देवभूमि यूनिवर्सिटी का विवादित आदेश, PM मोदी के इवेंट में शामिल होने पर मिलेगा 50 नंबर

देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय ने पीएम मोदी के कार्यक्रम में भाग लेने वाले बीटेक और बीसीए छात्रों को 50 आंतरिक अंक देने की घोषणा की है। विश्वविद्यालय ने इसे भारतीय ज्ञान प्रणाली का हिस्सा बताया है।

Updated: Nov 08, 2025, 08:00 PM IST

उत्तराखंड। देहरादून के देवभूमि उत्तराखंड विश्वविद्यालय में रविवार को होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम से पहले एक अजीबो-गरीब आदेश ने हलचल मचा दी है। विश्वविद्यालय ने बीटेक और बीसीए द्वितीय वर्ष के छात्रों को निर्देश दिया है कि वे कार्यक्रम में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहें। ऐसा करने पर उन्हें विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें इनाम देने का वादा किया है। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से छात्रों को इनाम के तौर पर  50 आंतरिक अंक का इनाम दिया जाएगा।

विश्वविद्यालय प्रशासन का दावा है कि प्रधानमंत्री मोदी का यह कार्यक्रम भारतीय ज्ञान प्रणाली पाठ्यक्रम का हिस्सा है। इसलिए छात्रों की भागीदारी इस कार्यक्रम में बेहद जरूरी है। दिलचस्प बात यह है कि यह आदेश रविवार को जारी हुआ, उस दिन जब आमतौर पर छात्रों को अवकाश मिलता है। प्रशासन को डर था कि अवकाश के दिन छात्र कार्यक्रम में नहीं आएंगे इसलिए अंकों का प्रलोभन देकर भीड़ जुटाने की कोशिश की गई है।

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प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी वाले इस कार्यक्रम को लेकर विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि छात्रों को पीएम से बातचीत का अवसर मिलेगा। हालांकि, इस शैक्षणिक पहल की आड़ में सत्ता की छाया साफ झलकती है जहां शिक्षा से ज्यादा ध्यान उपस्थिति और प्रदर्शन पर दिया जा रहा है। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इस नोटिस को एक्स पर साझा करते हुए तंज कसा है। उन्होंने पोस्ट में लिखा,“अगर छात्र कार्यक्रम में मोदी... मोदी... के नारे लगाएंगे तो क्या उन्हें बोनस अंक भी दिए जाएंगे?” उनका यह सवाल सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया और लोगों ने शिक्षा संस्थानों की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

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प्रधानमंत्री मोदी पर पहले से ही संस्थागत दुरुपयोग और जांच एजेंसियों को विपक्ष के खिलाफ इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में अब शैक्षणिक संस्थानों में इस तरह की पहल को कई लोग शिक्षा पर राजनीतिक असर मान रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने मामले पर सफाई दी है कि कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों को भारतीय परंपरा और ज्ञान प्रणाली से जोड़ना है। लेकिन आलोचक इसे सत्ता के प्रभाव का विस्तार बता रहे हैं। फिलहाल, यह मामला सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है, जहां सवाल सिर्फ इतना है कि क्या अब शिक्षा भी अंकों के बदले समर्थन की राजनीति का हिस्सा बन चुकी है?

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