पर्यावरण इंडेक्स में 180 देशों में सबसे निचले पायदान पर भारत, अबतक का सबसे बुरा प्रदर्शन

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का सबसे कम स्कोर करना गंभीर चिंता का मुद्दा है, 180 देशों की सूची में सबसे पीछे भारत

Updated: Jun 09, 2022, 05:50 AM IST

Photo Courtesy: HT
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नई दिल्ली। भारत को पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक-2022 में सबसे नीचे स्थान दिया गया है। अमेरिका स्थित संस्थानों ने उनके पर्यावरणीय प्रदर्शन के लिए तय किए गए मानक के आधार पर 180 देशों की सूची में भारत को सबसे नीचे रखा है। येल सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल लॉ एंड पॉलिसी और सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क, कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में प्रकाशित 2022 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में डेनमार्क सबसे ऊपर है।

ईपीआई (EPI) को तैयार करते समय 40 परफॉरमेंस मानकों का इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें 11 कैटेगरीज़ में बांटा गया है। इन मानकों से पता चलता है कि कोई देश पर्यावरण के लिए तय नीतिगत लक्ष्यों से अभी कितनी दूर है। इसी आधार पर इस इंडेक्स में क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस, एनवायरमेंटल हेल्थ और इकोसिस्टम वाइटैलिटी के आधार पर 180 देशों की रैंकिंग तय की जाती है। ताजा इंडेक्स में 180 देशों में सबसे कम 18.9 का स्कोर भारत को मिला है। यानी पर्यावरण संरक्षण के मामले में भारत सबसे पिछड़ा देश हो गया है।

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इस सूची में डेनमार्क सबसे ऊपर है। डेनमार्क के बाद ब्रिटेन और फिनलैंड का नंबर है। डेनमार्क, ब्रिटेन और फिनलैंड को हाल के वर्षों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के चलते ऊपर रखा गया है। वहीं सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाले देशों में भारत के बाद म्यांमार (19.4), वियतनाम (20.1), बांग्लादेश (23.1) और पाकिस्तान (24.6) स्कोर के साथ शामिल है


चीन भी इस इंडेक्स में 28.4 अंक हासिल करके 161 वें स्थान पर है। रूस इस सूची में 112वें स्थान पर है।
पश्चिम के 22 अमीर लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका 22वें स्थान पर है, जबकि पूरी लिस्ट में उसका नंबर 42वां है। 
ईपीआई रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप प्रशासन के दौरान पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी के चलते अमेरिका की रैंकिंग कम हुई है।

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इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2050 तक चीन दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसें रिलीज करने वाला देश होगा, जबकि भारत इस लिहाज से दूसरे नंबर पर होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ डेनमार्क और ब्रिटेन जैसे चंद देश ही हैं जो वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस न्यूट्रलिटी की स्थिति में पहुंच सकते हैं जबकि चीन, भारत और रूस जैसे अहम देश उलटी दिशा में बढ़ रहे हैं।