सत्याग्रह का रास्ता अपनाएंगे हुकुमचंद मिल के मजदूर, मिल बंदी की बरसी पर 12 दिसंबर को मनाएंगे काला दिवस

30 साल से न्याय की बाट जोह रहे मिल के मजदूर, 1991 में बिना नोटिस बंद कर दी गई थी कपड़ा मिल, हाई कोर्ट ने दिया था मिल की जमीन बेचकर मजदूरों का बकाया लौटाने का आदेश, सरकार ने नहीं की कार्रवाई

Updated: Dec 06, 2021, 10:32 AM IST

इंदौर। 30 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हुकुमचंद मिल के मजदूरों को हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी उनका हक अब तक नहीं मिला है। 1991 में बिना नोटिस बंद की गई मिल के मजदूरों को उनका वेतन ग्रेजुएटी और किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया गया। अपने वेतन की आस में दिल में लिए करीब 2200 से ज्यादा मजदूरों की मौत हो गई, 70 मजदूरों ने बदहाली से तंग आकर आत्महत्या कर ली। सैकड़ों मजदूर इलाज के लिए इधर-उधर की ठोकरें खा रहे हैं। उनका परिवार गरीबी और बदहाली में जीने को मजबूर हैं।

साल 2007 में हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि मजदूरों को 229 करोड़ रुपये भुगतान किया जाए। लेकिन 15 सालों में किसी तरह का कोई मुआवजा नहीं मिला है। अब एक बार फिर मजदूरों ने एक जुट होकर न्याय की गुहार करने की तैयारी की है। हुकमचंद मिल बंदी के 30 साल होने पर 12 दिसंबर को मिल के हजारों मजदूर मिल गेट पर जमा होकर एक बार फिर न्याय की गुहार लगाएंगे। वे वहां काली पट्टी बांधकर काला दिवस मनाएंगे। कुछ दिनों पहले ही मजदूरों ने अपनी मांगों के समर्थन में सामूहिक उपवास रखकर सरकार की सद्बुद्धि के लिए यज्ञ किया था। बड़ी संख्या में मजदूरों ने कालका माता मंदिर इंदौर में भगवान को ज्ञापन सौंपा था और प्रदेश सरकार की सदबुद्धि की कामना की थी। 

मजदूरों का आरोप है कि 15 साल पहले हाई कोर्ट ने मजदूरों के पक्ष में फैसला दिया था। कोर्ट ने 229 करोड़ रुपये का मुआवजा तय किया था, लेकिन प्रदेश सरकार के नकारात्मक रवैये की वजह से 30 साल बाद भी मजदूरों को उनका हक नहीं मिला है।मिल की जमीन बेचकर मजदूरों को मुआवजे, वेतन और ग्रेजुअटी का भुगतान किया जाना है। लेकिन सरकार की ओर से ध्यान नहीं दिए जाने की वजह से जमीन नहीं बिक पा रही है। इसलिए अब मजदूरों ने फैसला  लिया है कि अब गांधीवादी तरीकों से लगातार आंदोलन करेंगे, और अपना हक की लड़ाई लड़ेंगे।

गौरतलब है कि हुकुमचंद मिल अपने दौर का सबसे बड़ी कपड़ा मिल थी। जिसके  लिए जमीन होल्कर राजाओं ने दान की थी। 1915 में मिल की शुरूआत 21 करोड़ रुपए की लागत से सेठ हुकमचंद ने की थी। 80 के दशक में मिल की हालत खराब हो गई और 1991 में मिल को बंद करना पड़ा। वहां के हजारों मजदूर अब तक अपनी बकाया राशि के लिए भटक रहे हैं। मिल का परिसर करीब 100 एकड़ में फैला है। यहां की जमीन बेचकर नगर निगम मजदूरों का बकाया लौटाने वाला था, लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी यह काम अभी तक नहीं हुआ है।