Shri Ram Temple: राम मंदिर का निर्माण शुरू, दान में मांगा तांबा

Ayodhya Ram Mandir: राम निर्माण में लगने वाले पत्थरों को तांबे से जोड़ा जाएगा, दानदाता लिखवा सकते हैं अपने परिवार का नाम

Updated: Aug 21, 2020, 04:43 AM IST

courtsey : thequint
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अयोध्या। उत्तरप्रदेश के अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ हो गया है। CBRI रुड़की और IIT मद्रास के इंजीनियरों के सहयोग से निर्माणकर्ता कंपनी लर्सन एंड टूब्रो के इंजीनियर मिट्टी परीक्षण के कार्य में लगे हुए हैं। मंदिर का निर्माण भारत की प्राचीन निर्माण पद्धति से किया जा रहा है। मन्दिर निर्माण में लगने वाले पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे की पत्तियों का उपयोग किया जाएगा। इसके लिए तांबा दान में मांगा गया है। 

श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने गुरुवार (20 अगस्त) को ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी है। ट्रस्ट ने बताया है कि मंदिर के कंपलीट निर्माण कार्य में लगभग 36 से 40 महीने समय लगने का अनुमान है। श्री राम मंदिर ट्रस्ट ने बताया है कि, 'राम मंदिर का निर्माण भारत की प्राचीन निर्माण पद्धति से किया जा रहा है ताकि वह सहस्त्रों वर्षों तक न केवल खड़ा रहे, अपितु भूकम्प, झंझावात अथवा अन्य किसी प्रकार की आपदा में भी उसे किसी प्रकार की क्षति न हो। मन्दिर के निर्माण में लोहे का प्रयोग नही किया जाएगा।' वहीं मन्दिर निर्माण में लगने वाले पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे की पत्तियों का उपयोग किया जाएगा। निर्माण कार्य हेतु 18 इंच लम्बी, 3 mm गहरी और 30 mm चौड़ी 10,000 पत्तियों की आवश्यकता पड़ेगी।'

श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने श्रीरामभक्तों तांबे की पत्तियां दान करने का आह्वान किया है। ट्रस्ट ने कहा है कि इन तांबे की पत्तियों पर दानकर्ता अपने परिवार, क्षेत्र अथवा मंदिरों का नाम गुदवा सकते हैं। इस प्रकार से ये तांबे की पत्तियां न केवल देश की एकात्मता का अभूतपूर्व उदाहरण बनेंगी, अपितु मन्दिर निर्माण में सम्पूर्ण राष्ट्र के योगदान का प्रमाण भी देंगी।

क्यों मांगी जा रही है तांबे की पत्तियां ?

दरअसल, निर्माण के दौरान तांबा सामान्यतः पानी से अभिक्रिया नहीं करता है पर धीरे-धीरे संयोग कर ऑक्साईड का निर्माण करता है। जंग लगने से बिल्कुल अलग एक परत बनाता है, जो कि निर्माण को हजारों सालों तक टिकाए रखती है। यह लोहे के साथ नहीं होता है। इसलिए निर्माण कार्य में लोहे का जरा भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। इसी तरह की परत का इस्तेमाल न्यूयॉर्क स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के निर्माण में भी किया गया है।