दफ्तर दरबारी: अफसर बदलने के पीछे क्या है सीएम शिवराज का राजनीतिक संदेश
गुना में तीन पुलिसकर्मियों की हत्या ने बता दिया है कि राजनीतिक संरक्षण के आगे पुलिस का खौफ काफूर हो गया है। खरगोन दंगों, सिवनी मॉब लिंचिंग और गुना में पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद सरकार की जान सांसत में है और एक-एक कर अफसरों को बलि का बकरा बनाना शुरू कर दिया है। दिलचस्प यह है कि इस प्रशासनिक सर्जरी में सीएम शिवराज सिंह ने राजनीतिक गेम भी खेल दिया है।

भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और बेपरवाह प्रशासन। मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी की यही पहचान बनती जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंच से कहते हैं कि खाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन भ्रष्टाचार सतत बढ़ता ही जा रहा है। इसी तरह, विधानसभा चुनाव 2023 के लिए आदिवासी वोट बैंक पर शिवराज सरकार की नजर है। यह वोट बैंक खटाई में जाता दिखाई दिया जब सिवनी में आदिवासियों की कथित बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने हत्या कर दी। फिर, गुना में तीन पुलिसकर्मियों की हत्या ने बता दिया है कि राजनीतिक संरक्षण के आगे पुलिस का खौफ काफूर हो गया है।
खरगोन दंगों, सिवनी मॉब लिंचिंग और गुना में पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद सरकार की जान सांसत में है और एक-एक कर अफसरों को बलि का बकरा बनाना शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि इस प्रशासनिक सर्जरी में सीएम शिवराज सिंह ने राजनीतिक संदेश भी दिए हैं। उन्होंने पांच माह बाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी झटका दिया है। मानो, सिंधिया ने भोपाल में आमद दी, उधर, गढ़ में सिंधिया की पसंद का अफसर ‘टपका’ दिया गया।
गुना के आरोन में जो हुआ वह सरकार के लिए बेहद शर्मनाक है। ऐसी घटना जो बताती है कि मध्य प्रदेश में कानून का राज नहीं है। शिकारियों से हुई मुठभेड़ में तीन पुलिसकर्मियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मामले पर राजनीति गर्माई तो मुख्यमंत्री चौहान ने आनन फानन में बैठक बुलाई। गुना से भोपाल तक हड़कंप मचा था और ग्वालियर आईजी अनिल शर्मा ग्वालियर में आराम फरमाते रहे। सवाल उठे तो मुख्यमंत्री के गुस्से की गाज आईजी पर गिरी और उन्हें तुरंत हटा दिया गया।
अंदरखाने की खबर है कि यह तो बिल्ली के भाग से छींका टूटा है। आईजी अनिल शर्मा को हटाने का मौका ही ढूंढा जा रहा था। असल में, आईपीएस अधिकारी अनिल शर्मा ग्वालियर आईजी के रूप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहली पसंद नहीं थे। राज्य सरकार ने 31 दिसंबर को तत्कालीन गृह सचिव श्रीनिवास वर्मा को ग्वालियर आईजी नियुक्त किया था लेकिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इस फैसले से नाराज हो गए। कहते हैं, सिंधिया अपने क्षेत्र में अपनी पसंद का अफसर चाहते थे।
पोस्टिंग के आदेश जारी होने के बाद आईपीएस वर्मा पुरानी पदस्थापना से रिलीव हो गए और उनकी जगह गौरव राजपूत ने गृह सचिव का कार्यभार ग्रहण भी कर लिया था। वर्मा ग्वालियर जा कर पद ग्रहण करते इसके पहले सिंधिया की नाराजगी की खबर सीएम हाउस जा पहुंची। तुरंत ही आईपीएस वर्मा तक चार्ज नहीं लेने का संदेश पहुंचाया गया। मामला ऐसा उलझा कि 19 दिनों तक ग्वालियर आईजी का पद खाली पड़ा रहा।
बाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कदम पीछे लेते हुए सिंधिया की पसंद माने जाने वाले अफसर अनिल शर्मा को ग्वालियर आईजी बना दिया था। तब ही से मौका खोजा जा रहा था कि अनिल शर्मा एक गलती करें और उन्हें ‘सजा’ मिले। हुआ भी ऐसा ही। इस तरह, प्रशासनिक सर्जरी में राजनीतिक शहमात का खेल हुआ।
