मोदी का दावा, किसानों की खुशी में ही मेरी खुशी, फिर एक महीने से धरने पर क्यों बैठे अन्नदाता

पीएम मोदी ने 80 मिनट के भाषण में 20 मिनट किसानों पर बात की, 60 मिनट विपक्ष पर सियासी हमले करने में खर्च किए

Updated: Dec 26, 2020, 03:04 AM IST

Photo Courtesy : Abp news
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नई दिल्ली। दिल्ली की सीमाओं पर एक महीने से जारी प्रदर्शन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज किसानों के हित में काम करने के बड़े-बड़े दावे किए। ये भी कहा कि किसानों की खुशी में ही मेरी खुशी है। अन्नदाता की नाराज़गी का ठीकरा विपक्ष के सिर फोड़ते हुए उस पर अपना एजेंडा चलाने का आरोप लगाया और किसानों को यह समझाने का भी भरपूर प्रयास किया कि सरकार जो भी कर रही है, उनके हित में ही कर रही है।

प्रधानमंत्री मोदी इस तरह की तमाम बातें उस शानदार, चमकदार मेगा इवेंट में कहीं, जिसमें उनका संदेश देश के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंचाने के लिए विशाल टीवी स्क्रीन्स लगाए गए थे। हालांकि महज 30 किलोमीटर की दूरी पर ठंड में जान गंवा रहे किसानों से बात करने में उनकी दिलचस्पी नज़र नहीं आई।

कृषि के मुद्दे पर आयोजित इस इवेंट में मोदी ने 80 मिनट लंबा भाषण दिया, जिसमें करीब 20 मिनट किसानों के बारे में बात की। बाकी 60 मिनट प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर सियासी हमले करके खुद को सही और विरोधियो को गलत साबित करने पर खर्च किए। इस दौरान पीएम ने देश के 9 करोड़ किसानों के बैंक खातों में सरकार की तरफ से किसान सम्मान निधि की रकम ट्रांसफर किए जाने को भी अपने मेगा इवेंट का हिस्सा बना डाला। साथ ही यह दावा भी करते रहे कि विपक्ष देश के किसानों को गुमराह कर रहा है और ममता बनर्जी बंगाल के किसानों तक इस योजना का फायदा पहुंचने नहीं दे रहीं हैं।

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ममता बनर्जी पर पीएम मोदी का वार

प्रधानमंत्री ने इस भाषण के दौरान कहा, 'पश्चिम बंगाल की सरकार की वजह से राज्य के 70 लाख किसानों को PM किसान निधि के तहत पैसे नहीं मिल रहे हैं, जबकि भारत सरकार की तरफ से सारा पैसा दिया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पश्चिम बंगाल सरकार पैसे अटकाकर बैठ गई है।'  उन्होंने आगे कहा, 'बेहद उदास मन से कह रहा हूं, अगर आप 15 साल पुराने ममता जी के भाषणों को सुनेंगे, तो आप जानेंगे कि कैसे यहां की सरकारों ने बंगाल को तीन दशकों तक घुटनों पर लाए रखा। लेकिन यही लोग किसानों को PM निधि का लाभ दिलाने के लिए कोई अभियान नहीं चलाते। ऐसे ही लोग पंजाब में भी हैं।'

मोदी ने किसान सम्मान निधि की योजना 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले शुरू की थी, जिसका उनके दोबारा प्रधानमंत्री बनने में बड़ा योगदान माना जाता है। अब पश्चिम बंगाल चुनाव को सामने देखकर उसी योजना को एक बार फिर से सियासी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। और अगर किसान आंदोलन के कारण उठते सवालों की धार सम्मान निधि की वजह से कुंद हो जाए तो सोने में सुहागा। वैसे मोदी ने ममता बनर्जी के पुराने भाषणों की याद कुछ उसी तरह दिलाई जैसे विरोधी आजकल उनके गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए दिए गए भाषणों की दिलाते हैं। वो भाषण जिनमें मोदी एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने की जोरशोर से मांग करते थे, लेकिन अब उन्हें गैर-ज़रूरी बताते हैं। 

केरल में क्यों नहीं प्रदर्शन करते

मोदी ने इस दौरान किसानों को समर्थन करने वाले वाम दलों पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा, 'अगर आपको लगता है कि अब विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने का समय आ गया है तो आप केरल जाकर क्यों नहीं प्रदर्शन करते और वहां पर एपीएमसी एक्ट को पारित करवाते। हालांकि ऐसा कहते समय प्रधानमंत्री शायद भूल गए कि किसान जिन तीन कृषि कानूनों को काला कानून बताकर विरोध कर रहे हैं, वो केरल की सरकार ने नहीं, खुद उन्हीं की सरकार ने पास किए हैं। इसी तरह विपक्ष पर गुमराह करने का आरोप लगाते समय शायद उन्हें यह याद नहीं रहता कि इन्हीं कृषि कानूनों के विरोध में बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने उनका साथ छोड़ दिया है।