दफ्तर दरबारी: आईएएस शैलबाला मार्टिन की पीड़ा, मणिपुर का दर्द समझो, राजनीति न करो
MP News: मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए अमानवीय कृत्य को 'फ्लाइंग किस' विवाद से छिपाने की कोशिश की गई. इस आकलन के बीच मध्यप्रदेश की आईएएस अधिकारी शैलबाला मार्टिन अपने ट्वीट के कारण एकबार फिर चर्चा में हैं। उनके इस ट्वीट को बीजेपी महिला सांसदों की प्रतिक्रिया से जोड़ कर देखा गया लेकिन इस आकलन का खंडन करते हुए आईएएस शैलबाल मार्टिन का मानना है कि इस मामले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए बल्कि एक स्त्री की पीड़ा और वेदना को समझा जाना चाहिए।
मणिपुर में महिलाओं के साथ अमानवीय व्यवहार पर मौन क्यों?
मध्यप्रदेश की वरिष्ठ महिला आईएएस अधिकारी शैलबाला मार्टिन अपने ट्वीट के कारण एकबार फिर चर्चा में हैं। उन्होंने यह ट्वीट संसद में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के कथित ‘फ्लाइंग किस’ पर बीजेपी की महिला सांसदों के आक्रामक होने के बाद किया था। उनके इस ट्वीट को बीजेपी महिला सांसदों की प्रतिक्रिया से जोड़ कर देखा गया लेकिन इस आकलन का खंडन करते हुए आईएएस शैलबाल मार्टिन ने फिर ट्वीट किया है कि राजनीति मत कीजिए, मेरे शब्द तंज/ कटाक्ष नहीं, एक स्त्री की पीड़ा और वेदना हैं।
संसद में मणिपुर को लेकर हंगामा था मगर बात मणिपुर की न हो कर राहुल गांधी पर लगे आरोप तक सिमट गई. सदन में क्या हुआ और क्या नहीं इसपर अलग-अलग मत है लेकिन लोग इस बात पर खफा है कि इस सब हंगामे में मणिपुर और वहां की महिलाओं के साथ हुए अमानवीय कृत्य की बात पीछे छूट गई। इसी पीड़ा को समझते हुए आईएएस शैलबाला मार्टिन ने ट्वीट किया, ‘जरा सोचिए मणिपुर की महिलाओं को कैसा महसूस हुआ होगा?
इस ट्वीट के साथ उन्होंने बीजेपी की महिला सांसदों द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष को लिखा गया पत्र भी अटैच किया था। इस ट्वीट के कारण आईएएस शैलबाला मार्टिन चर्चा में आ गईं और इस फोटो के कारण माना गया कि उन्होंने बीजेपी महिला सांसदों पर तंज किया है। इस आकलन के बाद वे हिंदुवादी संगठनों के निशाने पर आ गईं।
अपनी बात को गलत समझ लिए जाने पर आईएएस शैलबाला मार्टिन ने एक और ट्वीट कर कहा कि एक दल विशेष के सांसद द्वारा संसद में किए गए कथित आचरण के विरुद्ध महिला सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को शिकायत की है। इसकी प्रति के साथ मैंने ट्वीट कर लिखा था कि जरा सोचिए मणिपुर की महिलाओं को कैसा महसूस हुआ होगा? इस एक पंक्ति के द्वारा मैंने महिलाओं की कोमल भावनाओं, उनके सम्मान तथा स्त्री अस्मिता के प्रति समाज से संवेदनशील होने की अपेक्षा की थी। किंतु उस ट्वीट को सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों पर मेरे द्वारा मंत्री व महिला सांसदों पर तंज या कटाक्ष के रूप में निरूपित किया गया है। मैं एक जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी होने से पहले एक संवेदनशील मनुष्य हूं, एक स्त्री हूं, एक नागरिक हूं। एक भारतीय हूं। मेरे शब्द तंज/ कटाक्ष नहीं, एक स्त्री की पीड़ा और वेदना हैं। मेरे विचार और भावनाएं देश की तमाम स्त्रियों के सम्मान के पक्ष में हैं। इसके अलावा मेरे विचारों का कोई और मंतव्य नहीं है।
