स्वीडन की रिपोर्ट का दावा, भारत अब लोकतंत्र नहीं, चुनावी तानाशाही है, राहुल गांधी ने जताई चिंता

V-Dem Institute Report: स्वीडन की संस्था की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में लोकतंत्र की हालत पाकिस्तान जैसी, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देश इस मामले में भारत से बेहतर स्थिति में हैं

Updated: Mar 11, 2021, 04:35 PM IST

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने देश में लोकतंत्र की मौजूदा हालत पर चिंता जाहिर की है। राहुल गांधी ने स्वीडन की प्रतिष्ठित संस्था वी-डेम इंस्टीट्यूट (V-Dem Institute) की ताजा रिपोर्ट में भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (World’s Largest Democracy) की जगह चुनावी तानाशाही  (Electoral Autocracy) की श्रेणी में रखे जाने की खबर पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए अपनी चिंता का इजहार किया है।

राहुल गांधी ने वी-डेम इंस्टीट्यूट की ताज़ा रिपोर्ट से जुड़ी एक ख़बर को शेयर करते हुए लिखा है, “भारत अब एक लोकतांत्रिक देश नहीं रह गया है।”

राहुल गांधी ने जिस ख़बर की हेडिंग शेयर की है, उसमें लिखा है कि भारत अब पाकिस्तान जितना ही निरंकुश और बांग्लादेश से बदतर स्थिति में है। इस ख़बर में यह भी बताया गया है कि हाल ही में जारी फ़्रीडम हाउस की रिपोर्ट में जहां भारत को आंशिक रूप से आज़ाद देश बताया था, वहीं वी-डेम इंस्टीट्यूट ने तो अब हमें विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की जगह ‘इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी’ या ‘चुनावी तानाशाही’ का दर्जा दे दिया है।

मीडिया की आवाज़ कुचली जा रही, मानहानि, राजद्रोह के कानूनों का बेजा इस्तेमाल

वी-डेम इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि 137 करोड़ की आबादी वाला दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब भारत ‘इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी’ यानी चुनावी तानाशाही में बदल गया है। भारत को पहले ‘इलेक्टोरल डेमोक्रेसी’ (Electoral Democracy) की श्रेणी में रखा जाता था। रिपोर्ट में भारत को चुनावी तानाशाही की श्रेणी में रखने के लिए स्वतंत्र मीडिया की आवाज़ को कुचले जाने के साथ-साथ मानहानि और राजद्रोह के क़ानूनों का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने को भी एक बड़ी वजह बताया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अब उतनी ही ‘इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी’ है जितनी पाकिस्तान में। इतना ही नहीं, रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में भारत की स्थिति अपने बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसियों से कहीं बदतर है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बीजेपी के सत्ता में आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सरकार आलोचकों को खामोश कराने के लिए कानून का गलत इस्तेमाल कर रही है।

मोदी राज में 7,000 से अधिक लोगों पर राजद्रोह का आरोप लगा : रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक़ “भारत में पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने आम तौर पर अपनी आलोचना करने वालों के ख़िलाफ़ राजद्रोह, मानहानि और आतंकवाद विरोधी कानूनों का इस्तेमाल किया है। रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के सत्ता में आने के बाद 7,000 से अधिक लोगों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है। इनमें अधिकांश लोग सत्तारूढ़ पार्टी के आलोचक हैं।”  रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वजह से भारत लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स (LDI) पैमाने पर काफ़ी नीचे खिसक गया है।

निरंकुशता वायरल हो रही है

वी-डेम इंस्टीट्यूट की इस रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘निरंकुशता वायरल हो रही है’ (Autocratisation goes viral), जिसमें बताया गया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान सारी दुनिया में लोकतांत्रिक अधिकारों का दायरा सीमित हुआ है और निरंकुशता बढ़ी है। इंस्टीट्यूट के मुताबिक उसने इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए दुनिया के 202 देशों से जुड़े 3 करोड़ आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। ये आंकड़े साल 1789 से  2020 तक के हैं। इंस्टीट्यूट के मुताबिक यह दुनिया में डेमोक्रेसी के बारे में जुटाया गया तथ्यों का सबसे बड़ा संग्रह है।

वी-डेम इंस्टीट्यूट की इस रिपोर्ट के आने से कुछ ही दिनों पहले अमेरिकी थिंक टैंक फ्रीडम हाउस ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत सरकार पर सवाल खड़े किये थे। हालांकि उम्मीद के मुताबिक़ ही मोदी सरकार फ्रीडम हाउस की ‘डेमोक्रेसी अंडर सीज’ शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट को ग़लत बताते हुए खारिज कर चुकी है।

केंद्र सरकार का दावा है कि एक स्वतंत्र देश के रूप में भारत का दर्जा घटाकर ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ करना गलत और अनुचित है। सरकार का कहना है कि भारत के कई राज्यों में अन्य दलों की सरकारें हैं, जो संघीय ढांचे के तहत काम करती हैं। सरकार का दावा है कि देश में सभी चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हुए हैं, जिन्हें एक स्वतंत्र संस्था करवाती है। इससे भारत में जीवंत लोकतंत्र की उपस्थिति का पता चलता है।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने रिपोर्ट के कई बिंदुओं पर सवाल उठाते हुए दावों को गलत ठहराया है। केंद्र सरकार ने भी कहा है कि देश में सभी नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार किया जाता है, जैसा कि देश के संविधान में निहित है और सभी क़ानूनों का पालन बिना किसी भेदभाव होता है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में देशद्रोह कानून, लॉकडाउन, मानवाधिकार, पत्रकारों की स्वतंत्रता आदि से जुड़े किए गए दावों को गलत ठहराया है।