बिना किट, टेस्ट, आइसोलेशन सेंटर और एम्बुलेंस के कोरोना से जंग लड़ रहा है डिंडोरी का स्वास्थ्य केंद्र

मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले में स्थित विक्रमपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को एक दिन में सिर्फ 15 कोरोना टेस्टिंग किट ही दिए जाते हैं, जबकि करीब 20 हजार लोग इस केंद्र पर निर्भर हैं

Updated: May 13, 2021, 05:55 AM IST

डिंडोरी। मध्यप्रदेश के लगभग सभी जिलों में कोरोना ने कोहराम मचा रखा है। आलम ये है कि जो कोरोना का खतरा पहले बड़े शहरों में बताया जा रहा था, अब वो गांव गांव तक फैल चुका है। लेकिन सरकारी आंकड़ों में कोरोना से पॉजिटिव होनेवालों की संख्या घट रही है। हमसमवेत की टीम ने इस बारे में जानने के लिए मध्य प्रदेश के दूर दराज़ के इलाकों में संपर्क करने की कोशिश की। जो जानकारी सामने आयी वो सरकारी दावों की कलई खोलने के लिए काफी है। पता चला है कि सुदूर पिछड़े जिलों में सरकार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को जांच के लिए किट और इलाज के लिए सामग्री ही नहीं मुहैया करा रही है।

भोपाल से लगभग साढ़े चार सौ किलोमीटर दूर डिंडोरी के एक सामुदायिक केंद्र में जब हमसमवेत की टीम ने पता किया तो जानकारी मिली कि सरकार की तरफ से सिर्फ 15 जांच किट एक दिन के लिए उपलब्ध करायी जा रही है। यानी कि उससे ज्यादा बीमार अगर आ जाएं तो उनकी जांच संभव नहीं है.. या फिर अगले दिनों तक उन्हें अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ रहा है।

डिंडोरी जिले के विक्रमपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर इलाके के करीब 20 हजार लोग निर्भर हैं। स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर प्रदीप गोहिया ने बताया कि, 'हमें प्रशासन से प्रतिदिन 15 एंटीजन टेस्टिंग किट्स ही दिए जाते हैं, जब कि जांच कराने के लिए उससे काफी ज्यादा लोग आ रहे हैं। टेस्टिंग किट खत्म होने की स्थिति में या तो मरीजों को वापस लौटा दिया जाता है, या जिला अस्पताल भेज दिया जाता है। आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए भी जनता को जिला अस्पताल ही जाना पड़ता है।'

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डॉक्टर प्रदीप के मुताबिक, 'सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कोविड-19 संक्रमित मरीजों के लिए बेड्स की भी व्यवस्था नहीं की गई है। इसका कारण यह है कि सीएमएचओ या अन्य अधिकारियों ने अबतक यहां कोविड-19 सेंटर खोलने का निर्देश ही नहीं दिया है।' उन्होंने बताया कि यदि गांवों से संक्रमित मरीज आते हैं तो उन्हें जिला अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। मरीजों लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एम्बुलेंस तक नहीं है, ताकि उन्हें जिला अस्पताल तक ले जाया सके।

एम्बुलेंस के बारे में डॉ प्रदीप में बताया कि आवश्यकता पड़ने पर गंभीर मरीजों को जिला अस्पताल भेजने की लिए जिला मुख्यालय से एम्बुलेंस बुलाया जाता है। मामले पर स्थानीय कांग्रेस विधायक भूपेंद्र मरावी ने कहा कि, 'हमने कई दिन पहले ही सीएमएचओ से कहा था कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कम से कम 20 आइसोलेशन बेड्स की व्यवस्था की जाए, यह अबतक नहीं हो पाया है। भूपेंद्र मरावी ने इस बीच अपनी मां की जान से हाथ धो बैठे। दोबारा बात करने पर सीएमएचओ ने आश्वासन दिया है कि जल्द ही आइसोलेशन बेड्स की व्यवस्था की जाएगी।'

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विक्रमपुर के रहने वाले अमित गुप्ता बताते हैं कि गांवों में कोरोना वायरस पांव पसारता जा रहा है। गांवों में अधिकांश लोग सर्दी, खांसी और बुखार से पीड़ित हैं। टेस्टिंग की सुविधा नहीं होने के कारण समय रहते लोगों को पता तक नहीं चल पाता है कि वे इस खतरनाक वायरस के चपेट में आ गए हैं। लोगों की तबीयत जब ज्यादा बिगड़ती है तब उन्हें जांच कराने के लिए 30 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है। 

अमित गुप्ता ने यह भी बताया कि एक बार कोरोना पॉजिटिव होने के बाद दूसरी बार अस्पताल जांच तक नहीं करते। ऐसे में लोगों को यह भी नहीं पता चल पाता कि वे ठीक हुए हैं या नहीं। वे कहते हैं कि गांव के गरीब लोग अपनी किस्मत के भरोसे ही इस महामारी से लड़ रहे हैं। मध्यप्रदेश में अस्पतालों की यह स्थिति तब है जब एक्सपर्ट्स लगातार सरकार को चेतावनी दे रहे हैं कि गांवों में यदि कोरोना फैला तो फिर संभाल पाना असंभव होगा। बावजूद इसके स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ कर कोरोना को कंट्रोल करने की बजाए सरकार टेस्टिंग को कंट्रोल करने में जुटी हुई है।