15 फरवरी से पहले राहुल गांधी बन सकते हैं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष

राजस्थान में अगले महीने या 15 फरवरी से पहले तक राष्ट्रीय अधिवेशन हो सकता है, इसमें अध्यक्ष के पद पर राहुल गांधी के नाम की घोषणा हो सकती है

Updated: Dec 28, 2020, 01:21 PM IST

Photo Courtesy: The Federal News
Photo Courtesy: The Federal News

नई दिल्ली। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की कमान संभाल सकते हैं। राहुल गांधी 15 फरवरी से पहले तक कांग्रेस के अध्यक्ष बन सकते हैं। हिंदी के एक प्रमुख न्यूज़ चैनल ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी है। 

राजस्थान में हो सकता है राष्ट्रीय अधिवेशन 

दरअसल कांग्रेस के अगले राष्ट्रीय अधिवेशन में राहुल गांधी की ताजपोशी हो सकती है। पार्टी का अगला राष्ट्रीय अधिवेशन राजस्थान में होने के कयास लगाए जा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने अधिवेशन को लेकर तैयारी भी शुरू कर दी है। अधिवेशन राजस्थान की राजधानी जयपुर, जैसलमेर या फिर उदयपुर में हो सकता है। यह अधिवेशन अगले महीने जनवरी या 15 फरवरी से पहले हो सकता है। 

कांग्रेस पार्टी की कमान फिलहाल सोनिया गांधी के हाथों में हैं। अगस्त महीने में कांग्रेस ने यह तय किया था कि अगले 6 महीने तक सोनिया गांधी ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष रहेंगी। लेकिन इस दौरान कांग्रेस पार्टी अपने अध्यक्ष को ढूंढ लेगी। पिछले कुछ दिनों से राहुल गांधी की वापसी की चर्चाओं ने ज़ोर पकड़ा है  

अगर राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष पद की कुर्सी संभालते हैं तो ये दूसरी बार होगा जब वो पार्टी की कमान अपने हाथों में लेंगे। इससे पहले राहुल गांधी को  दिसंबर 2017 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली हार के बाद राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी का कार्यकाल इतना खराब भी नहीं रहा था। राहुल गांधी के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सत्ता में वापसी की थी। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में तो कांग्रेस ने 15 साल का वनवास समाप्त किया था।  

यह भी पढ़ें : Congress: पार्टी में बदलाव के लिए कांग्रेस नेताओं का सोनिया गांधी को पत्र

लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद राहुल गांधी ने हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद तो छोड़ दिया। लेकिन इससे कांग्रेस की एकजुटता पर असर पड़ा।

 राहुल के अध्यक्ष पद त्यागने के बाद मध्यप्रदेश में पार्टी को जो सत्ता मिली थी, वो भी हाथों से चली गई। राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ही कांग्रेस पार्टी को दगा दे दिया। इससे भी ज़्यादा आश्चर्य तब हुआ जब राहुल ने सिंधिया को पार्टी में रोकने तक में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके बाद राजस्थान में भी सियासी संकट पनपा। राहुल गांधी ने वहां भी स्थिति को कंट्रोल करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालांकि ऐन मौके पर प्रियंका गांधी की सक्रियता की वजह से समय रहते इस संकट को नियंत्रित कर लिया गया अन्यथा राजस्थान से भी बीजेपी ने सरकार गिराने की तैयारी कर ली थी।

                                                                                                         Photo Courtesy : Dailyo

मध्यप्रदेश और राजस्थान के घटनाक्रमों के दौरान राहुल गांधी की ओर से सक्रियता न दिखाई जाने को लेकर, लंबे अरसे तक कांग्रेस को कवर करने वाले एक जाने माने पत्रकार ने ऑफ द रिकॉर्ड यह कहा कि खुद राहुल गांधी ने उनके सामने यह कहा था कि वो मध्यप्रदेश और राजस्थान में अपनी यानी कांग्रेस पार्टी की सरकार मानते ही नहीं हैं। राहुल गांधी सिर्फ छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार मानते हैं। पत्रकार ने कहा कि राहुल गांधी ने उन्हें यह बात मध्यप्रदेश और राजस्थान में पनपे सियासी तूफान से काफी पहले ही बताई थी। दरअसल पत्रकार के मुताबिक राहुल गांधी दोनों ही राज्यों में हो रही पार्टी के भीतर की गुटबाजी से काफी आक्रोशित थे। 

