सेम सेक्स मैरिज एलिट क्लास की सोच, इसका लोकाचार से कोई वास्ता नहीं, SC में बोली केंद्र सरकार

समलैंगिक विवाह पर फैसला करना संसद का काम, सुप्रीम कोर्ट को इस पर फैसले से दूर रहना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने किया समलैंगिक विवाह का विरोध

Updated: Apr 17, 2023, 04:30 PM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन कर दिया है। यह संविधान पीठ मंगलवार मामले में सुनवाई करेगी। लेकिन उससे ठीक एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। केंद्र ने अब समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाओं को लेकर नए आवेदनों के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर केंद्र सरकार ने कहा है कि, 'यह केवल शहरी एलीट क्लास का नजरिया है और इन याचिकाओं का मकसद ऐसी शादी को सिर्फ सामाजिक स्वीकार्यता दिलाना है। इनका लोकाचार से कोई वास्ता नहीं है।सभी धर्मों में विवाह का एक सामाजिक महत्व है। हिन्दू धर्म में विवाह को संस्कार माना गया है, यहां तक की इस्लाम में भी। सेम सेक्स मैरिज को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ है। समलैंगिक विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती। इसलिए इन याचिकाओं काे खारिज कर देना चाहिए।'

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इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत पर दबाव बनाते हुए कहा कि, 'समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। केंद्र ने कहा है कि न्यायिक निर्णय के माध्यम से समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती। क्योंकि यह विधायिका के क्षेत्र में आता है। इस पर फैसला करना संसद का काम है। कोर्ट को इस पर फैसले से दूर रहना चाहिए।' केंद्र ने तर्क देते हुए कहा कि, 'कानून के मुताबिक भी सेम सेक्स मैरिज को मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। सेम सेक्स मैरिज में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को अलग-अलग कैसे माना जा सकेगा?'

बता दें कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं में एक याचिका हैदराबाद के समलैंगिक कपल सुप्रियो और अभय की है। कपल ने अपनी याचिका में कहा है कि दोनों एक दूसरे को एक दशक से ज्यादा वक्त से जानते हैं और रिलेशनशिप में हैं। इसके बावजूद शादीशुदा लोगों को जो अधिकार मिले हैं, उन्हें उन अधिकारों से वंचित रखा गया।जबकि सुप्रीम कोर्ट बार-बार यह दोहराता रहा है कि कोई भी वयस्क व्यक्ति अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने और जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र है। कपल ने अपनी याचिका में कहा है कि सरोगेसी से लेकर, एडॉप्शन और टैक्स बैनिफिट जैसी कई सुविधाएं सिर्फ शादीशुदा लोगों को ही मिलती हैं। उन्हें भी इस तरह की सुविधाएं मिलनी चाहिए।