दफ्तर दरबारी: ऑपरेशन सिंदूर की चमक और पीएम मोदी की भोपाल यात्रा के निहितार्थ
PM Modi Bhopal Visit: देश भर में ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा है। विदेशों में इस ऑपरेशन तथा इससे उपजे नेरेटिव को साफ करने के लिए मोदी सरकार ने सर्वदलीय सांसदों को विदेश भेजा है। दूसरी तरफ, पीएम मोदी की भोपाल यात्रा इसकी चमक से जुड़ा एक और आयाम साबित होगी।

देश भर में ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 मई को भोपाल आ रहे हैं। वे जंबूरी मैदान पर महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जन्म जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। महिला सशक्तिकरण पर आयोजित यह कार्यक्रम ऑपरेशन सिंदूर की अगली कड़ी माना जा रहा है जिसमें केंद्र और राज्य सरकार की महिला केंद्रित योजनाओं पर फोकस होगा।
प्रधानमंत्री मोदी की भोपाल यात्रा के पहले बीजेपी होल्कर राजघराने की रानी अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जयंती के मौके पर एक अभियान शुरू कर रही है। यह अभियान 21 से 31 मई तक चलेगा। अभियान के अंतिम दिन पीएम मोदी के भोपाल में आयोजित महिला सम्मेलन में 1 लाख महिलाओं को लाने की तैयारी है। कार्यक्रम की खास बात यह रहेगी कि पूरी व्यवस्था महिलाओं के हाथों में होगी। मंच संचालन से लेकर भीड़ प्रबंधन, ट्रैफिक, मीडिया और सुरक्षा तक का जिम्मा महिलाएं ही संभालेंगी। बीजेपी ने भी महिला सम्मेलन को संभालने की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं को सौंपी है। बीजेपी की करीब 1000 महिला कार्यकर्ता इस कार्यक्रम की व्यवस्थाएं संभालेंगी। बीजेपी ने भोपाल के 31 मंडलों से 35-35 सक्रिय महिला कार्यकर्ताओं की सूची तैयार की है। इनमें बूथ स्तर से लेकर मंडल समिति, पार्षद और अन्य पदों पर कार्यरत महिलाएं शामिल हैं।
प्रशासनिक स्तर पर भी इस आयोजन की व्यवस्था पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र ने कमान संभाल ली है। पीएम मोदी ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार भोपाल आ रहे हैं। महिला केंद्रित होने के कारण इस कार्यक्रम का राजनीतिक महत्व अधिक बढ़ गया है। आयोजन भले ही राजनीतिक है लेकिन इसे कर्ताधर्ता तो अफसर तथा मैदानी अमला है। पीएम मोदी के कार्यक्रम में महिलाओं के आने से लेकर उनकी सकुशल वापसी की जिम्मेदारी सबसे अहम् है। ऐसे में परिवहन, महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ राजस्व के अमले को दायित्व दिया गया है। मोदी की सफल यात्रा प्रशासनिक स्तर पर प्रतिफल दिलवाने का उपक्रम भी बनेगी।
मेट्रो और मेट्रोपोलिटन बनाते-बनाते भूल गए मास्टर प्लान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 31 मई को भोपाल यात्रा के दौरान इंदौर मेट्रो को हरी झंडी दिखाने की योजना है। तैयारी है कि पीएम वर्चुअली इंदौर मेट्रो के पहले चरण को आरंभ करेंगे। इस चरण में गांधी नगर से सुपर कॉरिडोर स्टेशन नंबर 3 तक करीब छह किलोमीटर की मेट्रो सेवाएं प्रारंभ की जाएंगी। इस प्रोजेक्ट की आधारशिला प्रधानमंत्री मोदी ने 14 सितंबर 2019 को रखी थी। भोपाल मेट्रो का काम भी साथ ही शुरू हुआ था मगर वह लगातार पिछड़ता जा रहा है। भोपाल मेट्रो को अगस्त में आरंभ करने की तैयारी थी लेकिन यह भी आगे बढ़ गया है।
दूसरी तरफ, मोहन सरकार ने इंदौर और भोपाल के आसपास के जिलों को मिला कर मेट्रोपोलिटन सिटी बनाने की तैयारी कर ली हे। इंदौर में हुई मोहन कैबिनेट बैठक में 5 शहरों इंदौर, भोपाल, उज्जैन, जबलपुर और ग्वालियर को मेट्रोपॉलिटन एरिया के रूप में विकसित करने के लिए एक कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है।
यह बढ़ते शहरों को एक यूनिट मान कर समग्र विकास का नक्शा खींचने की कोशिश है मगर इस नेक उद्देश्य में भी लापरवाही का अंदेशा लंगड़ी मार रहा है। मेट्रो और मेट्रोपोलिटन के फेर में सरकार और अफसर इंदौर-भोपाल जैसे सर्वाधिक प्राथमिकता वाले शहरों का मास्टर प्लान बनाना और लागू करना ही चूक रहे हैं। सिटी प्लानिंग की दृष्टि से यह कितनी बड़ी लापरवाही है कि दो सबसे बड़े और सबसे प्राथमिकता वाले शहरों इंदौर व भोपाल का 2005 के बाद मास्टर प्लान ही नहीं है। यानी 2025 में भी शहरों को विकास 2005 के ऐसे मास्टर प्लान के अनुसार हो रहा है जिनका निर्माण 1995 में हुआ था।
जाहिर है, बिल्डर सहित सरकारी निर्माण संस्थाओं ने अपनी-अपनी सुविधा, लाभ और नजरिए से शहरों में विकास कार्य तय किए हैं और इस कारण समग्रता में शहर का लाभ दरकिनार हुआ है।