इसी हफ्ते केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भोपाल के सरकारी बंगले में शाही प्रवेश किया है। बंगला तो उनके महल की तरह सजाया ही गया है प्रवेश द्वार पर सिंधिया घराने के चिह्न को लगाया गया है। कार्यक्रम में सिंधिया के समर्थक तो मौजूद थे मगर भाजपा के अन्य नेता गायब थे। इसे सिंधिया का शक्ति प्रदर्शन माना गया। आकलन किया गया कि भोपाल में सिंधिया की आमद भाजपा में एक ओर ध्रुव के मजबूत होने का संकेत है। भोपाल में सिंधिया की आवाजाही बढ़ेगी और वे 2023 के चुनाव में सीएम के समानांतर प्रचार अभियान का हिस्सा होंगे। यह सीधे सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की शक्ति के बंटवारे जैसा है।
ग्वालियर के आईजी अनिल शर्मा को हटाने का अर्थ यह भी निकाला गया है कि सिंधिया ने अगर राजधानी में दखल दिया है तो गढ़ ग्वालियर में उनके पसंदीदा अफसर का ‘शिकार’ हो गया। न केवल पसंद का अफसर हटा गया बल्कि ग्वालियर में उस अफसर को भेजा गया है जिसे सिंधिया ने 19 दिनों तक ज्वाइन नहीं करने दिया था। आईपीएस श्रीनिवास वर्मा और खुद सिंधिया इस बात को भूले नहीं होंगे। देखना होगा यह कड़वाहट क्या रंग दिखाएगी। संभव है यह कड़वाहट शिवराज और सिंधिया के संबंधों में भी घुल जाए।
आईपीएस की नजर में, शिवराज के लिए ‘वेक अप कॉल’
आरोन में पुलिस कर्मियों की हत्या के बाद आरोपियों के एनकाउंटर से पुलिस ने आलोचकों का मुंह बंद करने की कोशिश की है। मगर शासन और पुलिस तंत्र पर सवाल तो उठ ही रहे हैं। इस मामले में राजनीतिक आरोप प्रत्यारोपों से अलग कुछ गंभीर सवाल भी सामने आए हैं। पुलिस अधिकारियों की नृशंस हत्या पर आईपीएस अधिकारी ने ही प्रश्न खड़े किए हैं।
एडीजी रहे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी विजय यादव ने इस घटना के बाद कमेंट किया है कि यह मध्य प्रदेश पुलिस के लिए अत्यंत ही शर्मनाक घटना है। यह मुख्यमंत्री एवं मध्य प्रदेश पुलिस नेतृत्व के लिए ‘वेक अप कॉल’ काले हिरण के अवैध शिकारी तीन पुलिसकर्मियों की हत्या कर उनके हथियार लूटने में सक्षम है तो आप समझ सकते हैं कि आतंकवादी अथवा संगठित अपराधी इस प्रांत में क्या क्या कर सकते हैं? अनुशासन, मनोबल, एवं नेतृत्व, तीनों का अभाव है।
अब तक राजनीतिक आरोपों के जवाब देने में जुटे बीजेपी प्रवक्ताओं के पास विजय यादव जैसे अफसरों की टिप्पणी का जवाब नहीं है।
सिवनी के रंग निराले, जांच पर जांच, फिलहाल अफसर सिधारे
मध्यप्रदेश के सिवनी में दो आदिवासियों की पीटकर हत्या के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अजीब मुश्किल में घिरे हैं। सिमरिया गांव में 2 और 3 मई की रात दो आदिवासियों की मॉब लिंचिंग में बजरंग दल और श्रीराम सेना के सदस्यों के शामिल होने के आरोप लगे हैं। इस घटना ने खुद को आदिवासी हितैषी कह रही शिवराज सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। मुश्किल यह कि कार्रवाई करें तो अपनों के फंसने का जोखिम और न करें तो वोट बैंक खिसकने का डर। छिछालेदारी से बचने के लिए बीजेपी संगठन ने घटना की जांच के लिए एक समिति बना दी। विपक्ष मामले की निष्पक्ष जांच के लिए कमेटी बनाए यह बात तो समझ आती है लेकिन बीजेपी को अपनी ही सरकार में अलग जांच कमेटी बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
