संक्रमण से ज़्यादा इच्छा शक्ति के कमज़ोर पड़ने की वजह से मर रहे हैं लोग, कोरोना को परास्त करने वालीं पत्रकार अनुराधा त्रिवेदी बता रही हैं अपने अनुभव

भोपाल की वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा त्रिवेदी ने 12 दिन के संघर्ष के बाद आखिर कोरोना को पराजित कर दिया है। स्वस्थ होने के बाद वे अन्य संक्रमित लोगों की सेवा में लग गई हैं। अनुराधा त्रिवेदी ने लोगों से सकारात्मक रहने की अपील की है। वरिष्ठ पत्रकार ने कहा है कि लोगों की सकारात्मकता ही इस महामारी को परास्त कर सकती है, अनुराधा त्रिवेदी के मुताबिक लोग अगर सकारात्मकता के साथ इस संक्रमण से लड़ेंगे तब अस्पताल में कोविड के बिस्तर खाली होने लगेंगे।

Updated: Apr 26, 2021, 12:24 AM IST

 

11 अप्रैल को 58 वर्षीय अनुराधा त्रिवेदी की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। कोरोना के संक्रमण के चलते उन्हें पालीवाल हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था। अनुराधा त्रिवेदी बता रही हैं कि अपनी सकारात्मकता से उन्होंने अस्पताल में भर्ती होने के तीन दिन बाद से ही रिकवर करना शुरू कर दिया था। वे खुद तो रिकवर हुईं ही साथ ही उन्होंने अपने आसपास भर्ती मरीजों में भी सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार किया। अनुराधा त्रिवेदी ने अस्पताल में भर्ती होने के समय से ही लोगों की मदद करनी शुरू कर दी थी। अस्पताल के बाहर लोगों के लिए बेड की व्यवस्था कर रही थीं, तो वहीं अस्पताल में अपने साथ भर्ती मरीजों को बॉलीवुड के पुराने गाने सुनाकर उनका मनोरंजन भी कर रही थीं। 

अनुराधा त्रिवेदी पेशे से एक पत्रकार हैं। करीब 30 वर्षों से भी अधिक समय से वे पत्रकारिता कर रही हैं। दिल्ली, झांसी, भोपाल सहित देश के विभिन्न हिस्सों में अनुराधा अपनी पत्रकारिता का लोहा मनवा चुकी हैं। अनुराधा त्रिवेदी ने कैसे इस माहमारी से पार पाया? इस माहामारी से बचने के लिए लोगों को क्या उपाय करने चाहिए? लोगों से चूक कहां हो रही है? यह अब कुछ अनुराधा त्रिवेदी ने अपने अनुभव से बताया है। उनके अनुभव को पढ़िए।  

 

दूसरों का मनोबल बनाए रखें, मनोबल को कमज़ोर पड़ने दें 

जी हां, कोरोना को हराने के सभी प्रयास तब तक सफल नहीं होंगे, जबतक हम आप सकारात्मक नहीं होते, किसी तरह की पोस्ट या कमेंट को पढक़र हम ज्ञानचंद या रायचंद न बनें। सदैव पॉजिटिव रहते हुए हम अपना और दूसरों का मनोबल बनाएं रखते हैं, तो ये भी आज कोरोना काल में किसी समाजसेवा व देशसेवा से कम नहीं होगी। मतलब ये, कि आज कोरोना के इस आपातकाल में देशवासियों का मनोबल बिल्कुल कमजोर नहीं पडऩा चाहिए। हालांकि, पूरी दुनिया के साथ हमारा देश भी आज जब कॅरोना की विभीषिका से जूझ रहा है, तो हमारे देश की राजनीति अपने क्रूरतम चरित्र का प्रदर्शन कर रही।

आज आम नागरिक बड़ी सहजता से कुछ भी कह सकते हैं, सोशल मीडिया में कैसा भी ज्ञान और अपना मत लोगों को भेज सकते हैं, वायरल कर सकते हैं, लेकिन उसमें कितने सत्य होते हंै, कितने प्रतिशत हवा-हवाई, तथ्यहीन या अवास्तवित पोस्ट, लेख, कमेंट होते हैं, ये आप भी जानते हैं। पर ज्ञानचंद बनकर फ्री में सलाह, उपाय और ज्ञान बांटना शायद आज कोरोना संक्रमण काल में सबसे आसान है, क्योंकि अभी लोगों के पास समय भी खूब है। लेकिन, इस समय का, अपने ज्ञान, बुद्धि-विवेक का अगर आप या हम सकारात्मक दृष्टिकोण से करें, भय के बजाय पीडि़त व उनके परिजनों को सांत्वना, साहस दें, उनका मनोबल और आत्मबल बढ़ाये, तो यकीन मानिए संक्रमण से पीडि़तों की संख्या और संक्रमित होने वाले लोगों के स्वस्थ होने की संख्या में आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ोत्तरी होगी, ऐसा मैं स्वयं अस्पताल में इलाज के दौरान और आंखों से देखे हुए सैकड़ों पीडि़तों व उनके परिजनों पर आपबीती पर चिंतन करते हुए दावे से लिख रही हूं।

