JPC का गठन क्यों नहीं, अडानी से सवाल करने वालों को सरकार राष्ट्रविरोधी साबित करना चाहती है: कांग्रेस

यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कमेटी बनाने को तैयार क्यों है, इन्हें अडानी से कोई लेना देना नहीं है, बल्की हिंडनबर्ग के खुलासे से है: जयराम रमेश

Updated: Feb 14, 2023, 03:49 AM IST

नई दिल्ली। केंद्र सरकार अडाणी ग्रुप-हिंडनबर्ग मामले में एक्सपर्ट कमेटी बनाने को तैयार हो गई है। कमेटी यह देखेगी कि स्टॉक मार्केट के रेगुलेटरी मैकेनिज्म में फेरबदल की जरूरत है या नहीं। हालांकि, एक्सपर्ट कमेटी गठित करने को लेकर विपक्ष हमलवार है। विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि सरकार अडानी गेट का जांच करने के बजाए हिंडनबर्ग को राष्ट्रविरोधी साबित करना चाहती है।

कांग्रेस संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने कहा, 'यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक कमेटी बनाने के लिए सहमति क्यों दी है। इसका अडानी से लेना-देना है कम है, बल्की हिंडनबर्ग के खुलासे से ज्यादा है। सरकार का उद्देश्य अडानी के गलत कामों पर सवाल उठाने वाली किसी भी व्यक्ति/संस्था को भारत विरोधी के रूप में चित्रित करना है। इसलिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) गठित नहीं हुई।' 

बता दें कि अडानी समूह को लेकर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट पर मचे विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा था कि निवेशकों के हितों को बाज़ार के उतार-चढ़ाव से बचाने की ज़रूरत है। अदालत ने बाज़ार नियामक तंत्र को मज़बूत करने के लिए केंद्र से एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में क्षेत्र के विशेषज्ञों की एक समिति के गठन पर विचार करने के लिए भी कहा था। इसपर सोमवार को केंद्र ने कहा कि हमें एक्सपर्ट कमेटी गठित करने में कोई आपत्ति नहीं है।

कोर्ट ने शेयर मार्केट रेगुलेटर सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) से भविष्य में निवेशकों की सुरक्षा के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं, इस पर भी सुझाव देने को कहा था। केंद्र ने सोमवार को कोर्ट में कहा कि सेबी और दूसरी नियामक संस्थाए इस तरह के हालातों से निपटने में पूरी तरह समर्थ हैं, पर कोर्ट अपनी ओर से कमेटी का गठन करता है तो सरकार को ऐतराज नहीं है। इस पर अदालत ने मेहता से बुधवार तक यह बताने के लिए कहा है कि कमेटी में कौन-कौन लोग शामिल हो सकते हैं। इस मामले पर अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।

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अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच को लेकर केंद्र सरकार भी कमेटी के गठन को तैयार तो हुई है। लेकिन ये कमेटी अडानी गेट कांड यानी फ्रॉड की जांच करने के बजाए यह सुझाव देगी कि मौजूदा नियामक व्यवस्था को कैसे बेहतर बनाया जाए। इसके साथ ही निवेशकों के हितों को कैसे सुरक्षित रखा जाए। यानी केंद्र सरकार यह जांच नहीं करेगी की अडानी समूह मार्केट मैनिपुलेशन और फ्रॉड में शामिल है या नहीं।

केंद्र सरकार ने कोर्ट में हिंडनबर्ग को कठघरे में जरूर किया। केंद्र ने कहा कि हिंडनबर्ग जैसी शॉर्ट सेलिंग कंपनियां अपने फायदे के लिए इस तरह कि रिपोर्ट तैयार करती हैं। केंद्र का कहना है कि हिंडनबर्ग रिसर्च एक 'अनैतिक' शॉर्ट सेलर है। उसने शेयर की कीमत में हेरफेर करने और उसे कम करने का काम किया है और एक झूठा बाजार बनाने के लिए ये रिपोर्ट पब्लिश किया है।

केंद्र सरकार के मुताबिक ये कंपनियां इस तरह के आक्षेप लगाकर किसी शेयर का वैल्यू गिरने का इंतजार करती है और बाद में न्यूनतम स्तर पर खरीदकर पैसे कमाती है। बता दें कि हिंडनबर्ग रिसर्च’ द्वारा अडानी समूह पर फर्जी लेन-देन और शेयर की कीमतों में हेरफेर सहित कई गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद समूह की कंपनियों के शेयर की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई।

शॉर्ट सेलिंग क्या है?

शॉर्ट सेलिंग एक ट्रेडिंग या निवेश रणनीति है जिसमें कोई व्यक्ति किसी खास कीमत पर स्टॉक या सिक्योरिटीज खरीदता है और फिर कीमत ज्यादा होने पर उसे बेच देता है, जिससे फायदा होता है। आसान शब्दों में कहें तो शॉर्ट सेलिंग एक ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी है जो अटकलों पर आधारित है। शॉर्ट-सेलिंग को परिभाषित करने का सबसे बुनियादी तरीका स्टॉक में गिरावट के बारे में अनुमान लगाना और उसके खिलाफ दांव लगाना है।

शॉर्ट सेलिंग में, व्यापारी आमतौर पर उन सिक्योरिटीज का मालिक नहीं होता है जो वह बेचता है, लेकिन सिर्फ उन्हें उधार लेकर बेचता है। यानी बेचते वक्त शॉर्ट सेलर के पास वो शेयर होते ही नहीं जिन्हें वह बेचता है। बाद में वह कम रेट में शेयर खरीदकर पहले वाले खरीददार को लौटाता है।