एमपी में कथित लव जिहाद विरोधी अध्यादेश को कैबिनेट की मंज़ूरी, आज ही लागू किए जाने के आसार
धर्म स्वातंत्र्य विधेयक का मसौदा शनिवार को कैबिनेट में पास हुआ था, लेकिन अध्यादेश लाने के लिए दोबारा पास किया गया है

भोपाल। मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार आज ही धर्म स्वातंत्र्य अध्यादेश लागू करने जा रही है। राज्य की कैबिनेट ने आज इसे मंज़ूरी दे दी है। अब इस पर राज्यपाल के दस्तखत भी आज ही करा लिए जाने के आसार हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य विधानसभा का सत्र स्थगित होने के बाद इस विधेयक को अध्यादेश के तौर पर लागू करने का एलान कल ही कर दिया था।
लव जिहाद विरोधी क़ानून के नाम से चर्चित इस अध्यादेश के मसौदे को शिवराज कैबिनेट ने शनिवार यानी 26 दिसंबर को ही मंज़ूरी दी थी। उस वक़्त कहा गया था कि इसे सोमवार से शुरू होने वाले विधानसभा के सत्र में पेश किया जाएगा। लेकिन अब सरकार इसे अध्यादेश के तौर पर लागू करने की तैयारी में है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार नवंबर में ही अध्यादेश लाकर ऐसा कर चुकी है।
समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि अध्यादेश को आज यानि मंगलवार को ही जारी कर दिया जाएगा।
Madhya Pradesh government will promulgate Dharma Swatantrya (Religious Freedom) Ordinance tomorrow: Chief Minister Shivraj Singh Chouhan
— ANI (@ANI) December 28, 2020
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कैबिनेट में मंजूरी के बाद राज्यपाल को भेजा जाएगा अध्यादेश
अध्यादेश जारी करने के लिए बिल के मसौदे को मंगलवार को फिर से कैबिनेट की बैठक में पारित किया गया। जिसके बाद अब सरकार इसे राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के पास भेजेगी। उम्मीद की जा रही है कि उत्तर प्रदेश की तरह ही आनंदी बेन मध्य प्रदेश में भी इस अध्यादेश को फटाफट मंज़ूरी दे देंगी। उत्तर प्रदेश के कथित लव जिहाद विरोधी अध्यादेश को भी राज्यपाल के तौर पर आनंदी बेन पटेल ने ही मंजूरी दी थी।
छह महीने में विधानसभा से पारित कराना होगा
गवर्नर के दस्तख़त होने के बाद अध्यादेश को गजट में प्रकाशित किया जाएगा। इसके साथ ही यह क़ानून के तौर पर लागू हो जाएगा। हालाँकि संविधान में दी गई व्यवस्था के तहत विधानसभा को दरकिनार करके अध्यादेश के रास्ते से लाए क़ानून को छह महीने के भीतर विधानसभा से पास कराना ज़रूरी होता है। उत्तर प्रदेश में कथित लव जिहाद के ख़िलाफ़ लाए गए अध्यादेश को गवर्नर आनंदी बेन पटेल ने 26 नवंबर को मंज़ूरी दी थी। दिलचस्प बात यह है कि कथित तौर पर ग़लत ढंग से होने वाले धर्मांतरण और धर्म परिवर्तन के मक़सद से की जाने वाली अंतर-धार्मिक शादियों पर रोक लगाने के घोषित उद्देश्य से लाए जा रहे इस क़ानून का नाम 'धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020' है।
शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर कड़े दंड का प्रावधान
इस विधेयक में शादी के मकसद से धर्म परिवर्तन करने या प्रलोभन, दबाव जैसे तरीक़ों से धर्मांतरण करवाने वालों को कड़ा दंड दिए जाने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में किए गए प्रावधानों के मुताबिक़ अनुसूचित जाति/ जनजाति की लड़की या नाबालिग को बहला-फुसलाकर धर्म परिवर्तन के इरादे से शादी करने वाले को दस साल तक की क़ैद हो सकती है। धर्म छिपाकर की गई शादी को अमान्य या रद्द घोषित करने का प्रावधान भी इस प्रस्तावित विधेयक में किया गया है। एक प्रावधान यह भी है कि अगर अलग-अलग धर्मों को मानने वाले व्यक्ति आपस में शादी करना चाहते हैं तो उन्हें दो महीने पहले कलेक्टर के पास आवेदन देकर अनुमति हासिल करनी होगी। अगर कलेक्टर की इजाज़त के बिना ऐसी शादी हुई तो शादी करने वाले और कराने वाले सभी दंडित किए जाएंगे।
