दफ्तर दरबारी: आईएएस ने बनाई ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रिय मंत्री से दूरी, अंधेरे में हैं भाई साहब
प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को निरंकुश कहने वाले पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया से आईएएस लॉबी दूरी बनाने लगी है। यह आकलन एसडीएम के रूप में पदस्थ ट्रेनी आईएएस को लेकर की गई शिकायत के बाद किया गया है।

इस माह के शरुआत की बात है जब पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया का एक वीडियो वायरल हुआ था। इसमें वे अपने प्रभार के जिले में थाना प्रभारियों के तबादले बिना उनसे पूछे कर दिए जाने से नाराज दिखाई दे रहे थे। इसकी शिकायत उन्होंने केंद्रीय मंत्री और अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, एसीएस होम तथा कलेक्टर से की थी। उन्होंने कलेक्टर को एसपी पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। वीडियो में वे कहते सुनाई दिए थे कि प्रदेश प्रशासनिक मुखिया यानि मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस निरंकुश हैं।
इस कहे तथा मुख्यमंत्री से बात होने के बाद मंत्री सिसोदिया द्वारा यू टर्न ले लेने के राजनीतिक अर्थ निकाले गए। बीजेपी के असंतुष्ट नेताओं में ईर्ष्या भाव उपजा कि सिंधियाखेमे के मंत्री खुल कर अपनी बात कह सकते हैं मगर बेचैन बीजेपी नेताओं की बात तो सुनी भी नहीं जा रही है। दूसरा अर्थ यह निकाला गया कि चाहे जो दिखाया जाए सिंधियाखेमे के नेताओं की शासन-प्रशासन में वैसी पूछ परख नहीं हो रही है जैसी कांग्रेस सरकार में हुआ करती थी। इसी कारण अब उन्हें खुल कर अपनी नाराजगी जाहिर करनी पड़ रही है।
राजनीतिक नफे-नुकसान का आकलन अपनी जगह लेकिन मैदान से मिली एक खबर ने और ध्यान खींचा है। खबर यह है कि मंत्री सिसोदिया गुना जिले के मकसूदनगढ़ में नगर परिषद के शपथ ग्रहण समारोह में गए थे। वहां एसडीएम को न पा कर वे नाराज हुए। मीडिया से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एसडीएम के पद पर युवा ट्रेनी आईएएस अक्षत ताम्रवाल पदस्थ हैं। प्रोटोकॉल के अनुसार मंत्री के कार्यक्रम में एसडीएम को होना चाहिए मगर वे नहीं आए।
मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने मीडिया से बात करते हुए अफसरों को याद दिलाया कि मध्य प्रदेश सरकार मतलब मंत्री होता है। उन्होंने कमिश्नर व कलेक्टर से कहा कि एसडीएम को शोकाज नोटिस दिया जाए। ट्रेनी आईएएस क्यों नहीं आए यह तो जांच का विषय है मगर जिस तरह से मंत्री सिसोदिया ब्यूरोक्रेसी और उसके मुखिया पर आरोप लगा चुके हैं उसके बाद माना जा रहा है कि आईएएस बिरादरी उनसे दूरी बनाने लगी है। ताजा मामले को इसी आकलन से जोड़ कर देखा जा रहा है। इसका कारण भी है। इस बार मंत्री सिसोदिया ने भी शिकायत को भोपाल पहुंचाने की जगह कमिश्नर व कलेक्टर तक की सीमित किया है।
आप अंधेरे में हैं भाई साहब
