बीजेपी के सामने साष्टांग हो गए हैं नीतीश, अरुणाचल में जेडीयू के विधायक तोड़े जाने पर आरजेडी का तंज

उधर उपमुख्यमंत्री रेणु देवी का कहना है कि जेडीयू के विधायक अपने मन से बीजेपी में आए हैं, अरुणाचाल प्रदेश का बिहार पर कोई असर नहीं होगा

Updated: Dec 27, 2020, 04:12 AM IST

Photo Courtesy : Business Standard
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पटना। अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू के 6 विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद आरजेडी एक के बाद एक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साध रही है। आरजेडी ने कहा है कि नीतीश कुमार अब बीजेपी के सामने पूरी तरह से साष्टांग हो चुके हैं। आरजेडी नेता शक्ति यादव ने कहा है कि नीतीश कुमार की अंतरात्मा सो चुकी है। 

आरजेडी नेता शक्ति यादव ने कहा कि आज जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होने वाली है। उससे पहले ही जेडीयू के विधायकों को बीजेपी ने अपने पाले में कर लिया। इस पूरे घटनाक्रम पर जेडीयू के प्रवक्ताओं ने चुप्पी साध ली है। जो कि जेडीयू और नीतीश कुमार की बेबसी का परिचायक है। साफ नज़र आ रहा है कि नीतीश कुमार बीजेपी के सामने साष्टांग हो चुके हैं। नीतीश कुमार की इस हालत का बिहार वासियों ने कभी अंदाज़ा नहीं लगाया था। शक्ति यादव ने कहा कि नीतीश कुमार की अंतरात्मा ही सो चुकी है। 

पूछना है तो अरुणाचल जाइए, वहां जा कर बयान लीजिए: संजय जायसवाल

अरुणाचल प्रदेश के घटनाक्रम पर जेडीयू के नेताओं ने तो चुप्पी साध ही रखी है। हालांकि वो यह कह रहे हैं कि बिहार में सब ठीक बा, लेकिन अरुणाचल प्रदेश की स्थिति पर कुछ भी बोलने से परहेज़ कर रहे हैं। बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल को ही ले लीजिए। संजय जायसवाल ने मीडिया से यह तो कह दिया कि बिहार में एनडीए के अंदर चारों दल ( बीजेपी, जेडीयू,हम और वीआईपी) एकजुट हैं लेकिन जब संजय जायसवाल से अरुणचाल में बने ताज़ा हालात के बारे में पूछा गया तो जायसवाल ने कहा कि इसका जवाब अरुणाचल जा कर लीजिए। जायसवाल ने मुस्कुराते हुए कहा कि वहां जा कर बयान लीजिए। अब यह जेडीयू और नीतीश कुमार के ऊपर है कि वो संजय जायसवाल की हंसी को किस तरह से लेते हैं। 

अपने मन से बीजेपी में आए हैं जेडीयू के विधायक : रेणु देवी, उपमुख्यमंत्री बिहार 
 बिहार की उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता रेणु देवी ने दावा किया है कि जेडीयू के विधायक बीजेपी में अपने मन से आए हैं। उनको तोड़कर बीजेपी में शामिल नहीं किया गया है। रेणु देवी का कहना है कि नीतीश कुमार हमारे अभिभावक हैं। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया है कि अरुणाचल प्रदेश का बिहार में कोई असर नहीं पड़ेगा। यहाँ रिश्तों में कोई खटास नहीं है। दूसरी तरफ नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर आरजेडी ने शुक्रवार को भी कहा था कि जल्द ही जेडीयू का बीजेपी में विलय भी हो सकता है। 

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दरअसल आज ही नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही है। उससे ठीक एक दिन पहले बीजेपी ने अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू के 6 विधायकों को बीजेपी ने अपने पाले में कर लिया। आरजेडी के दावों में भले कोई हकीकत न हो लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जेडीयू और नीतीश कुमार सिर्फ अरुणाचल में ही बैकफुट पर नहीं है। कमोबेश वैसी ही स्थिति बिहार में भी है। 

बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम आए डेढ़ महीने गुज़र चुके हैं। नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बने हुए भी एक महीने से ज़्यादा का समय बीत चुका है। नयी सरकार में नीतीश कुमार के पास पुराना पद तो है लेकिन पुराना रूतबा नीतीश कुमार के पास अब शायद नहीं रहा। यह पिछले एक महीने में हुए घटनाक्रमों से समझ में आता है। सरकार बनते ही नीतीश कुमार के विवादस्पद शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी को मंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही भ्रष्टाचार के मामले में इस्तीफ़ा देना पड़ा। राजनीतिक गलियारों में बड़े दावे के साथ यह चर्चा उठी कि नीतीश ने मंत्री से इस्तीफ़ा बीजेपी के दबाव में लिया है। चूंकि अब बीजेपी के पास जेडीयू के मुकाबले ज़्यादा विधायक हैं। इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो हैं लेकिन सरकार बीजेपी की है। 

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इसके साथ ही किसान आंदोलन पर नीतीश कुमार का रुख भी केंद्र सरकार के समर्थन में रहा। नीतीश ने कहा कि किसान ग़लतफहमी के कारण आंदोलन कर रहे हैं। आप सोच रहे होंगे कि चूंकि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं तो ऐसे में नीतीश का बीजेपी की सरकार और उसकी नीतियों का समर्थन करना कौन सा अचरज भरा है ? लेकिन ऐसा नहीं है। यह परिवर्तन बिहार चुनावों के परिणामों के बाद देखा गया है। कभी बिहार की सत्ता में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी बीजेपी के बड़े भाई की भूमिका में हुआ करती थी। तब नीतीश कुमार का बीजेपी के ऊपर नियंत्रण इस कदर होता था कि नीतीश बीजेपी के साथ गठबंधन में रहने के बावजूद अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले, नागरिकता संशोधन अधिनियम और एनआरसी जैसे मुद्दों के खिलाफ बयान दे देते थे। न सिर्फ नीतीश बल्कि उनकी पार्टी विधानसभा में बीजेपी के केंन्द्रीय नेतृत्व के फैसलों के खिलाफ स्टैंड भी लेती थी। और बिहार बीजेपी का एक नेता नीतीश की मुखालिफत नहीं करता था। चुनावी मौसम में चिराग पासवान ने जब एनडीए से अपनी दूरी बना ली, तब उस समय चिराग पासवान का भी यही कहना था कि नीतीश कुमार बिहार बीजेपी पर पूरी तरह से अपना नियंत्रण रखते हैं, और बिहार बीजेपी के ज़्यादातर नेता नीतीश कुमार के पिछलग्गू बने हुए हैं। 

अपना पोलिटिकल स्पेस बचाने के लिए नीतीश कुमार को 2019 लोकसभा चुनावों के दौरान दरभंगा में प्रधानमंत्री मोदी की एक रैली में वंदे मातरम और भारत माता की जय जैसे नारों पर चुप्पी साधे भी देखा जा चुका है। ऐसे में महज़ एक महीने के भीतर हुए ये घटनाक्रम इस और साफ इशारा करते हैं कि नीतीश कुमार अब बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री रहते हुए भी अपना ओहदा खो चुके हैं।  खुद बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार सरकार और राज्य की राजनीति में नीतीश के ओहदे को घटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बिहार में जब सरकार का गठन किया गया तब बीजेपी ने सबसे पहले नीतीश के सबसे बड़े समर्थक माने जाने वाले बीजेपी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को बिहार सरकार में जगह नहीं दी। नीतीश के वर्चस्व को ख़त्म करने के लिए बीजेपी ने सुशील मोदी को राज्यसभा भेज दिया।