आरोप लगाने वाले को कुछ भी साबित नहीं करना होगा
इतना ही नहीं, एक अजीब प्रावधान यह भी है कि इसमें जबरन या बहला-फुसलाकर या शादी के इरादे से धर्मांतरण करने का आरोप लगाने वाले व्यक्ति को कुछ भी साबित नहीं करना होगा। जिस पर आरोप लगाया गया, उसे ही अपने निर्दोष होने का सबूत पेश करना होगा। जबकि आम तौर पर न्याय का सिद्धांत यही होता है कि कोई भी व्यक्ति दोष साबित होने तक क़ानून की नज़र में निर्दोष होता है। यानी आरोप लगाने वाले को अपना आरोप साबित करना होता है। लेकिन इस क़ानून में आरोप लगाने वाले को कोई सबूत देने की ज़रूरत नहीं है। इस प्रावधान की वजह से नए अध्यादेश का ग़लत इस्तेमाल किए जाने का काफी ख़तरा रहेगा।
बीजेपी शासित राज्यों में ऐसे कानून बनाने की होड़
दरअसल बीजेपी शासित तमाम राज्यों में कथित लव जिहाद रोकने के नाम पर इसी तरह के क़ानून बनाने की होड़ लगी है। हालाँकि उत्तर प्रदेश में नवंबर में ऐसा अध्यादेश लाए जाने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट अपने एक आदेश में साफ़ कर चुका है कि दो बालिग लोग अगर एक साथ रहने, शादी करने का फ़ैसला करते हैं तो यह उनकी व्यक्तिगत आज़ादी का मसला है। जीवनसाथी चुनना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। वो किस धर्म को मानते हैं, इससे किसी दूसरे का कोई लेना-देना नहीं है। न ही इस तरह की शादियों में दखल देने का सरकारों को कोई अधिकार है।
यूपी के अध्यादेश को हाईकोर्ट में मिल चुकी है चुनौती
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इसे संविधान के तहत मिले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अनिवार्य हिस्सा माना है। इन्हीं आधारों पर यूपी के अध्यादेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती भी दी जा चुकी है। हाईकोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी को होनी है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर भी कह चुके हैं कि यूपी का कथित लव जिहाद विरोधी कानून संविधान के खिलाफ है।
केंद्र सरकार कह चुकी है देश में लव जिहाद का कोई मामला नहीं
बीजेपी के लोग इन क़ानूनों को आमतौर पर लव जिहाद रोकने की कोशिश बताते हैं, जबकि केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय देश की संसद में लिखकर बता चुका है कि भारत में लव जिहाद जैसे किसी अपराध का कोई वजूद ही नहीं है। जबरन धर्म परिवर्तन या धोखाधड़ी के ज़रिये धर्म परिवर्तन के मामलों में क़ानूनी कार्रवाई के लिए पर्याप्त प्रावधान पहले से ही मौजूद हैं। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले ने भी साफ़ कर दिया है कि दो बालिग़ नागरिक अगर आपसी सहमति से शादी करना चाहते हैं तो उनके निजी जीवन में दखल देने का अधिकार किसी सरकार को नहीं है।
लव जिहाद के नाम पर नफरत फैलाई जा रही है : जेडीयू
इतना ही नहीं, अब तो बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेडीयू भी खुलकर इस तरह के क़ानूनों का विरोध कर चुकी है। पार्टी ने कहा है कि दो बालिग़ लोगों के जीवनसाथी चुनने के अधिकार में इस तरह दखल देना सही नहीं है। इतना ही नहीं, पार्टी का ये भी कहना है कि लव जिहाद के नाम पर समाज को बाँटने और नफ़रत फैलाने की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन बीजेपी की राज्य सरकारें एक के बाद एक जिस तरह ऐसे क़ानून लाती जा रही हैं, उससे साफ़ है कि उसे उस मामले में न तो संविधान के जानकारों की परवाह है और न ही अपने सहयोगी दलों की।