बीजेपी के कई सर्वे और फीडबैक में पता चला है कि मैदान में सरकार की स्थिति अच्छी नहीं है। इस फीडबैक के विपरीत मंत्रालय की बैठकों में सब हरा-हरा ही दिखाई देता है। ऑल वेल के फार्मूले पर काम कर रही शिवराज सरकार में पिछली कुछ घटनाओं को देखेंगे तो हैरत से कह उठेंगे, आप तो अंधेरे में हैं भाई साहब।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अधीन आने वाला महिला एवं बाल विकास विभाग इनदिनों फिर घोटाले को लेकर चर्चा में है। आरोप का कारण सीएजी यानि भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट है। कैग रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य प्रदेश महिला बाल विकास विभाग में 110 करोड़ रुपए घोटाला हुआ है। सरकारी कागजों में हजारों टन राशन को ट्रकों द्वारा ले जाना दिखाया गया है मगर जब ट्रकों के नंबरों की जांच की गई तो ये नंबर मोटरसाइकल, कार, ऑटो और टैंकरों के निकले। इस रिपोर्ट ने बिहार के चारा घोटाले की याद दिला दी। वहां भी ऐसे ही चारे का परिवहन किया गया था। ये रिपार्ट कुछ जिलों की है, यदि पूरे प्रदेश में जांच हो तो बड़ा घोटाला सामने आएगा।
इस मुद्दे पर कांग्रेस आक्रामक हुई तो बीजेपी व सरकार बचाव में आ गई। विभाग मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास है इसलिए उन्होंने इसे आरंभिक ड्राफ्ट बताते हुए कहा कि सरकार का पक्ष इसमें शामिल नहीं है। सरकार अपना पक्ष रखेगी। सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई गई जानकारी में कहा गया कि सुरक्षाकर्मियों या गेट कीपर ने ट्रक का नंबर लिखने में गलती की है। इस कारण नंबर स्कूटर, बाइक या टेंकर के निकले हैं।
मुख्यमंत्री के विभाग पर उठे सवाल कम भी नहीं हुए थे कि मुख्यमंत्री हेल्प लाइन में गड़बड़ी सामने आ गई। पता चला कि शिकायत निराकरण के प्रतिशत के आधार पर मुख्यमंत्री जिस योजना की प्रशंसा करते है उसमें फर्जी शिकायत करवा कर उन्हें निराकृत दिखाया जाता है और असली शिकायतों पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है।
सीएम हेल्पलाइन की शुरुआत 2014 में हुई थी। अब तक इस पर 1.87 करोड़ 63 हजार से अधिक शिकायतें आई, जिनमें से 1.83 करोड़ 82 लाख से अधिक के निराकरण का दावा किया जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स में खुलासा हुआ कि ग्राम पंचायत सचिव और रोजगार सहायक से फर्जी डमी शिकायतें करवाई जाती हैं और 24 घंटे में उनका निराकरण कर दिया जाता है।
तीसरा मामला, यूरिया संकट का है। हर बार फसल के सीजन में किसान यूरिया व खाद का संकट भोगते हैं। आरोप लगता है कि सरकारी केंद्रों से दिया जाने वाला यूरिया व खाद बाजार में बेचा जा रहा है जहां से किसान ऊंचे दाम पर खरीदने को मजबूर होते हैं।
जबलपुर में यूरिया सप्लाई में हुई गड़बड़ी पर जब सीएम शिवराज सिंह चौहान एक्शन मूड में आए तो प्रशासन चेता। जबलपुर संभाग में किसानों को बांटने के लिए आए एक हजार टन यूरिया में से 890 टन यूरिया गायब होने पर सरकार की सख्ती का असर हुआ। प्रशासन ने 80 मीट्रिक टन यूरिया पकड़ भी लिया।
ये तीनों मामले बताते हैं कि सरकार अंधेरे में हैं या जानकर हकीकत देखना नहीं चाहते हैं। वास्तव में पड़ताल की जाए तो हरे हरे गुलशन के पीछे घोटालो और लापरवाहियों का स्याह अंधेरा उजागर होगा।
भूपेंद्र सिंह हो मिली सख्त आईएएस से मुक्ति