आम नागरिक, जो आज प्राय: ज्ञानचंद या रायचंद भी भूमिका में निभा रहा है, उसकी तुलना मैं उस कहावत- बिच्छू का मंत्र न जाने और सांप के बिल में हाथ डाले, से करती हूं। कारण, आज की विपरीत परिस्थिति में आप जैसी भी सहायता जरूरतमंद लोगों की कर सकते हैं, करें। जरूरी नहीं कि पैसा या सामानों से ही करें। आप मौखिक रूप से, अपने विचारों से भी सहायता कर सकते हैं। किसी को डराने या समाज में डर या नकारात्मकता का माहौल बनाने के बजाय के आप लोगों को सावधान करें। इसे आप अपने घर, मोहल्ले, कॉलोनी या अगर आप इलाज करवाने हॉस्पिटल में हैं, वहां भी करें। ऐसा करने और उसके परिणाम के बाद यह मैं लिख रही हूं।

 बारह दिन हॉस्पिटल मैं बतौर कोविड पेशेन्ट मैं एडमिट रही। ये 12 दिन ऐसे थे जैसे अभी दम घुट जाएगा। तब पहली बार मुझे लगा मैं बीमार हूँ। तत्काल दूसरे ही पल ख्याल आया कि इलाज तो हो रहा है और ठीक भी हो रही हूँ। मेरे पास दो मोबाइल थे सुबह उठकर मैं उसमे तेज आवाज में बहुत पुराने और लोकप्रिय गाने लगा देती थी सारे पेशेन्ट उन को सुना करते थे। सभी इंजॉय भी करते थे। पर रंग में भंग तब पड़ता था, जब किसी पेशेन्ट का अटेंडर आता था और पेशेन्ट को हम सबके साथ ही बाहर लोगों की मौत की गिनती बताता, दवाई इंजेक्शन की किल्लत लोगों की मारामारी के बारे में बताता। मैंने देखा लोग सहम जाते, आंखों में भय उतर जाता जो दिमाग में चढ़ जाता।

प्राय: मैं डॉक्टर से कहकर अटेंडर को बाहर करवा देती। पर कब तक ऐसा कर पाती। इसी बीच हर पेशेन्ट के मोबाइल में संजीव गुप्त की ड्रोन कैमरे की फोटो आने लगी। लोग आपस मे बात करने लगे, सरकार को गरियाने भी लगे डरने लगे। मुझे लगा ये ठीक नही। भारी निराशाओं के बीच भी सुखद यह कि जिस पालीवाल हॉस्पिटल में मैं थी, वह ठीक होकर घर वापसी करने वालो की संख्या 95 से 98 प्रतिशत थी। गुजर वही लोग रहे है, जो मल्टीपल बीमारियों के शिकार भी है।

आज जब पत्रकारिता को अहम जिम्मेदारी निभानी है। एक परिवार के रूप में समाज के सामने खड़े होने की जिम्मेदारी भी निभानी है। ऐसे में हमारी भूमिका हमारे दायित्व समाज के प्रति कैसा हो, ये हमको सोचना होगा। क्या हम समाज मे भय नही फैला रहे? क्या हम लोगों का सुकून नही छीन रहे ? क्या हमारा काम यही है ? मनोवैज्ञानिक रूप से ये सही है, जैसा आप सोचेंगे वैसा ही घटित होगा। स्थिति ये थी कि डॉक्टर पालीवाल पेशेन्ट को लेकर इतने गम्भीर थे कि 10 दिन उन्होंने नहाने का वक्त भी नही निकाल पाए। उनके पैरामेडिकल स्टाफ की बच्चियां 3-3 दिन तक अपने घर नही जा पाईं और वहीं अस्पताल में ही दो घण्टे ड्यूटी कर फिर काम पर लग गया। ये सब मैंने अपनी आंखों देखा। और हम क्या कह रहे बाहर डॉक्टर पैसा छाप रहा। मैं नहीं कहती थी सारे डाक्टर्स ईमानदार हैं, लेकिन मैं यह भी कहती हूं, कि सारे डाक्टर बेइमान नहीं हैं। ठीक उसी तरह, जिस तरह पांचों ऊंगली बराबर नहीं होती या सब धान बाइस पसेरी नहीं होता। और अगर ऐसा होता, तो प्रतिदिन अस्पतालों से स्वस्थ होकर घर जाने वालों की संख्या कुछ और ही अखबार में पढ़ते या टीवी में सुनते।

