विधानसभा चुनाव से पहले सिंधिया समर्थकों में बेचैनी, अधिकांश विधायकों के टिकट पर लटकी तलवार
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा एंटी इनकम्बेंसी दूर करने के लिए बड़े स्तर पर मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की तैयारी में है।
भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब महज पांच महीने बाकी रह गए हैं। चुनाव का समय नजदीक आते ही सिंधिया समर्थकों की बेचैनी बढ़ गई है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि सिंधिया समर्थक अधिकांश विधायक व पूर्व विधायक इस बात को लेकर आशंकित हैं कि भाजपा इस बार उनकी टिकट न काट ले। भाजपा सूत्रों के मुताबिक उनकी बेचैनी इसलिए स्वाभाविक है, क्योंकि इसबार अधिकांश सिंधिया समर्थकों की टिकट कटने के आसार हैं।
दरअसल, कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा एंटी इनकम्बेंसी दूर करने के लिए बड़े स्तर पर मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व के रडार पर सिंधिया समर्थक विधायक सबसे आगे हैं। चूंकि, कर्नाटक में भी कांग्रेस से बगावत करने वाले अधिकांश नेता चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में भाजपा सिंधिया समर्थक सभी विधायकों को टिकट देकर कोई रिस्क लेना नहीं चाहती। इसलिए बीजेपी ने ऑप्शन ढूंढना शुरू कर दिया है। हाल ही में सीएम शिवराज और वीडी शर्मा ने अंबाह से विधायक रहे सत्यप्रकाश सखवार को भाजपा ज्वाइन कराया था। ऐसे में अब सिंधिया समर्थक विधायक कमलेश जाटव की टिकट पर तलवार लटकती दिख रही है।
माना जा रहा है कि सखवार को भाजपा ने इसीलिए पार्टी में शामिल कराया है क्योंकि सत्ताधारी दल आंतरिक सर्वे रिपोर्ट के आधार पर सिंधिया समर्थक कमलेश जाटव को रिप्लेस करना चाहती है। लगभग यही स्थिति एक दर्जन से अधिक सिंधिया समर्थक विधायक व पूर्व विधायकों के क्षेत्र में है। जिन स्थानों पर सिंधिया समर्थकों ने उपचुनाव में हार मिली थी या जीत पाई थी, वहां से पुराने बीजेपी के नेता अपनी दावेदारी जता रहे हैं।
बता दें कि मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में बीजेपी पिछड़ गई थी और कांग्रेस ने सत्ता हासिल की थी। मगर ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक 22 विधायकों के कांग्रेस छोड़ने से कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई थी। उपचुनाव में पार्टी ने सभी 22 सिंधिया समर्थकों को मैदान में उतारा मगर इनमें से सात को हार का सामना करना पड़ा था, जबकि 15 अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे। अब यह 15 नेता तो दोबारा दावेदारी जता ही रहे हैं। हारे हुए 7 पूर्व विधायक भी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। जबकि भाजपा उपचुनाव हार चुके नेताओं को तो दूर मौजूदा विधायकों में भी आधे से ज्यादा नेताओं का टिकट काटने की मूड में है।
बीजेपी ने सिंधिया समर्थक 12 विधायकों को कैबिनेट में शामिल किया था। हालांकि, सिंधिया समर्थक मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड भी ठीक नहीं है। भाजपा के ही पुराने नेता कई सिंधिया समर्थक मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुके हैं। ऐसे में अब तक महत्वपूर्ण पद अपने पास रखने के लिए दबाव बनाने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से सर्वाधिक टिकट कटने की संभावना है। खासकर, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बीजेपी के अधिकाशं कार्यकर्ता और नेता पार्टी में सिंधिया खेमे के आधिपत्य के कारण घर बैठे हैं। ये नेता सक्रिय होंगे तो जाहिर है सिंधिया खेमे को ही नुकसान अधिक उठाना होगा।
खास बात ये है कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीते दिनों कार्यसमिति की बैठक से दूरी बना ली थी। यह सिंधिया के दबाव की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। दरअसल, सिंधिया अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट दिलाना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। बीजेपी के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि सिंधिया ने टिकट के लिए हाईकमान को 53 लोगों का नाम दिया है। हालांकि, इसमें एक चौथाई लोगों को टिकट मिलने की संभावना भी नहीं है।