दफ्तर दरबारी: आप तो ऐसे न थे खिलौना सरकार
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक तरफ तो रोज सुबह 7 बजे अलग-अलग जिलों के कलेक्टर से सीधे बात कर गुड गवर्नेंस लाने की जुगत कर रहे हैं, दूसरी तरफ इस संवाद में तीखा अंदाज लोगों को चौंका रहा है। मुख्यमंत्री की कार्यप्रणाली का स्पेक्ट्रम विरोधाभासी हो गया है और इसी कारण छवि चमकाने के फेर में कभी किरकिरी हो रही है तो कहीं सिस्टम ही टूट रहा है।
मंच से जब सीएम चौहान चेतावनी देते हुए कहते हैं कि सुन ले कलेक्टर... तो सभा में मौजूद श्रोता तालियां पीटते हैं। उन्हें अपने नेता में सख्त शासक दिखता है मगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों कमरा बैठकों में सभाओं वाले तेवर के साथ पेश आ रहे हैं। यह अंदाज उनकी छवि पर भारी पड़ रहा है।
जैसे, जब माहौल बनने लगा कि शिवराज सरकार पर ब्यूरोक्रेसी भारी है तो मुख्यमंत्री चौहान ने सभाओं में अफसरों को लताड़ना शुरू कर दिया। मगर बैठकों में वे अपने स्वभाव के अनुसार सरल और सहज बने रहे। जब बीजेपी संगठन की मिशन 2023 की तैयारियों बैठक में अफसरों द्वारा जन प्रतिनिधियों की बात अनसुनी करने का मुद्दा उठा और प्रदेश भर से अफसरों की शिकायतें मिलने लगी तो मुख्यमंत्री चौहान ने सुबह 7 बजे कलेक्टरों के साथ बैठक शुरू कर दी। शुरुआत मुख्यमंत्री के गृह जिले में जल संकट के समाधान से हुई।
रोज सुबह हो रही इन बैठकों में मुख्यमंत्री ‘मोदी अंदाज’ के कारण चर्चा में आए। पीएमओ की तर्ज पर सीएमओ सक्रिय हुआ। मुख्यमंत्री सचिवालय ने खंडवा कलेक्टर के साथ मुख्यमंत्री की बैठक के पहले मैदानी फीडबैक ले लिया। मुख्यमंत्री कार्यालय ने खंडवा जिले के 942 लोगों से फोन पर बात कर सरकार के कामकाज का सर्वे किया। इस सर्वे के अनुसार 911 लोग शासन की योजनाओं प्रयासों से संतुष्ट मिले।
खंडवा में सीएमओ का यह सेम्पल सर्वे 'रामराज सी' स्थितियां बता रहा है मगर सवाल तब उठ खड़े हुए जब मुख्यमंत्री चौहान ने कलेक्टर को जिले के भ्रष्ट अधिकारियों की सूची सौंपी। कहा गया कि कलेक्टर जांच कर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएं। इसी बात पर सीएम चौहान विपक्ष के निशाने पर आ गए। कांग्रेस ने सवाल उठाया कि देश के इतिहास में पहली बार किसी सीएम ने एक डीएम को भ्रष्ट अधिकारियों की सूची सौंपी है। अब जल्द ही पीएम प्रदेश के भ्रष्ट अधिकारियों व मंत्रियों की सूची सीएम को सौपेंगे? बेहतर होता भ्रष्ट अफसरों पर सीधे कार्रवाई होती।
मुख्यमंत्री जनता में सख्त प्रशासक कही छवि बनाने की कोशिश में है और इसके लिए सिस्टम तोड़ कर शक्तियों को केंद्रित कर रहे हैं। जैसे कलेक्टरों के साथ सीधी बैठक में मुख्यमंत्री सचिवालय ही सबकुछ हो गया है। वह सर्वे भी कर रहा है, भ्रष्ट अफसरों की सूची भी बना रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में मुख्य सचिव, विभाग प्रमुख के साथ-साथ संभागायुक्त भी ‘बायपास’ हो रहे हैं। केवल अफसर ही नहीं बल्कि विभाग के मंत्री, प्रभारी मंत्री, विधायक भी साइड लाइन कर दिए गए हैं। जन प्रतिनिधि पहले ही शिकायत कर रहे थे कि अफसर उनकी सुनते नहीं हैं। अब अफसर और ‘निडर’ हो गए हैं। विपक्ष ही नहीं खुद अपनी पार्टी ने नेता, मंत्री और अफसर तक कहने लगे हैं कि जब सबकुछ सीएम और सीएम ऑफिस को ही करना है तो हम क्या करें?
