Malayalam Poet Passes Away: प्रसिद्ध मलयाली कवि अक्कितम अच्युतन नंबूदिरी नहीं रहे

Akkitham Achuthan Namboodiri: साहित्य के जरिए प्रेम का संदेश देने वाले 94 साल के नंबूदिरी महात्मा गांधी से प्रभावित थे

Updated: Oct 15, 2020, 06:10 PM IST

पलक्कड़। प्रसिद्ध मलयालम कवि और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता अक्कितम अच्युतम नंबूदिरी का निधन हो गया है। वे 94 वर्ष के थे। साहित्य जगत में उन्हें महाकवि के रूप में जाना गया। वे त्रिशूर के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे, जहां सुबह करीब 8 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। लिवर और फेफड़ों में संक्रमण के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 

उनका जन्म 18 मार्च 1926 को पलक्कड़ के कुमारानेल्लोर गांव में हुआ था। बचपन में ही उन्होंने संस्कृत, संगीत और ज्योतिषशास्त्र की शिक्षा ली। उन्होंने इसी गांव के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। नंबूदिरी को दर्शन का कवि माना जाता है और वे प्रेम की शक्ति में यकीन करने वाले कवि थे। अपनी कविताओं में उन्होंन प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम प्रदर्शन करने की वकालत की है। कवि होने के साथ-साथ उन्होंने पत्रकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं। 

महाकवि नंबूदिरी ने अपने पूरे जीवनकाल में कुल 47 किताबें लिखीं। कविताओं के अलावा उन्होंने नाटक, लघु कथाएं, निबंध भी लिखे। ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले वे छठे मलयाली कवि हुए। साथ ही उन्हें पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया। 

मलयाली कविता में नंबूदिरी को आधुनिकता का समावेश करने वाले कवि के रूप में जाना जाता है। हालांकि, उनके ऊपर साम्यवाद का विरोध करने के भी आरोप लगे। हालांकि, हाल ही में उन्हें सम्मानित करते हुए केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा था कि उनका साहित्य साम्यवाद के खिलाफ नहीं है। विजयन ने कहा कि नंबूदिरी तो अपने साहित्य में शोषितों का पक्ष लेते हुए दिखाई देते हैं। 

थ्रिसुर की योगक्षेम सभा का हिस्सा होते हुए महाकवि ने नंबूदिरी समुदाय में सुधार के लिए काम किया। वे महात्मा गांधी से प्रभावित थे। उन्होंने योगक्षेम सभा के जाने माने नेताओं के निजी सचिव के रूप में भी काम किया। इनमें वीटी भतरीपाद और ईएमएस नंबूदिरीपाद का नाम प्रमुख है। वे सामाजिक सुधार को लेकर प्रतिबद्ध साहित्यकार थे। 

बताया जाता है कि 8 साल की उम्र से ही उन्होंने लेखन की शुरूआत कर दी थी। वे बालमनी अम्मा, नलपत नारायण मेनन, कुतिकृष्ण मरार जैसे साहित्यकारों के अनुयायी थे। वे योगक्षेम पत्रिका के सह संपादक थे। जून 1956 से लेकर अप्रैल 1985 तक उन्होंने कोझिकोड और थ्रिसुर में ऑल इंडिया रेडियो में काम किया। अक्कितम अच्युतम नंबूदिरी ने अलग अलग साहित्य समूहों और सभाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे केरल कला समिते के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने केरल में वेदों को भी बढ़ावा दिया। 

नंबूदिरीपाद खुद को सच्चा गांधीवादी कहते थे। 1978 से लेकर 1982 तक उन्होंने गांधी जी के जीवन और काम पर रिसर्च की। महाकवि नंबूदिरीपाद ने गीता का मलयालम में अनुवाद भी किया। उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं में मधुविदु, आरंगेट्टम, कादंबिन पूकल, संचारीकल मानसा पूजा इत्यादि का नाम शामिल है।