इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन जजों को किया बर्खास्त, भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने के बाद हुई कार्रवाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट को पांच जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत मिली थी, इनमें दो जजों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया जबकि अन्य तीन जजों पर लगे आरोप सही पाए गए और उन्हें न्यायिक सेवा से बर्खास्त कर दिया गया

Updated: May 22, 2022, 12:28 PM IST

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट की इलाहाबाद बेंच ने अपने एक अहम फैसले में तीन जजों को बर्खास्त कर दिया है। उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने के बाद इन जजों के खिलाफ यह कार्रवाई की है। जबकि दो अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के ठोस सबूत नहीं मिलने के कारण हाईकोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया।

दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति को 5 न्यायिक अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप की शिकायत मिली थी। जांच के दौरान उत्तर प्रदेश में तैनात तीन न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोप सही पाए गए। ऐसे में उच्च न्यायालय ने तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया। इन्हें बर्खास्त करने की राज्यपाल को संस्तुति भेजी है। राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही ये सभी सेवामुक्त हो जाएंगे।

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रिपोर्ट्स के मुताबिक पांच न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की उच्च स्तरीय जांच की गई थी। जिसमे से दो के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं मिलने के कारण बरी कर दिया गया। उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा के जिन अधिकारियों को दोषी पाया गया है, उनमें अशोक कुमार सिंह (षष्ठम एडीजे), हिमांशु भटनागर, अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश और डॉ. राकेश कुमार नैन, विशेष न्यायाधीश, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम शामिल हैं।

बता दें कि 28 मार्च 2001 को अशोक कुमार सिंह को अतिरिक्त सिविल जज (जूनियर डिवीजन), गाजीपुर के रूप में तैनात किया गया था। 4 जुलाई 2015 को उन्हें अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश बदायूं के रूप में नियुक्त किया गया। बीते 11 जुलाई 2015 को उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। 

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वहीं हिमांशु भटनागर को 19 मार्च, 1996 को अतिरिक्त सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में नियुक्त किया गया। उन्हें 16 अप्रैल 2021 को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बलिया में तैनात किया गया था। इसके अलावा डॉ. राकेश कुमार नैन ने 11 अगस्त, 1999 को प्रदेश की न्यायिक सेवा में आए थे। इस दौरान वह स्पेशल जज (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण) अधिनियम), सिद्धार्थ नगर रहे हैं। तीनों न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ मिलीं भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच के बाद आरोप सही पाए गए हैं।