मोदी सा अंदाज, मुंह की शक्कर गायब
यानि मोदी सी शैली वर्क कल्चर ब्रेक तो कर ही रही है, कभी कभी छवि बिगाड़ने का काम भी कर रही है। जैसे, भरी बैठक में कलेक्टर समझ कर एसडीएम को फटकारना। भू-अधिकार पत्र एवं स्थाई पट्टे वितरण के कार्यक्रम में जब मुख्यमंत्री चौहान ने बुरहानपुर कलेक्टर को फटकारा तो इसका वीडियो तुरंत वायरल हुआ। कहा गया कि मुख्यमंत्री के तेवर ‘नायक’ फिल्म के मुख्यमंत्री की तरह हैं। मगर कुछ ही देर में असलियत सामने आई तो यह छवि धरी रह गई। पता चला कि सीएम जिसे बुरहानपुर कलेक्टर प्रवीण सिंह समझ कर डांट रहे थे वे तो एसडीएम काशीराम बडोले थे।
एक तो मुख्यमंत्री कलेक्टर को पहचान नहीं सके दूसरा, उनकी भाषा शैली को सही माना गया। अफसरों का एक समूह मानता है कि अधिकारियों का इस तरह से सार्वजनिक अपमान उचित नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ऐसे तो न थे! वे जो बार बार व्यवहार में सिर पर बर्फ यानि शीतलता, दिल में आग यानि हौंसला, मुंह में शक्कर यानि मीठी वाणी और पैर में चक्कर यानि क्षेत्र में भ्रमण करने को अपनी सफलता का मंत्र बताते रहते हैं, उन्हीं की वाणी की मिठास खत्म होती जा रही है।
मन बहलाने को खिलौना अच्छा है...
शिवराज सिंह चौहान के लिए ‘आप तो ऐसे न थे’ की टिप्पणी आई है तो उनकी घोषणा को नाटक भी करार दिया गया है। ऐसे समय में जब प्रदेश की आंगनवाड़ी केंद्रों में कोरोना के बाद साधन जुटाने की जरूरत है, प्रदेश के मुखिया खिलौने जुटाने निकलने वाले हैं। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा है कि संसाधन जुटाना अलग बात है लेकिन जनता में जिम्मेदारी का भाव लाना आवश्यक है और इसके लिए वे पहल कर रहे हैं। वे 24 मई को भोपाल में हाथ ठेला लेकर निकलेंगे और आंगनवाड़ी के बच्चों के लिए जनता से खिलौने मांगेंगे।
सीएम की यह खिलौना मुहिम साधनों की कमी का विकल्प नहीं बन सकती है। जनता में जागरूकता पैदा करने के लिए ही सीएम ने मंत्रियों, नेताओं, अफसरों से कहा था कि वे आंगनवाड़ी गोद लें। इस अपील का कितना असर हुआ है, सभी के सामने हैं।
ज्यादा दिन नहीं हुए। अभी एक माह पहले की बात है जब प्रदेश में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने 45 दिन लंबी हड़ताल की थी। गर्मी में तबीयत बिगड़ने से दो कार्यकर्ताओं की मौत की खबर आई थी। हालांकि, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने दावा किया था कि 4 आंदोलनकारियों की मौत हो चुकी है। आखिर मंत्री के आश्वासन के बाद 25 अप्रैल को हड़ताल खत्म हुई। मंत्री के आश्वासन पूरे होने बाकी हैं।
यह भी जान लीजिए कि मुख्यमंत्री चौहान जिन आंगनवाड़ी केंद्रों के लिए खिलौने जुटाने निकलने वाले हैं उन कुल 97,135 आंगनवाड़ी केंद्रों पर लगभग 84.90 लाख बच्चों के पोषण का जिम्मा है। सार्वजनिक मंच पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार लगभग 29,383 आंगनवाड़ी केन्द्र किराये के भवन में संचालित होते हैं। 46,554 केंद्रों में रसोई घर तथा 75,700 केंद्रों पर बच्चों के बैठने की कुर्सियां उपलब्ध नहीं हैं।
लोकसभा में पेश महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के जवाब के मुताबिक प्रदेश के 28 हजार 900 आंगनवाड़ी केंद्रों में शौचालय तक नहीं है। इन केन्द्रों पर हर साल लगभग 62 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि सरकार कमजोर व वंचित बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य में सुधार व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की समस्याओं को दूर करने के ठोस उपाय करें न कि खिलौना दे कर बच्चे को बहालने सा काम करे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए पोषण जुटाने का जतन
