Pranab Mukherjee: जीवन के हर क्षेत्र में विस्तार का पर्याय प्रणब मुखर्जी

Pranab Mukherjee Death: कई दशकों तक सक्रिय राजनीति में धाक जमाने वाले प्रणब मुखर्जी की गिनती विद्वान नेताओं मे, स्कूल शिक्षक से लेकर राष्ट्रपति तक निभाई सैंकड़ों ज़िम्मेदारियां

Publish: Sep 01, 2020, 09:08 PM IST

पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न प्रणब मुखर्जी सोमवार शाम हम सब को हमेशा के लिए छोड़ गए। अब प्रणब दा की सिर्फ यादें जो हमारे ज़हनों में रची बसी रहेंगी। उनकी रचनाएं न सिर्फ इस पीढ़ी को बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। 

निजी जिन्दगी में सर्वांगीण प्रतिभा के धनी प्रणब मुखर्जी ने राजनीति के क्षेत्र में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। कई दशकों तक सक्रिय राजनीति में धाक जमाने वाले प्रणब मुखर्जी को विद्वान नेताओं की श्रेणी में शुमार किया जाता रहा। उन्होंने स्कूल शिक्षक से लेकर राष्ट्रपति तक सैंकड़ों ज़िम्मेदारियां निभाई।

पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले एक छोटे से गांव मिराटी में प्रणब मुखर्जी का जन्म हुआ। तारीख़ थी 11 दिसंबर 1935. पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और आज़ादी की लड़ाई में शरीक होने के चलते कई बार जेल जा चुके थे। शुरुआती पढ़ाई लिखाई के बाद प्रणब मुखर्जी ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता से इतिहास और राजनीति शास्त्र में एमए किया।फिर वहीं से llb की डिग्री ली। प़ढ़ाई पूरी करने के बाद प्रणब दा शिक्षक बन गए। इसके बाद उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना हाथ आजमाया।

प्रणब मुखर्जी का साहित्य से गहरा लगाव था। निखिल भारत बंग साहित्य परिषद के वो अध्यक्ष भी रहे. लेकिन राजनीति ही उनको सबसे ज़्यादा रास आई। 1952 से 1964 के दौरान बंगाल विधान परिषद के वो भी सदस्य रहे थे। उन्होंने कांग्रेस महासचिव का भी पद भी संभाला। इसके बाद प्रणब दा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1969 में पहली बार उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया। योग्यता और संगठन क्षमता के बूते वो इंदिरा गांधी के क़रीब आ गए। जल्द ही उन्हें उपमंत्री बनाया गया। शुरुआती दौर में जी उन्होंने कई मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी संभाली।

प्रणब मुखर्जी 1982 में पहली बार कैबिनेट मंत्री बने। उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया। 1984 में दुनिया के बेजोड़ पांच वित्तमंत्रियों की सूची में उन्हें जगह भी मिली थी। 1980-1985 के बीच वो राज्यसभा में सदन के रहे। लेकिन इसके बाद कुछ वर्षों तक वो राजनीतिक बियावान में रहे। राजीव गांधी से बिगड़ते रिश्तों के बाद उन्होंने अपनी एक नई पार्टी बना ली।

लेकिन जल्द ही प्रणब दा की कांग्रेस में वापसी हो गई। 1991 में उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनने के बाद उन्हें कई बड़ी ज़िम्मेदारियां दी गईं। 1993 से 1995 के दौरान वो वाणिज्य मंत्री, इसके बाद एक साल के लिए विदेश मंत्री, 2004 से 2006 के बीच रक्षा मंत्री, इसके बाद तीन साल के लिए फिर से विदेश मंत्री और 2009-12 के बीच वो रक्षा मंत्री रहे। 1969 से वो पांच बार राज्यसभा और 2004 के बाद लगातार दो बार लोकसभा के सांसद रहे। 1997 में उन्हें देश का सर्वश्रेष्ठ सांसद चुना गया था।

प्रणब मुखर्जी ने कई संस्थाओं को बनाने में अहम भूमिका निभाई।1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, इसके बाद एग्जिम बैंक और नाबार्ड बनाने में प्रणब मुखर्जी का बड़ा योगदान है। 1991 में उन्होंने केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे से जुड़ा मशहूर गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूला दिया। यूपीए सरकार के दौरान उन्होंने कई जनकल्याणकारी योजनाओं की रूपरेखा खींची। 2007 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लेकर अफ्रीकी विकास बैंक तक कई जगहों पर वो बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में रहे। कई आला अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनके भाषण को दुनिया ने ध्यान से सुना। जल्द ही वो दिन भी आया जब वो सक्रिय राजनीति छोड़कर वो  देश को सर्वोच्च पद पर आसीन हुए। 25 जुलाई 2012 को उन्होंने देश के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। देश की राजनीति में प्रणब मुखर्जी, प्रणब दा के नाम से मशहूर रहे। लोगों से उन्हें इतना जुड़ाव था कि इसके चलते उन्हें ख़ुद को महामहिम कहे जाने पर आपत्ति जताई।