हल्द्वानी में नहीं चलेगा बुलडोजर, SC ने लगाई रोक, कहा- 50 हजार लोगों को रातों-रात नहीं उजाड़ सकते

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप केवल 7 दिनों का समय दे रहे हैं और कह रहे हैं कि खाली करो। ये मानवीय मामला है। लोग 50 सालों से रह रहे हैं, उनके पुनर्वास के लिए भी कोई योजना होनी चाहिए।

Updated: Jan 05, 2023, 03:19 PM IST

नई दिल्ली। उत्तराखंड के हल्द्वानी में अतिक्रमण पर फिलहाल बुलडोजर नहीं चलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए नोटिस जारी कर रेलवे और उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि आप सिर्फ 7 दिनों में खाली करने के लिए कैसे कह सकते हैं? हमें कोई प्रैक्टिकल समाधान ढूंढना होगा। समाधान का ये यह तरीका नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इतने सारे लोग लंबे समय से वहां रह रहे हैं। उनका पुनर्वास तो जरूरी है। 7 दिन में ये लोग जमीन कैसे खाली करेंगे? सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा- 7 दिन में 50 हजार लोगों को रातों-रात नहीं उजाड़ सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब उस जमीन पर कोई कंस्ट्रक्शन और डेवलपमेंट नहीं होगा। हमने इस पूरी प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है। केवल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई है। इस केस की अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी।

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दरअसल, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे को गिराने का आदेश दिया था। वहां करीब 4 हजार से ज्यादा परिवार रहते हैं। इस क्षेत्र में चार सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी के टैंक, 10 मस्जिद और चार मंदिर हैं। इसके अलावा दशकों पहले बनी दुकानें भी हैं। रेलवे का दावा है कि जमीन हमारी है। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि ये जमीन उनकी है क्योंकि उनका खानदान दशकों से वहीं रह रहा है। उनका तर्क है कि क्या सरकारी स्कूल भी अवैध अतिक्रमण पर ही बने हैं?

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, 'निश्चित तौर पर जमीन रेलवे की है तो उसे इसे डेवलप करने का अधिकार है, लेकिन अगर इतने लंबे समय से इतने ज्यादा लोग वहां पर रह रहे हैं तो उनका पुनर्वास जरूर किया जाना चाहिए। लोग दावा कर रहे हैं कि वो 1947 के बाद यहां आए थे। ये प्रॉपर्टी नीलामी में रखी गई थी। डेवलपमेंट कीजिए और पुनर्वास की मंजूरी दी जानी चाहिए। आप 7 दिन में जमीन खाली करने के लिए कैसे कह सकते हैं? इन लोगों की किसी को तो सुननी ही पड़ेगी। हो सकता है कि दावा कर रहे सभी लोग एक जैसे न हों। कुछ अलग कैटेगरी के हों। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके लिए मानवीय पहलू के तहत विचार करने की जरूरत है। अभी हम हाईकोर्ट के आदेशों पर रोक लगा रहे हैं।'