वैक्सीन की दूसरी डोज जल्दी लें, गैप बढ़ने से कम होगा एंटीबॉडी: लैंसेट 

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल द लैंसेट में छपी एक स्टडी के मुताबिक डेल्टा वेरिएंट से मुकाबला करने के लिए दो डोज का गैप कम करना होगा, पत्रिका के मुताबिक ज्यादा गैप से एंटीबॉडी कम होते हैं

Updated: Jun 05, 2021, 04:16 AM IST

Photo Courtesy: NDTV
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नई दिल्ली। भारत में फाइजर वैक्सीन की मंजूरी मिलने से पहले एक स्टडी ने विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। ब्रिटिश मेडीकल जर्नल द लैंसेट ने एक नए अध्ययन में पाया है कि फाइजर की वैक्सीन कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ बेहद कम प्रभावी है। पत्रिका ने यह भी कहा है कि डेल्टा वेरिएंट से मुकाबला करने के लिए दो डोज का गैप कम करना होगा। डेल्टा वेरिएंट कोरोना का वह स्ट्रेन है जो सबसे पहले भारत में फैला था और इसे दूसरी लहर के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। 

अध्ययन में कहा गया है कि डेल्टा वेरिएंट के प्रति एंटीबॉडी रेस्पॉन्स उन लोगों में और भी कम है, जिन्हें सिर्फ एक खुराक मिली है। इतना ही नहीं खुराक के बीच ज्यादा अंतर डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी को काफी कम कर सकता है। यानी वैक्सीन की डोज के बीच यदि गैप कम होता है तो यह डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ ज्यादा प्रभावी होगा। 

लैंसेट के इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि वायरस का पहचान करने और इसके खिलाफ लड़ने वाला एंटीबॉडी बुजुर्ग लोगों में कम पाई जा रही है। साथ ही एंटीबॉडी का स्तर समय के साथ कम होता जा रहा है। ऐसे में अति संवेदनशील लोगों को एक्स्ट्रा बुस्टर डोज की आवश्यकता होगी। यानी टीके का दो डोज ले चुके लोगों को भी एक्स्ट्रा डोज देने की जरूरत है।

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लैंसेट का अध्ययन ब्रिटिश सरकार के उस प्लान को सही साबित करता है जिसके तहत दो डोज के बीच अंतर को घटाया जा रहा है। पत्रिका ने पाया है कि फाइजर के एक टीके के बाद लोगों में डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ कम एंटीबॉडी उत्पन्न हो रही है। यह अध्ययन 250 लोगों के खून की जांच में पाए गए एंटीबॉडी के विश्लेषण के जरिए किया गया, जिन्होंने फाइजर का एक या दोनों टीका लिया था। वैज्ञानिकों ने 5 अलग वेरिएंट वाले वायरस को कोशिकाओं में घुसने से रोकने के लिए एंडीबॉडी की क्षमता जांची, जिसे न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी कहा जाता है।