किसानों के लिये जरूरी है कमलनाथ का कर्ज माफी मॉडल
कर्जमाफी के पहले चरण में 7108.96 करोड़ रुपये और दूसरे चरण में 4538.03 करोड़ रुपये यानी कुल मिलाकर 11,646.96 करोड़ रुपये के किसान कर्ज माफ किये गए।

मध्य प्रदेश आज भी एक कृषि प्रधान राज्य है, जहां करीब 70 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है। इसके बावजूद प्रदेश में किसानों की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सत्ताधारी भाजपा ने किसानों से जो भी वादे किये वे निभाए नहीं। न तो वादे के मुताबिक 2022 में किसानों की आमदनी दुगनी हुई और न ही 2023 के विधानसभा चुनाव में गेहूं और धान का वह न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया गया, जिसका वादा भाजपा ने किया था। जबकि इस दौरान कृषि लागत लगातार बढ़ती गई है।
ऐसे में जरूरी है कि पलटकर देखा जाए कि प्रदेश के किसानों के हित के लिए अतीत में कौन से बढ़िया काम हुए थे और क्या उन्हें दुहराया जा सकता है। पाठकों को याद होगा कि दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री बनते ही कमलनाथ ने सबसे पहले किसानों की कर्जमाफी के आदेश पर दस्तखत किये थे। कर्ज में फंसे किसानों का पूरा अध्ययन करने के बाद कमलनाथ सरकार ने वर्ष 2019 में किसानों का कर्ज माफ कर दिया था। प्रदेश के इतिहास में यह सबसे बड़ी कर्ज माफी योजना थी। कमलनाथ सरकार ने दो चरणों में करीब 27 लाख किसानों का कर्ज माफ किया था, जो प्रदेश के लिये अपने आप में एक रिकॉर्ड है।
इस योजना के पहले चरण में 20 लाख 23 हजार 136 किसानों का कर्ज माफ किया था और दूसरे चरण में 6 लाख 72 हजार 245 किसानों का कर्ज माफ किया गया। इस तरह करीब 27 लाख किसानों का कर्ज माफ किया गया। कमलनाथ अगले चरण में और भी किसानों का कर्ज माफ करने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन इस बीच उनकी सरकार गिरा दी गई।
इस योजना की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि कमलनाथ ने किसानों का कर्ज तो माफ किया लेकिन राजकोष पर इसका ज्यादा बोझ नहीं पड़ने दिया। कर्जमाफी के पहले चरण में 7108.96 करोड़ रुपये और दूसरे चरण में 4538.03 करोड़ रुपये यानी कुल मिलाकर 11,646.96 करोड़ रुपये के किसान कर्ज माफ किये गए। देवास, खरगौन, मंदसौर, सीहोर और विदिशा जिलों में तो एक-एक लाख से अधिक किसानों का कर्ज माफ किया गया। छिंदवाड़ा में करीब 75 हजार किसानों का कर्ज माफ किया गया।
मध्य प्रदेश जैसे राज्य के लिये यह काफी बड़ी संख्या है और खासकर कमलनाथ सरकार को जिस तरह का खाली खजाना मिला था, उसमें तो यह और बड़ी चुनौती थी। लेकिन इस चुनौती से निपटने में कमलनाथ का अनुभव काम आया था। छिंदवाड़ा से 40 साल तक सांसद रहने के कारण वे किसानों की जरूरतों को बखूबी जानते थे, तो दूसरी तरफ देश के वाणिज्य मंत्री के रूप में उनका अनुभव बैंकों पर नकेल कसने में काम आया। कमलनाथ ने बैंकों से कहा कि वे उसी तरह किसानों का कर्ज माफ करें जिस तरह वे कॉरपोरेट का कर्ज माफ करते हैं। इसका मतलब यह था कि संपूर्ण बकाया राशि की जगह बैंक एक ऐसी राशि पर समझौता करें जो बैंक और राज्य सरकार दोनों को मंजूर हो। कमलनाथ के बैंकिंग, मौद्रिक नीति और अर्थशास्त्र के बारीक ज्ञान के सामने बैंकों की दलीलें नहीं टिकीं और 11,646.96 करोड़ का कर्ज किसानों के सिर से उतर गया।
अब जरा आज की तस्वीर पर गौर करें। आज स्थिति यह कि किसान पिछले एक महीने से यूरिया न मिल पाने के कारण प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में प्रदर्शन कर रहे हैं। नकली खाद और बीज किसानों के लिये दूसरा बड़ा संकट हैं। तीसरी समस्या यह आ गई है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा के नाम पर किसानों से खिलवाड़ किया जा रहा है। सरकार और किसानों ने मिलकर खरीब 2024 में करीब 1792 करोड़ रुपये फसल बीमा का प्रीमियम दिया। उसके बाद राज्य सरकार के अधिकारियों ने माना कि सोयाबीन की फसल को 50 से 70 प्रतिशत तक नुकसान हुआ है। लेकिन बीमा कंपनी ने सैटेलाइट सर्वे का बहाना बनाकर इसे खारिज कर दिया और किसानों को बीमा क्लेम के नाम पर 100-200 रुपये पकड़ा दिये।
2020 में कमलनाथ सरकार गिरने के बाद से किसानों के साथ लगातार यही हो रहा है। ऐसे में जरूरत इस बात की है किसानों को आर्थिक संकट से उबारने के लिये मौजूदा सरकार सबसे पहले किसानों की कर्जमाफी करे और इसके लिये कमलनाथ मॉडल को अपनाए। इसी तरह बीमा कंपनियों पर भी कमलनाथ के अनुभव का लाभ लेते हुए लगाम कसे। सरकार को यह समझना होगा कि जब किसान का कर्ज माफ किया जाएगा तो किसान के पास कुछ पैसा बचेगा। इसी पैसे को किसान बाजार में खर्च करेगा और इससे आर्थिक गतिविधि का पहिया घूमेगा।
आर्थिक गतिविधि के लिये पूंजी का गतिमान होना बहुत जरूरी है। अगर एक 10 का नोट एक व्यक्ति की जेब में है तो वह सिर्फ 10 रुपये हैं। लेकिन अगर किसान ने 10 रुपये ऑटो वाले को दिये, ऑटो वाले ने परचून वाले को दिये, परचून वाले बच्चे की स्कूल फीस में दिये, स्कूल वालों ने ऐसे स्टेशनरी वाले को दिये और स्टेशनरी वाले किसान से गेहूं खरीदा तो पांच हाथों से गुजरकर यह 10 रुपये 50 रुपये की आर्थिक गतिविधि कर देते हैं। इसी को वेलोसिटी ऑफ रुपी कहते हैं। इसलिये बेहतर होगा कि मध्य प्रदेश सरकार हर महीने 5000 करोड़ रुपये का कर्ज लेने के बजाय किसानों का कर्ज माफ करे और किसानों की जेब में पैसा पहुंचाकर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को तेज करे। मुझे लगता है कि सरकार अगर इस संबंध में कमलनाथ जी से कोई सलाह मांगेगी तो वे प्रदेश हित में जरूर सलाह देंगे।
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं।)