍वास्‍थ्‍य हमारी चिंताओं में शामिल नहीं है? यह पूछने पर सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन कहते हैं कि मातृत्‍व स्‍वास्‍थ्‍य और शिशु स्‍वास्‍थ्‍य न तो सरकार की प्राथमिकता है और न ही राजनीति की प्राथमिकता है। इन मुद्दों को समाज भी अपने मुद्दों से निकाल चुका है। उसके लिए रोजी, रोटी और अस्तित्‍व का इतना बड़ा संकट कर दिया गया है कि समाज के लिए शिशु और मां का स्‍वास्‍थ्‍य और मृत्‍यु गौण विषय हो गए हैं। अब मां और बच्‍चों की मौत पर समाज का उतना ध्‍यान ही नहीं जाता क्‍योंकि राजनीति ने कमतर विषयों को प्राथमिक बना दिया है।