एक बार फिर 5 हजार करोड़ का ऋण लेगी मोहन सरकार, एक साल में 59 हजार करोड़ बढ़ा कर्ज का बोझ
आज लिए जाने वाले कर्ज की ब्याज के साथ भुगतान की कार्यवाही वर्ष 2045 और 2041 तक की जाएगी। आज लिए गए कर्ज के बाद राज्य सरकार पर कुल कर्ज 4 लाख पांच हजार 578 करोड़ रुपए हो जाएगा।
भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार कर्ज के दलदल में धंसती जा रही है। डाॅ. मोहन यादव सरकार पिछले एक वर्ष में 54 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है। आज एक बार फिर सरकार पांच हजार करोड़ रुपए कर्ज बाजार से ले रही है। नए कर्ज को मिलाकर एक वर्ष में मोहन सरकार कुल 59,000 करोड़ का कर्ज ले चुकी है और राज्य के सालाना बजट से ज्यादा कर्ज का बोझ हो गया है।
राज्य सरकार द्वारा आज ऐसे समय में बाजार से कर्ज लिया जा रहा है जब कल केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का शिलान्यास छतरपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। यह कर्ज लेने के बाद चालू वित्त वर्ष में राज्य सरकार 30 हजार करोड़ का कर्ज ले चुकेगी। आज लिए जाने वाले कर्ज की ब्याज के साथ भुगतान वर्ष 2045 और 2041 तक की जाएगी। आज लिए गए कर्ज के बाद राज्य सरकार पर कुल कर्ज 4 लाख पांच हजार 578 करोड़ रुपए हो जाएगा।
वित्त विभाग के अफसरों के अनुसार जो लोन लिया जा रहा है वह एमपी के जीडीपी के मान से तय लोन लिमिट के भीतर ही है। इस ऋण राशि से मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना और अन्य विकास कार्यों को अंजाम दिया जाएगा। मोहन सरकार ने अक्टूबर में नवरात्र शुरू होने के दस दिन पहले सितम्बर में 5 हजार करोड़ रुपए कर्ज लिया था। इसके बाद नवरात्र पर्व के दौरान भी पांच हजार करोड़ रुपए का लोन लिया गया था। इसके अलावा नवम्बर में भी पांच हजार करोड़ रुपए का लोन लिया गया था।
बहरहाल, इससे जनता पर कर्ज का भार लगातार बढ़ता जा रहा है और यह बढ़कर 4 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश का प्रत्येक व्यक्ति 50 हजार रुपये से अधिक का कर्जदार होगा। स्थिति यह है कि मध्य प्रदेश का कुल बजट 3.65 लाख करोड़ रुपये का है, लेकिन इससे अधिक मध्य प्रदेश सरकार पर कर्ज है।
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मध्य प्रदेश की वित्तीय स्थिति पहले ही चिंताजनक है अब एक और नया कर्ज, एमपी सरकार के वित्तीय संकट के दलदल में फंसने का इशारा कर रहा है। इसी साल CAG ने अपनी रिपोर्ट में सरकार के बढ़ते राजकोषीय घाटे पर चिंता जताते हुए कहा था कि सरकार को ज्यादा कर्ज लेने के बजाय राजस्व बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, नुकसान उठा रहे उपक्रमाें के कामकाज की समीक्षा कर उनमें सुधार की रणनीति बनाई जाना चाहिए। बजट तैयार करने की प्रक्रिया ऐसी हो, ताकि बजट अनुमान और वास्तविक बजट के बीच के अंतर को काम किया जा सके। बावजूद सरकार की कर्जखोरी पर लगाम लगता नजर नहीं आ रहा है।