Delhi Riots: ज़ी न्यूज को हाईकोर्ट की कड़ी फटकार, आरोपी का कथित बयान सार्वजनिक करने का मामला

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा जी न्यूज कोई अभियोग चलाने वाली संस्था नहीं, मीडिया संस्थान का रवैया बेपरवाह, अपने स्रोत की जानकारी दे

Updated: Oct 20, 2020, 05:41 PM IST

Photo Courtesy: DNA
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नई दिल्ली। उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगो में एक आरोपी के कथित इकबालिया बयान को सार्वजनिक करने के लिए जी न्यूज को दिल्ली हाई कोर्ट की सख्ती का सामना करना पड़ रहा है। मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि जी न्यू कोई अभियोग चलाने वाली संस्था नहीं है और जिस दस्तावेज का बहुत कम महत्व है, उसे जी न्यूज ने ऐसे पेश किया है, जैसे उसी से आरोपी का अभियोग साबित होना हो। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस विभू बखरू ने कहा कि  चैनल ने तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने की सारी सीमाएं पार कर दी हैं। कोर्ट ने कहा कि इस दस्तावेज को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए था। 

दूसरी तरफ कोर्ट ने जी न्यूज से अपने स्रोत की जानकारी भी सार्वजनिक करने को कहा। इसके बदले में मीडिया संस्थान ने कहा कि वह बंद लिफाफे में उस पत्रकार की जानकारी दे सकता है, जिसे यह सूचना मिली। कोर्ट ने यह मांग खारिज करते हुए कहा कि एक तरफ आप उस दस्तावेज को सार्वजनिक करते हैं जिसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन अपनी बारी आने पर बंद लिफाफे की बात करते हैं। 

इससे पहले पिछले सप्ताह भी इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जी न्यूज से अपने स्रोत की जानकारी सार्वजनिक करने को कहा था। इसका जवाब देते हुए मीडिया संस्थान के वकील विजय अग्रवाल ने प्रेस काउंसिल एक्ट के सेक्शन 15 (2) का जिक्र किया था। अग्रवाल ने कहा था कि यह सेक्शन किसी भी अखबार, न्यू एजेंसी, संपादक और पत्रकार को अपना स्रोत सार्वजनिक ना करने का अधिकार देता है। 

कोर्ट ने कहा कि मीडिया के अधिकार और एक व्यक्ति के संवैधानिक अधिकार के बीच संतुलन बनाना उसकी जिम्मेदारी है। इसपर अग्रवाल ने कहा कि आरोपी तो पहले ही कह चुका है कि वह भारतीय संविधान के प्रति श्रद्धा नहीं रखता। जस्टिस बखरू को अग्रवाल की यह टिप्पणी पसंद नहीं आई और उन्होंने तल्ख लहजे में कहा, "मुझे लगता है कि आप यहां सीमा लांघ रहे हैं। आपके पास इस तरह के आरोप लगाने के लिए कोई आधार नहीं है। आप अभियोग चलाने वाली संस्था नहीं हैं। हमने पाया है कि आपका रवैया बेपरवाह है। यह जानने के लिए दस्तावेज लीक कैसे हुए, पुलिस ने खुद एक जांच समिति बनाई है। कृपया याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी भी तरह का आरोप लगाने से बचें।"

कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19 (1) के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी ऐसा अधिकार नहीं है, जिसपर रोक नहीं लगाई जा सकती। पहली नजर में हमें लगता है कि आपके पास कोई तर्क नहीं है। जिन पुलिकर्मियों ने यह दस्तावेज लीक किया है, उनके ऊपर तो कार्रवाई होगी ही। 

कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या किसी मीडिया संस्थान के पास यह अधिकार है कि वह चार्जशीट दाखिल होने से पहले और यहां तक की आरोपी को भी जानकारी मिलने से पहले उससे जुड़ा दस्तावेज सार्वजनिक कर दे। इसपर जी न्यूज के वकील ने कहा कि मीडिया ऐसा करता रहा है। कोर्ट ने कहा कि वह इस संबंध में खोजबीन करेगा और देखेगा कि मीडिया के पास यह अधिकार है या नहीं है। 

यह पूरी सुनवाई उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों में आरोपी आसिफ इकबाल तान्हा की याचिका पर हो रही है। आसिफ जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र हैं और वे सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों का एक मुख्य चेहरा थे। उन्होंने अपनी याचिका में उनके कथित बयान के लीक होने और मीडिया द्वारा सार्वजनिक किए जाने के समय पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह दस्तावेज ऐसे समय में लीक हुआ जब एक ट्रायल कोर्ट उनकी जमानत याचिका पर विचार करने वाला था। उनका मानना है कि दस्तावेज क सार्वजनिक होने से न्याय प्रक्रिया को भटकाने की कोशिश की गई है। इस मामले में अगली सुनवाई 23 अक्टूबर को होगी।