शैलबाला मार्टिन ने इसके पहले अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि इसे नंगा नाच कहते हैं। लेकिन ये नंगा नाच मणिपुर से वीडियो में दिख रही महिलाएं नहीं कर रही हैं। इस नंगे नाच में उस समुदाय के लोग शामिल हैं जो अपनी संस्कृति पर गर्व करते नहीं थकते। इस नंगे नाच में उस समुदाय के लोग शामिल हैं जो स्वयं को नैतिकता में सबसे आगे रखते हैं। इस नंगे नाच में देश के युवाओं की वो भीड़ शामिल है जिसे हमने बेरोजगारों की फौज में तब्दील कर दिया है। जो दिन रात फ्री के डाटा से अश्लील वीडियो देखते हैं और मुफ्त का राशन पाते हैं। इस नंगे नाच में देश के युवाओं की वो भीड़ शामिल है जिसे हमने सिर्फ और सिर्फ हिंदू-मुसलमान, हिंदू-सिख, हिंदू-ईसाई करना सीखा दिया है। जिसके दिल ओ दिमाग में सांप्रदायिकता का कीड़ा हर समय रेंगता रहता है।
वे लिखती हैं कि ये घटना इसलिए हुई क्योंकि हम महिलाओं ने बलात्कारियों का सार्वजनिक सम्मान किए जाने पर अपनी आवाज बुलंद नहीं की। हमने उन्हें महिमा मंडित होने दिया। हम उन्हें संस्कारी घोषित करवाने में सहभागी बने। हमने उन्हें वहशी और आदमखोर बना डाला। लानत है उन मुर्दा नारियों पर जो स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों और सार्वजनिक यौन शोषण जैसी घटनाओं तक पर चुप्पी साध लेती हैं।
बहरहाल, आईएएस शैलबाला मार्टिन के कहे को तंज माना जाए या नहीं यह अलग बात है, मूल बात यह है कि उन्होंने एक गंभीर मुद्दा उठाया है और उनका यह कहना सही है कि इस कहे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
आईएएस शीलेंद्र सिंह को सजा तय, दूसरे आईएएस चिंता से घिरे
विभिन्न मामलों में जांच से घिरे तथा प्रकरणों में उलझे अफसर कोर्ट के रूख से हैरान हैं। मामला एक दबंग आईएएस का है और कोर्ट ने मानहानि के मामले में इस आईएएस के खिलाफ बिल्कुल नरमी नहीं दिखाई है। आईएएस दोषी करार दे दिए गए हैं और सजा से बचने की गुहार खारिज हो गई है। अब अगले हफ्ते सजा सुनाई जाएगी और यही सजा आईएएस का भविष्य तय करेगी।
ये दबंग आईएएस है शीलेंद्र सिंह। आईएएस शीलेंद्र सिंह जहां-जहां कलेक्टर रहे वहां-वहां उनकी तूती बोला करती थी। जब वे होशंगाबाद कलेक्टर थे तो विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा, पूर्व एसडीएम रवीश श्रीवास्तव से विवादों को लेकर चर्चा में रहे। उन पर रेत माफिया से मिलीभगत के आरोप भी उन पर लगते रहे। फिर जब छतरपुर के कलेक्टर बनाए गए तो चंदला से बीजेपी विधायक राजेश प्रजापति कलेक्टर बंगले के सामने धरने पर बैठ गए थे। बीजेपी विधायक ने आरोप लगाया था कि बीजेपी की सरकार होने के बाद भी कलेक्टर शीलेंद्र सिंह उनकी सुन नहीं रहे हैं। तब भी आईएएस शीलेंद्र सिंह को कोई फर्क नहीं पड़ा था।
मगर अब उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं। हाईकोर्ट ने उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी पाया है। मामला छतरपुर का है। स्वच्छता मिशन के तहत संविदा नियुक्ति में स्थानांतरण का कोई प्रावधान नहीं होने के बाद भी महिला कर्मचारी का तबादला किया गया था। कर्मचारी ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। अदालत के निर्देश के बाद भी महिला कर्मचारी को काम से निकाल दिया गया।
इस मामले में हाई कोर्ट जबलपुर ने पूर्व कलेक्टर शीलेंद्र सिंह और जिला पंचायत के तत्कालीन अपर कलेक्टर एवं जिला सीईओ अमर बहादुर सिंह को दोषी मानते हुए 11 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का आदेश दिया था। इस मामले में की गई अपील खारिज कर दी गई है। अब 17 अगस्त को सजा तय होंगी।
शीलेंद्र सिंह को होने वाली सजा पर उनका भविष्य टिका है लेकिन वे अन्य अफसर इनदिनों चिंता में हैं जिनके खिलाफ जांच जारी है। उन्हें डर है कि एक आईएएस को सजा होने का मतलब है मौत का घर देख लेना। फिर तो आगे भी अफसर यूं ही सजा पाते रहेंगे।
कमलनाथ के लिए शीतल थी इसलिए हटा दी गई कलेक्टर शीतला पटेल?
