सुनो द्रौपदी शस्त्र उठा लो, प्रियंका की कविता पाठ पर भड़के लेखक, कविता चोरी का लगा दिया आरोप

चित्रकूट में नंगे पांव परिक्रमा के बाद प्रियंका ने महिलाओं को संबोधित करते हुए पुष्यमित्र द्वारा रचित कविता सुनो द्रौपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद न आएंगे का पाठ किया था, अब इसे लिखने वाले कवि ने प्रियंका पर ताना मारा है

Updated: Nov 18, 2021, 10:11 AM IST

Photo Courtesy: Twitter
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चित्रकूट। प्रियंका गांधी द्वारा उत्तर प्रदेश के महिलाओं को शस्त्र उठाने का आह्वान दक्षिणपंथी विचारकों के गले नहीं उतर रहा है। कांग्रेस महासचिव ने लेखक पुष्यमित्र की एक कविता क्या पढ़ी वे भड़क गए। पुष्यमित्र ने प्रियंका गांधी पर यह कहते हुए कविता चोरी का आरोप लगा दिया कि मैं आपका विरोधी हूं।

दरअसल, प्रियंका गांधी बुधवार को चित्रकूट पहुंची थी। यहां उन्होंने नंगे पैर 5 किलोमीटर की कामदगिरि पर्वत की मौन परिक्रमा लगाई। इसके बाद मंदाकिनी नदी के रामघाट पर उन्होंने 'लड़की हूं लड़ सकती हूं' संवाद को संबोधित किया। रामघाट पर प्रियंका को सुनने हजारों की संख्या में महिला शक्ति उमड़ी थी। इस दौरान उन्होंने एक कविता 'उठो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद न आयेंगे' का पाठ कर महिलाओं से आह्वान किया कि उन्हें खुद के हालत बदलने के लिए स्वयं संघर्ष भी करना होगा। 

प्रियंका ने यहां महिलाओं से कहा कि राजनीति में आजकल बेहद क्रूरता और हिंसा है। लखीमपुर खीरी में मंत्री के बेटे ने किसानों को कुचल ​दिया। यहां सरकार ने अत्याचारी की मदद की। आशा बहनों को अपनी मांगों को उठाने के लिए बुरी तरह से पीटा गया। पीटने वालों से अपना हक मांगने से नहीं मिलेगा, बल्कि उनसे लड़कर अपने अधिकारों की रक्षा करनी होगी।'

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प्रियंका के इस आह्वान का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगा। हालांकि, महिलाओं के लिए प्रियंका का यह आह्वान कविता के लेखक पुष्यमित्र उपाध्याय के गले नहीं उतरा। उन्होंने प्रियंका पर यह कहते हुए कविता चोरी का आरोप लगा दिया कि मैं आपका विरोधी हूं। उन्होंने कहा कि, 'प्रियंका जी ये कविता मैंने स्त्रियों के लिए लिखी थी न कि आपकी घटिया राजनीति के लिए। न तो मैं आपकी विचारधारा का समर्थन करता हूं और न आपको ये अनुमति देता हूं कि आप मेरी साहित्यिक संपत्ति का राजनीतिक उपयोग करें।'

दक्षिणपंथी लेखक माने जाने वाले पुष्यमित्र ने आगे कहा कि, 'यह कविता साल 2012 में निर्भया कांड पर लिखी गई थी। इसका संदेश और आह्वान आपकी राजनीतिक कुंठाओं से भिन्न और व्यापक है। हमारा अनुरोध है कि इस कविता का प्रयोग क्षुद्र राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए कर के इसके मर्म को दूषित न करें।’