कृषि कानूनों पर 866 शिक्षकों ने की सरकार की पैरवी, किसानों को फ़ायदा होने का किया दावा

सरकारी विश्वविद्यालयों के शिक्षकों ने कृषि क़ानूनों के मसले पर किसानों की आशंकाओं को दरकिनार करते हुए सरकारी दावों और वादों पर पूरा भरोसा ज़ाहिर किया है

Updated: Jan 02, 2021, 05:23 PM IST

Photo Courtesy: India TV
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नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर के किसानों का विरोध प्रदर्शन बढ़ता जा रहा है। देशभर के आम लोग भी इस आंदोलन में किसानों के साथ जुड़ने लगे हैं। इसी बीच देश के सरकारी विश्वविद्यालयों के 866 शिक्षकों ने मोदी सरकार की पैरवी करते हुए कृषि कानूनों के समर्थन में खुली चिट्ठी लिखी है। इस पत्र पर जिन शिक्षकों के हस्ताक्षर हैं उनमें दिल्ली विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय समेत देश के कई सरकारी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों के अलावा सात वाइस चांसलर भी शामिल हैं।

इन शिक्षकों ने अपने खुले पत्र में लोगों को भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि किसानों की थालियों से भोजन नहीं छीना जाएगा। शिक्षकों के इस अभियान को सरकार प्रायोजित हथकंडे के तौर पर देखा जा रहा है। पत्र में कहा है कि उन्हें सरकार के इस वादे पर पूरा भरोसा है कि किसानों की रोजी-रोटी सुरक्षित रहेगी और उनकी थालियों से भोजन नहीं छीना जाएगा। पत्र में दावा किया गया है कि मोदी सरकार के बनाए नये कानून कृषि को सभी प्रतिबंधों से मुक्त करके किसानों को और मज़बूत बनाएंगे।' 

पत्र में सरकारी दावों की वकालत करते हुए कहा गया है कि, 'केंद्र सरकार ने किसानों को बार-बार आश्वासन दिया है कि कृषि व्यापार पर ये तीन कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की प्रणाली को समाप्त नहीं करेंगे, बल्कि कृषि व्यापार को सभी अवैध बाजार प्रतिबंधों से मुक्त रखेंगे, मंडियों से परे बाजार खोलेंगे तथा छोटे और मझोले किसानों को प्रतिस्पर्धी मूल्यों पर उपज बेचने में सहायता प्रदान करेंगे।' 

पत्र में लिखी बातों से साफ है कि इसके जरिए कृषि कानूनों के समर्थन में माहौल बनाने की कोशिश की है। शिक्षकों के पत्र के जरिए लोगों को यह संदेश देने का प्रयास भी किया गया बौद्धिक वर्ग कृषि कानूनों के मसले पर सरकार के साथ है। साथ ही इसमें परोक्ष रूप से यह संदेश देने की कोशिश भी की गई है कि किसानों को नहीं पता कि उन्हें इन कानूनों के फायदों की जानकारी नहीं है।