यह वाक्य प्रख्यात है कि सोच को बदलो सितारे बदल जाएंगे, दिशाओं को बदलो किनारे बदल जाएंगे। फिलहाल यह मध्य प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह के मामले में सटीक साबित हो रही है। वे अपने विभाग के आयुक्त वरिष्ठ आईएएस निकुंज श्रीवास्तव की कार्यप्रणाली से नाराज बताए जाते थे। दोनों की पटरी नहीं बैठने की खबरें अकसर आम हुई हैं। अब उनकी इस शिकायत की सुनवाई हो गई।
मैदानी पोस्टिंग पाने के लिए प्रदेश के कई आईएएस बड़ी प्रशासनिक सर्जरी का इंतजार कर रहे हैं मगर हाल ही में सरकार ने कुछ अधिकारियों में अदला बदली की है। इन तबादलों में सबसे प्रमुख था नगरीय प्रशासन विभाग के आयुक्त निकुंज श्रीवास्तव को हटा कर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में भेज दिया जाना। दिल्ली से प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद भोपाल आए निकुंज श्रीवास्तव को मेट्रो तथा नगरीय निकाय के विकास का काम दिया गया था। इसके पीछे मंतव्य था कि आईएएस श्रीवास्तव को दिल्ली में मिले अनुभव का लाभ प्रदेश को मिलेगा। मगर जल्द ही खबर आई कि आईएएस निकुंज श्रीवास्तव की कार्यप्रणाली विभाग के मंत्री भूपेंद्र सिंह को रास नहीं आ रही है।
इसबीच नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच दूरियों को देखा गया। जबकि भूपेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री चौहान का करीबी मंत्री माना जाता है। पिछड़ा वर्ग आरक्षण के मसले पर पिछड़ा वर्ग के दोनों नेताओं के बीच सार्वजनिक रूप से भी दूरी दिखाई दी थी। इसलिए जब विभागीय मंत्री भूपेंद्र सिंह और आयुक्त निकुंज श्रीवास्तव के बीच मतभेद की खबरें आईं तो उस धारणा को बल मिला जिसके तहत माना जाता है कि अफसरों के जरिए मंत्रियों पर शिकंजा कसा गया है।
आयुक्त के तबादले से न केवल मंत्री भूपेंद्र सिंह को राहत मिली है बल्कि मुख्यमंत्री और मंत्री के रिश्तों में सुधार का संकेत भी मिला है। अन्यथा ऐसी राहत तो कई मंत्री मांग रहे हैं मगर उनकी सुनवाई हो नहीं रही है।
मनु श्रीवास्तव को नहीं मिला बिजली जैसा जिम्मा
राजधानी में बीते दिनों जब 24 घंटें का अंधेरा छाया और ग्रामीण क्षेत्रों में कटौती से जनता परेशान हुई तो बिजली प्रबंधन के लिए मशहूर आईएएस मनु श्रीवास्तव की याद आई। लगा था कि लंबे समय तक बिजली कंपनियों के कामकाज को देखने वाले आईएएस मनु श्रीवास्तव का जल्द पनुर्वास होगा मगर ऐसा हुआ नहीं। उन्हें लूप लाइन में ही रखा गया है।
सरकार ने आईएएस मनु श्रीवास्तव केा राजस्व मंडल के प्रशासनिक सचिव के पद से हटाया जरूर लेकिन किसी महत्वपूर्ण विभाग में भेजने की जगह कुटीर और ग्रामोद्योग विभाग में प्रमुख सचिव बना दिया गया है। यूं तो इस विभाग में करने को भी बहुत कुछ है मगर उम्मीद को उनके बिजली विभाग में लौटने की थी।
आगामी चुनाव को देखते हुए बिजली विभाग सरकार की प्राथमिकता का विभाग है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लंबे समय तक मनु श्रीवास्तव पर भरोसा दिखाया है मगर अब वे उन अफसरों की सूची में शामिल हो चुके हैं जो कभी मुखिया की आंख के तारे थे मगर अब गर्दिश में जा चुके हैं।