असल में, गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने भोपाल में साफ कहा था कि घटना में बजरंग दल कार्यकर्ताओं के शामिल होने के साक्ष्य नहीं मिले हैं। लेकिन आदिवासी परिवार घटना में बजरंग दल और श्रीराम सेना के कार्यकर्ताओं के होने की बात कह रहे हैं। सरकार ही नहीं बीजेपी भी आरोपों से घिर रही थी। समय के साथ आदिवासियों में नाराजगी बढ़ रही थी।
जब मामला नहीं संभला तो पार्टी ने जांच कमेटी गठित कर मुद्दों को बदलने का प्रयास किया। इस जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल खड़े किए थे। कांग्रेस की जांच कमेटी ने बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के शामिल होने की बात कही तो बीजेपी की कमेटी ने अफसरों की लापरवाही पर ठिकरा फोड़ा। माना जा रहा है कि इस जांच रिपोर्ट के आधार पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिवनी एसपी कुमार प्रतीक के साथ ही घटना वाले इलाके की बादलपार थाना चौकी और कुरई थाने के पूरे स्टाफ को हटा दिया है। मुख्यमंत्री चौहान ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यों का विशेष जांच दल गठित करने के निर्देश दिए हैं। एसआईटी में एसीएस गृह राजेश राजौरा, एडीजी अखेतो सेमा और माध्यमिक शिक्षा मंडल के सचिव श्रीकांत भनोट को शामिल हैं। यह जांच दल 10 दिनों में रिपोर्ट पेश करेगा।
असल में, सरकार ने ताबड़तोड़ यह कार्रवाई इसलिए की है कि बीजेपी का जांच दल जब सिवनी के गांवों में पहुंचा था तब आदिवासियों ने जमकर आक्रोश व्यक्त किया था। पार्टी ने चुनाव की दृष्टि से इसे शुभ संकेत नहीं माना। एक तरफ तो भव्य आयोजन कर आदिवासियों को लुभाने की कोशिश, दूसरी तरफ मॉब लिंचिंग का आरोप। अफसरों को हटा कर सरकार ने पेंचवर्क किया है। राजनीतिक गड्ढों को भरने के लिए सरकार को और उपाय करने होंगे।
वैसे, विपक्ष के लिए यह कार्रवाई भी एक मुद्दा ही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है कि सरकार ने 12 दिनों बाद कांग्रेस व आदिवासी वर्ग के दबाव में यह निर्णय लिया गया है।पहले सरकार पूरे मामले में लीपा पोती में लगी रही, प्रशासन को क्लीन चिट दी जाती रही है। कई ज़िम्मेदारों को बचा लिया गया है।
चर्चा है कि इन जिम्मेदारों को बचाने के लिए ही एसपी और समूचे थाने को बदला गया है। ऐसे ही खरगोन हिंसा मामले भी कलेक्टर और एसपी को हटा दिया गया है। इस तरह, सीएम शिवराज सिंह ने प्रशासनिक सर्जरी कर राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है।
एक कलेक्टर की सजा दूसरे के लिए बन गई तोहफा
प्रशासनिक सर्जरी में यूं तो आईपीएस और आईएएस अफसरों दंड स्वरूप मैदानी पोस्टिंग से हटाया गया है मगर इस दौरान निवाड़ी कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी की मुराद पूरी हो गई है। लंबे समय तक उज्जैन में अपर कलेक्टर रहे नरेंद्र कुमार को कोरोना काल में पहले बीना भेजा गया थी फिर उप चुनाव को देखते हुए निवाड़ी कलेक्टर बनाया गया था। पृथ्वीपुर विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद माना जा रहा था कि नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी को अच्छी पोस्टिंग मिलेगी। वे भी उज्जैन क्षेत्र में ही जाना चाह रहे थे।
मुख्यमंत्री चौहान ने खरगोन दंगों के बाद अब जब कलेक्टर अनुग्रह पी. को हटा कर रतलाम कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम को खरगोन भेजा तो नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी की मुराद पूरी हो गई। उन्हें निवाड़ी जैसे जिले से सीधे रतलाम जैसे महत्वपूर्ण व बड़े जिले की कमान मिल गई है। यानी अनुग्रह पी. की सजा नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी के लिए तोहफा साबित हुई।