भीलवाड़ा से हारा कोरोना, अब देश जीतना सीखेगा

देश के सबसे पहले कोरोना जोन बने भीलवाड़ा ने वायरस के खिलाफ महायुद्ध जीत लिया है। यहां 20 दिनों में कोरोना को हरा दिया गया। जानते हैं यह सब कैसे संभव हुआ।

Publish: Apr 10, 2020, 03:36 AM IST

Bhilwara model
Bhilwara model

देश मे कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में राजस्थान का भीलवाड़ा ज़िला इस महामारी से सबसे अधिक प्रभावित था। मार्च माह में यहां कोरोना मरीजों की तादाद बेकाबू हो रही थी। लेकिन राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के प्रयासों से जिले में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या धीरे धीरे नियंत्रित होती जा रही है। क्लस्टर कंटेनमेंट का यह मॉडल देशभर में लागू हो रहा है, अब कोरोना से लड़ने का तरीका पूरा देश भीलवाड़ा से सीखेगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले 9 दिनों में कोविड 19 का केवल एक मरीज भीलवाड़ा में मिला है। 30 मार्च को ये मरीज मिला था। इस तरह कोरोना संक्रमण पर काबू पाने में भीलवाड़ा मॉडल देश मे नजीर बनकर उभरा है। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि यहां कोरोना संक्रमण की स्थिति में लगातार सुधार हो रहा है पर 12 अप्रैल तक स्थिति पर नजर रखी जाएगी। गौरतलब है कि 20 मार्च को कोरोना संक्रमण का पहला मरीज मिलने के बाद ही भीलवाड़ा में कर्फ्यू लगाकर जिले की सीमाएं सील कर दी गई थीं। लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस बीच लोगों को जरूरी सामानों की आपूर्ति होती रही। 20 मार्च से 14 दिन के लिए लगा ये प्रतिबंध 3 अप्रैल को समाप्त हो गया। पर 3 अप्रैल से कड़े प्रतिबंधों के साथ कर्फ्यू और बढ़ा दिया गया। स्थानीय प्रशासन ने लोगों के घरों तक जरूरी सामानों को पहुंचाने के लिए एक टाइम टेबल बनाया, जिससे कि वो घरों से बाहर न निकलें।13 अप्रैल को कर्फ्यू का फेज खत्म हो रहा है। इस बीच कोरोना मरीजों की पहचान करने और उनका टेस्ट करने के लिए यहां युद्ध स्तर पर अभियान चलाया गया। कोरोना संक्रमित लोगों को आइसोलेट करके उनका उपचार सुनिश्चित किया गया। कर्फ्यू और प्रतिबंधों से प्रशासन को कोरोना की बढ़ती चेन को तोड़ने में सफलता मिली।

भीलवाड़ा के स्थानीय प्रशासन का कहना है कि मदद के लिए राज्य सरकार द्वारा जयपुर और उदयपुर से भेजी गई टीमों के सहयोग से ही कोरोना से जंग में उल्लेखनीय सफलता मिली है।

शुरुआत में ही सख्‍ती दिखाई

19 मार्च को पहला मरीज आया। अगले दिन पांच और मरीज आते ही जिला कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने कर्फ्यू लगा दिया। रोज कई मीटिंगें, अफसरों से फीडबैक और प्लानिंग। सरकार को रिपोर्टिंग। देर रात सोना। जल्दी उठकर फिर वही रूटीन। 3 अप्रैल को 10 दिन का महाकर्फ्यू। यही कड़ा फैसला महायुद्ध में मील का पत्थर साबित हुआ। गंभीर रोगियों की मौत को छोड़ दें तीन डॉक्टर सहित 21 संक्रमित ठीक कर दिए। अब 4 मरीज हैं।  सबसे पहले प्रशासन ने संक्रमित स्टाफ वाले अस्पताल को सील करवाया। 22 फरवरी से 19 मार्च तक आए मरीजों की सूची निकलवाई। 4 राज्यों के 36 व राजस्थान के 15 जिलों के 498 मरीज आए। इन सभी के कलेक्टर को सूचना देकर उन्हें आइसोलेट कराया। अस्पताल के 253 स्टाफ व जिले के 7 हजार मरीजों की स्क्रीनिंग की।

पहली बार 25 लाख की स्क्रीनिंग

भीलवाड़ा जिले में देश की सबसे ज्‍यादा 25 लाख लोगों की स्क्रीनिंग कराई गई। छह हजार कर्मचारी जुटे। मरीजों के संपर्क में आए लोगों की पहचान की गई। 7 हजार से अधिक संदिग्ध होम क्वारैंटाइन में रखे। एक हजार को 24 होटलों, रिसोर्ट व धर्मशालाओं में क्वारैंटाइन किया।

आइसोलेशन वार्ड में बदलता रहाा स्‍टॉफ

जिले के राजकीय अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए बनाया आइसोलेशन वार्ड। इसमें कार्यरत डॉक्टर्स व मेडिकल स्टाफ की हर सप्ताह ड्यूटी बदली। वे कोरोना से संक्रमित न हों, इसलिए सात दिन की ड्यूटी के बाद उन्हें भी 14 दिन क्वारंटीन में रखा। नतीजा, अब तक 69 स्टाफ में से एक भी संक्रमित नहीं हुआ।

जिले की सीमाएं सील, परिवहन बंद

प्रशासन ने जिले की सीमाएं सील कर दीं। 20 चेक पोस्ट बनाकर कर्मचारी तैनात कर दिए, ताकि न कोई बाहर से आ सके, न जिले से बाहर जा सके। शहर व जिले में रोडवेज व प्राइवेट बसें सहित सभी तरह के वाहन व ट्रेन भी बंद करवाए। संक्रमित आ-जा न सके। कर्फ्यू में लोगों को खाने-पीने का सामान भी मिलता रहे। इसके लिए सहकारी भंडार के जरिये वाहनों से घर-घर राशन सामग्री, फल-सब्जियां व डेयरी के जरिये दूध पहुंचाया गया। श्रमिकों, असहाय व जरूरतमंदों को निशुल्क भोजन पैकेट व किराना सामान भेजा।