यह भी पढ़ें : Sonia Gandhi: अगले 6 महीने तक बनी रहेंगी कांग्रेस अध्यक्ष

इन घटनाक्रमों के बाद कांग्रेस में आंतरिक मतभेद न सिर्फ बढ़ने लगे बल्कि खुले तौर पर ज़ाहिर भी हो गए। कांग्रेस के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी के नेतृत्व में फेरबदल करने की मांग कर दी। कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आज़ाद जैसे नेता तो खुले तौर पर कांग्रेस के खिलाफ मीडिया में बयान देने लगे। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नाराज़ नेताओं के साथ बैठक बुलाई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि 6 महीने के भीतर कांग्रेस अपने नए अध्यक्ष का चुनाव कर लेगी।

कांग्रेस में आंतरिक मतभेद इस कदर हावी हो चुके थे कि सचिन पायलट ने यहां तक कह डाला था कि जब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ा उसके बाद से उन्हें (सचिन पायलट को) पार्टी में कमज़ोर करने के प्रयास शुरू हो गए। पायलट का इशारा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ़ था। पायलट का कहना था कि राहुल के इस्तीफे के बाद पार्टी में गहलोत खेमे ने उनके खिलाफ काम करना शुरू कर दिया था। 

                                                                                                            Photo Courtesy: The Week

अब चूंकि राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की अटकलें तेज़ ही चुकी हैं। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि पार्टी में एक बार फिर से युवाओं को नेतृत्व करते देखा जाए। सचिन पायलट को भी पार्टी में इस आश्वासन के साथ रोका गया था कि उन्हें राजस्थान की राजनीति की बजाय केन्द्रीय नेतृत्व में जगह दी जाएगी। हालांकि अभी तक सचिन पायलट को कांग्रेस के नेतृत्व में जगह नहीं मिली है। लेकिन राहुल के अध्यक्ष बनते ही पायलट को दिल्ली बुला लिया जाएगा, इस बात की पूरी संभावना है। 

हालांकि राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में आंतरिक मतभेद समाप्त हो जाएगा, इस बात की संभावना कम ही है। यह एक ऐसी लड़ाई है जो कि उनकी दादी इंदिरा गांधी, उनके चाचा संजय गांधी और खुद उनके पिता राजीव गांधी को भी लड़नी पड़ी थी। उनकी दादी इंदिरा गांधी की लड़ाई तो एक नई पार्टी के गठन तक जा पहुंची। जब कांग्रेस पार्टी को लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त मिली। तब राहुल गांधी ने पार्टी की समीक्षा बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर अपरोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा भी था कि कुछ नेता चुनाव में सिर्फ अपने वारिसों की जीत सुनिश्चित करने में लगे रहे। 

कांग्रेस के भीतर ओल्ड गार्ड बनाम न्यू गार्ड के बीच खाई कितनी गहरी है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि पार्टी में फेरबदल होने की देरी से कांग्रेस के अनुषांगिक संगठन NSUI की प्रभारी रुचिर गुप्ता ने इस्तीफा दे दिया है। रुचिर गुप्ता ने अपनी भड़ास बाकायदा ट्विटर पर निकाली भी है। ऐसे में राहुल के सामने न सिर्फ खुद ओल्ड गार्ड से लड़ने की चुनौती है बल्कि ओल्ड बनाम न्यू की लड़ाई में समन्वय स्थापित करना भी बेहद ज़रूरी है। आने वाले समय में बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हिमाचल जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं। जहां एक बार फिर राहुल को लिटमस टेस्ट से गुजरना है। राहुल के पार्टी की कमान संभालने के बाद जितनी संभावनाएं पार्टी के लिए बनती दिख रही हैं, उसके मुकाबले में पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही जगह कहीं ज़्यादा चुनौतियों का सामना खुद राहुल गांधी को करना है।