नवंबर 2022 में छिंदवाड़ा की पहली महिला कलेक्टर बनाई गई आईएएस शीतला पटेल को सरकार ने 9 माह में ही हटा दिया है। प्रशासनिक रूप से बेहतर कार्य कर भोपाल से प्रशंसा पा रही कलेक्टर शीतला पटेल को अचानक हटाने का कारण प्रशासनिक नहीं राजनीतिक है।
प्रशासनिक गलियारे में चर्चा है कि शीतला पटेल अपनी कार्यशैली से सबको खुश रखे हुए थी लेकिन स्थानीय बीजेपी नेता उनसे नाराज थे। बीजेपी नेताओं का मानना था कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के गढ़ कहे जाने वाले छिंदवाड़ा में बीजेपी को कलेक्टर से ‘उचित सहयोग’ नहीं मिल रहा था। इस कारण बीजेपी कमलनाथ की किलेबंदी नहीं कर पा रही थी। ये शिकायतें लगातार संगठन के पास पहुंच रही थीं। आखिरकार, चुनावी जमावट के क्रम में शीतला पटेल को हटा दिया गया। उनकी जगह उप सचिव महिला बाल विकास मनोज पुष्प को छिंदवाड़ा कलेक्टर बनाया गया है। उमा भारती के शासनकाल में 2003 में मनोज पुष्प छिंदवाड़ा में एसडीएम रह चुके हैं।
इस राजनीतिक जमावट में शीतला पटेल को कलेक्टर पद से हटाया जरूर गया लेकिन बेहतर काम करने का परिणाम यह हुआ कि उन्हें सीएम सचिवालय में पदस्थ किया गया है। ताकि राजनीतिक मजबूरी से लिया गया निर्णय प्रशासनिक जगत में गलत संदेश न दे।
कर्मचारियों को खुश करने सीएस की मैराथन बैठकें
राजनेता जानते हैं कि कर्मचारियों की अनदेखी सरकार बनाने में सबसे बड़ा रोड़ा है। यही कारण है कि मिशन 2023 फतह करने के लिए मोर्चाबंदी कर रही बीजेपी सरकार कर्मचारियों को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। उनके भत्तों में बढ़ोतरी के साथ संविदा कर्मचारियों की बरसों पुरानी मांग को पूरा करने के जतन किए जा रहे हैं।
पिछले माह आयोजित संविदा कर्मचारियों के सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की थी कि सेवा नवीनीकरण की शर्त हटा दिया जाएगा तथा उन्हें नियमित कर्मचारियों के समान सुविधाएं दी जाएगी। मुख्यमंत्री चौहान यह घोषणा कर भूल गए लेकिन कर्मचारियों को लगा कि चुनाव जैसे मौके पर मांग पूरी नहीं हुई तो अगले पांच साल फिर इंतजार करना होगा। घोषणा के बाद भी नियमों में संशोधन न होने पर कर्मचारी मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद मंत्रालय में संविदा कर्मचारियों की सेवा नियमों में संशोधन की माथापच्ची शुरू हो गई है।
मोर्चा खुद मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने संभाल लिया है। वे अलग-अलग विभागों के प्रमुख सचिवों से बैठक कर संविदा कर्मचारियों की जानकारी मांग रहे हैं। बैठकों में सेवा शर्तों की नई व्यवस्था तथा ढ़ाई लाख संविदा कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों की तरह अवकाश व अन्य सुविधाएं देने के प्रावधान तैयार करने पर विचार हो रहा है। संकेत मिले हैं कि सरकार हर हाल में ये नियम 15 अगस्त के पहले तैयार कर जारी कर देना चाहती है ताकि कर्मचारियों के थोक वोट सुनिश्चित किए जा सकें।