महाराष्ट्र में प्रोविजनल और फाइनल मतदान आंकड़ों का अंतर चिंताजनक, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने उठाए सवाल
देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे एस वाई कुरैशी ने कहा कि मतदाता मतदान के आंकड़े रियल टाइम में दर्ज किए जाते हैं और इसमें इतना बड़ा अंतर चिंताजनक है।
नई दिल्ली। महाराष्ट्र चुनाव नतीजों के बाद एक बार फिर EVM की विश्वसनीयता और चुनाव आयोग की निष्पक्षता सवालों के घेरे में है। राज्य में 20 नवंबर को मतदान वाले दिन शाम 5 बजे वोटिंग का आंकड़ा 55 फीसदी था। जबकि अगले दिन जारी अंतिम वोटिंग के आंकड़ों में यह 67% तक पहुंच गया। इसे लेकर विपक्षी पार्टियों के बाद अब देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी सवाल खड़े किए हैं।
2010-2012 के बीच देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे एस वाई कुरैशी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि मतदाता मतदान के आंकड़े रियल टाइम में दर्ज किए जाते हैं और इसमें इतना बड़ा अंतर चिंताजनक है। कुरैशी ने मतदान का रिकॉर्ड रखने की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा कि यह निश्चित रूप से मुझे चिंतित करता है। ये आंकड़े रियल टाइम में अपडेट किए जाते हैं।
कुरैशी ने कहा कि जब हम वोट देने जाते हैं, तो फॉर्म 17ए होता है और पीठासीन अधिकारी हमारी उपस्थिति दर्ज करते हैं। दिन के अंत में, फॉर्म 17सी भरा जाता है जिसमें दिन भर की पूरी घटना दर्ज होती है। इसे भरने और उम्मीदवारों के एजेंटों के हस्ताक्षर लेने के बाद ही पीठासीन अधिकारी घर जाते हैं। फॉर्म 17सी में प्रत्येक मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों की संख्या दर्ज होती है। यह उसी दिन तैयार किया गया रियल टाइम का डेटा है। फिर अगले दिन डेटा कैसे बदल सकता है, यह मेरी समझ से परे है।
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा कि इस मुद्दे का जवाब चुनाव आयोग को देना चाहिए और उसे स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'जिस तरह से देश भर में संदेह फैल रहा है, अगर यह हर किसी के दिमाग में बैठ जाए, तो पूरी व्यवस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकेगा।
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बता दें कि मई 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान विपक्ष ने भी इसी तरह की चिंता जताई थी, जिसमें शुरुआती और अंतिम मतदान के आंकड़ों में 5- 6% की विसंगतियों का हवाला दिया गया था। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने प्रत्येक मतदान चरण के 48 घंटे के भीतर मतदान केंद्रवार मतदाता मतदान डेटा जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने व्यावहारिक चुनौतिया का हवाला देते हुए इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। चुनाव आयोग ने यह भी तर्क दिया था कि इस तरह के खुलासे से तार्किक मुश्किलें पैदा हो सकती हैं।