इस बेतरतरीब विकास में शहरों के कुछ क्षेत्र बहुत विकसित हो गए, इन इलाकों में जमीन के दाम आसमान छू रहे हैं तो कुछ इलाके एकदम पिछड़ गए। कहीं बार-बार निर्माण और तोड़फोड़ होती है तो कहीं दशकों से कुछ कार्य नहीं हुआ। मेट्रो को लेकर दोनों शहर के प्रमुख इलाके लंबे समय तक खुदे रहे अब मेट्रोपोलिटन को लेकर आशंकाएं जन्म ले रही है। इस तर्क में दम है दूसरे विकास प्राधिकरणों और निगम की तरह ही मेट्रोपोलिटन अथारिटी भी एक निर्माण एजेंसी बन कर रह जाएगी। जहां अफसरों और नेताओं के लिए नए पद और काम तो सृजित हो जाएंगे लेकिन शहरों के व्यवस्थित विकास का खाका किसी भी अथारिटी के पास नहीं होगा।
मोदी सरकार को क्यों याद आए दलित एजेंडा वाले एमपी के आईएएस
देश भर में ऑपरेशन सिंदूर एक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है तो विदेशों में इस ऑपरेशन तथा इससे उपजे नेरेटिव को साफ करने के लिए मोदी सरकार ने सर्वदलीय सांसदों को विदेश भेजा है। ये सांसद अलग-अलग देशों की यात्रा कर आतंकवाद के खिलाफ भारत के कड़े रुख और पाकिस्तान की नापाक साजिशों की पोल खोलेंगे। इन दलों में सत्ता पक्ष व विपक्ष के सांसदों के साथ राजनयिक अधिकारी भी शामिल हैं।
जब मोदी सरकार ने यह सूची जारी की तो इसमें कई नाम चौंकाने वाले थे। मोदी सरकार ने कांग्रेस द्वारा भेजी गई अनुशंसा से अलग अपनी ओर से कुछ नाम तय किए। ऐसे नेताओं में एक नाम है पंजाब के फतेहगढ़ साहिब से दो बार कांग्रेस के सांसद अमर सिंह का भी है।
मूल रूप से पंजाब निवासी अमर सिंह मध्य प्रदेश कैडर के 1981 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। 71 वर्षीय अमर सिंह डॉक्टर से आईएएस बने थे और फिर राजनीति में चले गए। उनके राजनीति में जाने के आसार आईएएस रहते हुए दिखाई दिए थे। 2002 में दिग्विजय सिंह सरकार के दौरान भोपाल में दलित सम्मेलन आयोजित हुआ था। इस सम्मलेन में जारी दलित घोषणा पत्र देश में दलित राजनीति को नया आयाम देने वाला कदम माना जाता है। इसके बाद केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर गए आईएएस अमर सिंह की तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ऐतिहासिक कानूनों मनरेगा और खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एफएसए) को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है।
इन सारी कड़ियों को जोड़ कर देखा जाए तो मध्य प्रदेश के पूर्व आईएएस और अब राजनेता अमर सिंह का चयन मोदी सरकार की रणनीतिक सोच का परिणाम है। वे विदेश में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर देश के रूख को स्पष्ट करेंगे तो आंतरिक राजनीति में यह मोदी सरकार का दलित राजनीति को महत्व देने का प्रयास है। सांसद अमर सिंह तो चेहरा है, उनके चयन के पीछे दलित वोट को साधने की कोशिश दिखाई दे रही है।
क्या लोक निर्माण विभाग को फिर मिलेगा ‘सुख’
बीते सप्ताह एक प्रशासनिक बदलाव हुआ। 1996 बैच के आईएएस अधिकारी संजीव कुमार झा को मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी नियुक्त किया गया है। वे राजस्व मंडल में सदस्य के रूप में पदस्थ थे। संजीव कुमार झा की नियुक्ति के साथ ही वर्तमान मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सुखवीर सिंह की प्रशासन में वापसी होने का रास्ता साफ हो गया है। 1997 बैच के आईएएस अधिकारी सुखवीर सिंह को अगस्त 2024 मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी बनाया गया था।
राज्य शासन ने संजीव कुमार झा की पदस्थापना तो कर दी लेकिन फिलहाल सुखवीर सिंह को पद नहीं दिया गया है। इस बात से संकेत मिलता है कि उनकी लोक निर्माण विभाग में बतौर प्रमुख सचिव वापसी हो सकती है।
असल में जब 13 दिसंबर 2023 को मोहन यादव सरकार बनी थी तब सुखवीर सिंह ही पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव थे। वे उन अफसरों में शामिल हैं जिन्हें मोहन सरकार बनने के कुछ दिनों बाद ही हटा दिया गया। उनके बाद प्रमुख सचिव बनाए गए आईएएस डीपी आहूजा को भी छह माह बाद हटा दिया गया। तब यह दायित्व आईएएस केसी गुप्ता को दिया गया था।
कुछ शिकायतों के बाद दिसंबर 2024 में केसी गुप्ता को हटा कर पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव का अतिरिक्त प्रभार एसीएस ऊर्जा नीरज मंडलोई को दिया गया है। तब से राज्य सरकार किसी उपयुक्त अफसर को इस विभाग में भेजने का मन बना रही है। सुखवीर सिंह की सेवाएं निर्वाचन आयोग से वापस मांगने के पीछे यही सोच लगती है। अब माना जा रहा है कि नई तबादला सूची में प्रतीक्षारत आईएएस सुखवीर सिंह को लोक निर्माण विभाग का प्रमुख सचिव बना दिया जाएगा।