हम प्राय: सभी डाक्टरों को एक ही तराजू से तौलते हुए कहते हैं, डॉक्टर मरीज के साथ अच्छे से पेश नही आ रहा। अपवाद के मामलों को अगर आप-हम छोड़ दें, तो हम ये क्यों नही सोचते कि बीते साल की तरह भी आज करोना वारियर्स या फ्रंट लाइन वर्कर आपको बचाने में जुटी है, पुलिस इसलिए आपको घर वापिस कर रही ताकि आप परिवार सहित सुरक्षित रहें। वहीं, अगर हम केवल निगेटिव पक्ष समाज के सामने रखेंगे, तो याद रखिये हमारा समाज, हमारा प्रदेश और देश भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा, क्योंकि नकारात्मकता से निकले निराशा में डूबे देश के नागरिकों को भी वापस सामान्य स्थिति में लौटने में और भी देरी होगी। समाज में ही रहने वाला एक प्राणी पत्रकार है और उस पत्रकार का पत्रकारिता व समाज के प्रति आज के विषम परिस्थितियों में एक बड़ा दायित्व भी है- देश को चैतन्य और आशाओं से भरे रखना। मीडिया के लोगों के साथ आम नागरिक से कहना चाहती हूं, कि पहले आप कोविड पेशेन्ट से मिलें, उनके बीच गए बिना, उनकी स्थिति से दो-चार हुए बिना आप कोई लेख या पोस्ट न लिखें।

हम दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। बेशक हमारे संसाधन हमारे पास कम है, पर हम हौसला तो रखे हम। हमने प्लेग, चेचक जैसी महामारियां तब झेली, जब देश के पास दो वक्त की रोटी नही थी। आप अखबार के संग्रहालय से उस दौर की रिपोर्टिंग निकलवा कर पढि़ए, कमाल की खबरे होती थी, कि आज इतने स्वस्थ हुए, आज इतने लोग बीमारी से बचे। देखिये थोड़े उदारमना बनिये, बनना भी चाहिए, क्योंकि ये देश हमारा है। सरकार भी हमारी है और सरकार में बैठे लोग भी हमारे ही है। हमारे पास बहुत वक्त है इनकी गलतियां बताने के लिए। इनसे हम बाद में समझ लेंगे। ये सब हमारे है हम इनका कान पकड़ के इनसे हिसाब ले लेंगे। पर आज समाज और सरकार दोनों को सहयोग करिये, क्योंकि ये आप के दायित्व में से एक है।

आप भी लोगो की उम्मीद जगाइए। छिंदवाड़ा बैतूल में कोविड के संक्रमण की चैन टूट गई है। लोगों को बताइए कि भोपाल में भी संक्रमण की दर घट रही है। आपको जानकर शायद आश्चर्य हो, कि पॉलीवाल हॉस्पिटल ने शुरू के जिन 400 रोगियों को घर में आइशोलेशन में रहने, नियमित दवा लेने व अन्य सावधानी बरतने को कहते हुए हॉस्पिटल में भर्ती न करके वापस उनके घर भेज दिया, उसमें से केवल दो मरीजों को ही बाद में हॉस्पिटलाइज्ड होना पड़ा। मतलब, 200 में केवल एक या आधा प्रतिशत। इसका मतलब दुर्भाग्य से कोई संक्रमण के चपेट में आ जाएं, तो हम स्वयं ठीक हो सकते हैं, अपने आत्मबल और समारात्मक विचारों एवं कुछ दवाईयों, नियम-संयम के साथ एकांत में रहते हुए।

आप भी लोगों के अंदर जीवन के प्रति प्रेम जगाइए। फिर आप भी समाज के लिए देवदूत जैसे बन जाएंगे। हम सब जानते हैं आज अव्यवस्था दिन कैसे रह पाएंगे। वापिस लौटेंगी रौनकें। फिर बहारे आएंगी। सबकुछ पहले जैसा होगा। मुझे विश्वास है इसलिए पॉजिटिव बनिये। लोगों तक पॉजिटिव सन्देश पहुंचाइये लोगों को पॉजिटिव रहने प्रेरित करिये। खबरों से आगे वो होता है जिसकी खबर नही बनती वही सार्थक है वही सकारात्मक है।  

एक बात आपसे साझा कर रही हूं, कि मैंने दोनों वैक्सीन लगवा चुकी हूं, उसके बावजूद मुझे कोरोना हुआ, लेकिन वैक्सीन की वजह से मुझे फेफड़ों में इंफेशक्शन नही हुआ और मेरी रिकवरी बहुत तेज हुई। जिस वार्ड में मैं थी, वहां तीन महिलाएं श्रीमती चन्ना 78 वर्षीय, दूसरी श्रीमती आर्य 72 वर्ष की थी। तीसरी महिला छिंदवाड़ा की थी, जो 68 उम्र की थी। मैं 58 की उम्र की। हम चारों की रिकवरी एडमिट होने के तीसरे दिन से होने लगी थी। हम चारों ने ही दोनों वैक्सीन लगाई हुई है। मैं हर नागरिक को से यह कहना चाहती हूं, कि वैक्सीन जरूर लगवाइए। इससे कोरोना से बचाव होता है और प्राण भी बचते है। हर व्यक्ति को कॅरोना की भयावह स्थिति से बचना है, तो वैक्सीन जरूर लगाना चाहिए। मास्क जरूर पहनिए और लोगों से दूरी बनाने हमेशा रहिए जब भी घर से बाहर निकलें। दो वैक्सीन जिन्दगी की जरूर लगवाइए खुद लगवाएं और दूसरों को प्रेरित करिये, क्योंकि केवल इससे ही बचाव होगा। इसी से आप सुरक्षित रहेंगे।