मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के आरोपी बीजेपी नेताओं पर नहीं चलेगा केस, सरकारी वकील ने कोर्ट में दी अर्ज़ी

यूपी के मुज़फ़्फ़रनगर में हुए दंगों में 60 से अधिक लोगों ने गंवाई थी जान, 50 हजार से अधिक लोग हुए थे बेघर, बीजेपी के तीन विधायकों व साध्वी प्राची पर है भड़काऊ भाषण देकर दंगा भड़काने का आरोप

Updated: Dec 24, 2020, 10:35 PM IST

Photo Courtesy: India.com
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपी बीजेपी नेताओं के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने जा रही है। इस केस के आरोपियों में बीजेपी के तीन विधायक संगीत सोम, सुरेश राणा और कपिल देव अग्रवाल के अलावा वीएचपी नेता साध्वी प्राची का नाम शामिल है। राज्य सरकार ने साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर में हुए दंगों से जुड़े इस केस को वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल भी कर दी है।

मुजफ्फरनगर के शिखेड़ा थाने में दर्ज इस केस में सरधना से विधायक संगीत सोम, शामली के थाना भवन से विधायक सुरेश राणा, मुजफ्फरनगर सदर से विधायक कपिल देव अग्रवाल और साध्वी प्राची दंगा भड़काने के आरोपी हैं। सरकारी वकील राजीव शर्मा ने मुजफ्फरनगर की एडीजे कोर्ट में मुकदमा वापसी के लिए अर्जी दी है। मुकदमा वापसी की अर्जी पर फिलहाल कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया है। 7 सितंबर 2013 में नंगला मंदौड़ की महापंचायत के बाद योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा, विधायक संगीत सोम और कपिल देव के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इन तीनों नेताओं पर भड़काऊ भाषण, धारा 144 का उल्लंघन, आगजनी, तोड़फोड़ की धाराएं लगाई गई थी।

गौरतलब है कि ऐसा ही एक मामला हाल ही में कर्नाटक से भी आ चुका है, जिसमें राज्य की सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने अपने नेताओं के खिलाफ चल रहे 60 से अधिक मामले बंद करवा दिए थे। लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार के इस फैसले पर रोक लगाकर सत्ता के दम पर कानून की गिरफ्त से बच निकलने के बीजेपी नेताओं के उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है। कर्नाटक हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि इसी फैसले के तर्ज पर इलाहाबाद हाई कोर्ट को भी योगी सरकार के उस फैसले को रद्द कर देना चाहिए, जिसके तहत हिस्ट्रीशीटर सीएम के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लिए गए थे।'

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अब देखना यह होगा कि क्या उत्तर प्रदेश में भी कोर्ट की तरफ से कर्नाटक हाईकोर्ट जैसा ही कोई कदम उठाया जाता है या सरकार अपने नेताओं पर चल रहे केस वापस लेने में सफल रहती है। दिलचस्प बात यह है कि केस वापसी का एप्लीकेशन देते समय सरकार की तरफ़ से कहा जाता है कि यह फ़ैसला जनहित में लिया गया है। अब यह तो सरकार ही बता सकती है कि दंगे जैसे संगीन आरोप में घिरे सत्ताधारी नेताओं को अदालती समीक्षा से बचाने की कोशिश जनहित में कैसे हो सकती है?

कैसे भड़का था मुजफ्फरनगर में दंगा

दरअसल, 27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में दो युवकों की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इन हत्याओं के बाद 7 सितंबर 2013 को नगला मंदोर गांव इंटर कॉलेज में एक महापंचायत बुलाई गई थी, जिसके बाद पूरे घटनाक्रम को धार्मिक रंग दिया जाने लगा और मुजफ्फरनगर में एक खास समुदाय के लोगों को टारगेट किया जाने लगा।

देखते ही देखते मुज्जफरनगर में खूनी दंगों की शुरुआत हो गई जिसमें 60 से ज्यादा लोग मौत के घाट उतार दिए गए, जबकि 50 हजार से ज्यादा लोग घर-बार छोड़कर भागने को मजबूर हो गए। इस सिलसिले में 7 सितंबर, 2013 को शिखेड़ा थाने की पुलिस ने केस दायर किया था, जिसमें संगीत सोम, सुरेश राणा, कपिल देव, साध्वी प्राची और पूर्व सांसद हरेंद्र सिंह मलिक समेत चालीस लोगों का नाम शामिल था। इन लोगों पर एक समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़काने समेत कई संगीन आरोप लगाए गए थे।