Labour Codes: 6 सवालों में जानिए क्या है लेबर कोड बिल, क्यों हो रहा है विरोध

Labour laws in India: लेबर कोड के जरिए श्रम कानूनों में हुए बड़े बदलाव,विपक्ष और श्रम संगठनों ने बताया मजदूर विरोधी

Updated: Sep 27, 2020, 02:38 AM IST

Photo Courtesy: The Caravan
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नई दिल्ली। श्रम कानूनों में बड़े बदलावों को लेकर पेश किए गए तीन लेबर कोड बिल राज्य सभा में पारित कर दिए गए हैं। ये तीनों कोड पिछले साल पेश किए गए श्रम विधेयकों की जगह लाए गए हैं और लोकसभा में पहले ही पारित हो चुके हैं। सरकार इन्हें आधुनिक भारत के निर्माण के लिए जरूरी बता रही है। वहीं दूसरी तरफ विपक्ष और मजदूर संगठन इनका कड़ा विरोध कर रहे हैं। यह आशंका भी जताई जा रही है कि इन विधेयकों के कानून बन जाने के बाद मजदूरों का हड़ताल करने का मूलभूत अधिकार खत्म हो जाएगा, साथ ही नौकरी की सुरक्षा भी खत्म हो जाएगी। ऐसे में कुछ सवालों के जरिए पूरी कहानी समझना जरूरी है। 

1. कौन-कौन से कोड पास किए गए हैं

केंद्र सरकार ने तीन लेबर कोड पास किए हैं- ऑक्युपेशनल सेफ्टी एंड वर्किंग कंडीशन कोड 2020, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020 और द कोड ऑफ सोशल सिक्योरिटी 2020। इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020 में सरकार ने मजदूरों की हड़ताल पर पाबंदियां लगाने का प्रस्ताव रखा है। साथ ही उद्योगपतियों को 300 तक मजदूर होने पर अपने मन मुताबिक छंटनी करने का अधिकार देने का प्रस्ताव भी इस कोड में है। पहले यह संख्या 100 थी। इसके लिए उन्हें अब सरकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। 300 से अधिक मजदूर होने पर सरकार की अनुमति लेनी होगी, लेकिन अगर अधिकारियों की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो इसे सहमति माना जाएगा। इसी कोड में यह प्रस्ताव भी है कि मजदूरों को हड़ताल पर जाने से पहले दो महीने का नोटिस देना होगा। इस कोड के तहत राज्य सरकारों को अपनी जरूरत के मुताबिक नियमों की बदलाव करने की इजाजत होगी। 

ऑक्युपेशनल सेफ्टी एंड वर्किंग कंडीशन कोड में में भी तरह-तरह के प्रावधान हैं। यह कहता है कि कामकाज की जगह पर लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। नौकरी पर रखते समय अप्वाइंटमेंट लेटर देना जरूरी होगा। कॉन्ट्रैक्ट स्तर पर भर्ती के लिए केवल एक ही लाइसेंस की जरूरत होगी और प्रवासी मजदूरों के लिए सार्वजनिक खाद्य सुरक्षा जैसे फायदे मिलेंगे। इसी तरह सोशल सिक्योरिटी कोड में सरकार ने गिग इकॉनमी को ध्यान में रखते हुए कुछ प्रस्ताव दिए हैं। हालांकि, सरकार ने कहा है कि इस कोड के तहत मजदूरों की भलाई से जुड़ी किसी योजना को सरकार पूरी तरह से फंड नहीं करेगी।  

2. क्या है सरकार का कहना?

इन कोड्स को लोक सभा में पेश करते हुए केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि इन्हें आधुनिक भारत की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि इन बदलावों के बाद भारत वैश्विक स्तर पर प्रतियोगिता कर पाएगा। उन्होंने कहा कि आज जरूरत है कि उद्योगों और मजदूरों के अधिकारों में एक संतुलन बनाया जाए। 

सरकार का यह भी कहना है कि पुराने कानूनों में लाइसेंसिंग, कागजी और प्रशासनिक कार्यवाही में बहुत ज्यादा वक्त बर्बाद होता है। इससे कंपनियों का वक्त बर्बाद होता है और अच्छे परिणाम नहीं आते थे। इन बदलावों से भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ेगी। 

3. कौन कर रहा है विरोध? 

विपक्ष और मजदूर संगठन इन कोड का विरोध कर रहे हैं। लोक सभा में जब यह कोड पेश किए गए थे, तब कांग्रेस, सीपीएम और डीएमके ने विरोध जताया था। कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कहा था कि इन बदलावों के बाद मजदूर एक वस्तु भर बनकर रह जाएंगे। थरूर ने कहा कि सरकार मजदूरों को पूंजीपतियों की दया पर छोड़ने की साजिश रच रही है। 

दूसरी तरफ विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे समय में जब देश में बेरोजगारी संकट चरम पर है, तब कंपनियों और उद्योगपतियों को अपने मत मुताबिक छंटनी करने का अधिकार बर्बादी लेकर आएगा। उनका मानना है कि इन बदलावों से बड़े स्तर पर आर्थिक-सामाजिक तनाव पैदा होगा क्योंकि इससे मजदूरों की जॉब और सोशल सिक्योरिटी दोनों खत्म हो जाएगी। 

वर्किंग पीपल्स चार्टर के नेशनल कॉर्डिनेटर चंदन कुमार ने हमें बताया कि इन बदलावों से आजादी के बाद मजदूर अधिकारों के लिए किया गया संघर्ष एक झटके में खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों के अधिकारों की तरह ही केंद्र सरकार ने मजदूरों के अधिकारों पर भी सबसे बड़ा प्रहार कर दिया है। 

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5. मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार का क्या होगा? 

पूंजीपतियों के अत्याचार के सामने हड़ताल करना मजदूरों का सबसे बड़ा हथियार होता है। इंडंस्ट्रियल रिलेशंस कोड के तहत उनके इस अधिकार पर सबसे बड़ी चोट की गई है। एक तरीके से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। 

इस कोड में प्रावधान है कि कोई भी मजदूर 60 दिन का नोटिस दिए बिना हड़ताल पर नहीं जा सकता है। साथ ही किसी विवाद पर अगर ट्राइब्यूनल में सुनवाई चल रही है तो उस सुनवाई के दौरान और सुनवाई पूरी होने के 60 दिनों के बाद तक भी मजदूर हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं। इस तरह से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को एक तरीके से समाप्त कर दिया गया है। 

6. मनमाने तरीके से नौकरी से निकाला जाएगा?

इंडस्ट्रियल रिलेशल कोड में अब 300 मजदूरों वाले उपक्रम में मालिक को मन मुताबिक छंटनी करने का अधिकार होगा। 300 से ज्यादा मजदूर होने पर मालिक को सरकार की सहमति लेनी होगी। लेकिन अगर प्रशासनिक अधिकारी कोई जवाब नहीं देते हैं तो इसे सरकार की मंजूरी ही माना जाएगा। 

इसका मतबल साफ है कि मजदूरों को कभी भी नौकरी से निकाला जा सकता है। मालिक मजदूरों से चाहे जितनी खराब परिस्थितियों में काम कराएं, उनका शोषण करें, मजदूरों के विरोध करने पर वह उन्हें नौकरी से निकाल सकता है। साथ ही अपनी लागत कम करने के लिए भी मालिक ऐसा कदम उठाने में जरा भी नहीं हिचकेंगे।