जब कुपोषित बच्चों की सेहत में सुधार लाने वाले आंगनवाड़ी केंद्रों व इनके कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही है तो आखिर सरकार कर क्या रही है? इस सवाल का जवाब पिछले दिनों वायरल हुई एक चैट में खोजा जा सकता है।
बात 19 मई की हे। केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना जिले के दौरे पर थे। उन्हें गुना जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर ऊमरी ग्राम में सड़क मार्ग के उद्घाटन कार्यक्रम में जाना था। इस कार्यक्रम के एक दिन पहले आंगनवाड़ी परियोजना की सेक्टर सुपरवाइजर गिरजा जाटव ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के एक व्हाट्सएप ग्रुप में ऑडियो संदेश डाला और कार्यकर्ताओं से कहा कि उन्हें ऊमरी में होने वाले सिंधिया के कार्यक्रम में सिविल ड्रेस में हर हाल में पहुंचना है। सुपरवाइजर का अंदाज धमकी भरा था। मानो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया के कार्यक्रम में नहीं पहुंची तो खैर नहीं। सवाल यह है कि कर्ताधर्ताओं की ऐसी धमक वाली आवाज आंगनवाड़ी सुधार की दिशा में सुनाई नहीं पड़ती है।
इस चैट का राजनीतिक अर्थ यह भी निकाला गया कि प्रदेश में विधायक और मंत्रियों तक तो ठीक केंद्रीय नेताओं के कार्यक्रमों में भी भीड़ आ नहीं रही है, दबाव से लाई जा रही है। क्या गुना में ऐसा ही हुआ? बच्चों के लिए पोषण का जिम्मा संभाल रही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ही केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की सभा में पोषण (भीड़) का विकल्प नजर आई।
आईएएस की लड़ाई में टूल बनी मंत्री
जहां, प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी मुख्यमंत्री के सख्त छवि बनाने वाले अंदाज के पक्ष विपक्ष में बंटी हुई है वहीं, भ्रष्टाचार की शिकायत पर प्रदेश में ऐसा हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था। तुनक मिजाज से लेकर विनम्र अफसर तक किसी भी सार्वजनिक रूप से नेताओं का अपमान करते नहीं देखे गए हैं। मगर, अनूपपुर जिले में आईएएस अधिकारी ने प्रभारी मंत्री मीना सिंह की बैठक का बहिष्कार कर दिया। यह मामला दो आईएएस अधिकारियों के बीच टसल का माना जा रहा है। मीना सिंह इस टसल का ‘टूल’ बन गई।
मंत्री मीना सिंह ने खनिज विभाग के कामकाज पर बात करते हुए जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी हर्षल पंचोली से तीखे सवाल पूछ लिए थे। भारतीय प्रशासनिक सेवा की सीधी भर्ती के 2015 बैच के अधिकारी हर्षल पंचोली ने मंत्री को आरोप साबित करने की चुनौती देते हुए बैठक का बहिष्कार कर दिया। आईएएस पंचोली का कहना है मंत्री बिना किसी शिकायत के आरोप लगा रही है।
बैठक में मंत्री बिसाहूलाल सिंह और कलेक्टर सोनिया मीणा भी थे। उम्मीद की जा रही थी कि कलेक्टर मामले में दखल देंगी लेकिन 2013 बैच की आईएएस सोनिया मीणा ने हस्तक्षेप नहीं किया। इसका कारण खनिज मुद्दे पर कलेक्टर मीणा और सीईओ हर्षल पंचोली के बीच चला आ रहा मतभेद बताया गया है। दोनों के बीच कमरे में चल रही टसल बैठक में साफ दिखाई दी।
अफसर के व्यवहार से हतप्रभ मंत्री मीना सिंह ने सीईओ की शिकायत मुख्यमंत्री से करने की बात कह कर तात्कालिक रूप से गुस्सा शांत किया मगर यहां मंत्री की नाराजगी से बड़ा मुद्दा एक आदिवासी जिले में दो आईएएस के बीच जारी ‘पॉवर गेम’ है।