ट्रैक्टर: इतिहास, वर्तमान और भविष्य

ट्रैक्टर शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है खींचना, हल को या किसी सामान ढोने वाली गाड़ी को, आजकल लोकतंत्र की गाड़ी को खींच रहा है

Updated: Jan 25, 2021, 01:43 AM IST

Photo Courtesy: Frontline
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ट्रैक्टर शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है खींचना, हल को या किसी सामान ढोने वाली गाड़ी को (आजकल लोकतंत्र की गाड़ी को खींच रहा है)। ट्रैक्टर के आने से पहले खेतों में जानवरों का ही इस्तेमाल होता था, भारत में बैल, ऊंट या भैंसे का तो अमेरिका में घोड़े - खच्चर का। पहाड़ों में हम भैंसे का इस्तेमाल नहीं कर पाये इसलिए उसे बलि के नाम पर मार दिया गया।

जो लोग तकनीक के इतिहास को जानने- समझने का प्रयास करते हैं वे जानते हैं कि तकनीक का विकास अचानक नहीं होता है बल्कि एक स्टेज से दूसरी स्टेज की तरफ विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। यही स्थिति ट्रैक्टर की भी है। अमेरिका में पहली बार ट्रैक्टर शब्द का इस्तेमाल 1812 में हुआ और एक बेहतरीन मशीन बनने में इसे लगभग 80 साल लग गए। 1893 के आसपास भाप की शक्ति से चलने वाली मशीन बनी।

जैसा कि अधिकतर इनोवेशन (नवाचार) के साथ होता है, लोगों ने इस मशीन के प्रति भी कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई। वर्ष 1920 के आसपास अमेरिका में 2 करोड़ 60 लाख घोड़े और खच्चर खेती के काम में लगे हुए थे। ट्रैक्टर के आने से इनकी संख्या कम होकर 1960 में लगभग 30 लाख हो गई। 1903 -04 के आसपास एक अमेरिकी कम्पनी ने 500 ट्रैक्टर बनाए तो 1908 में इंग्लैंड ने पहला ट्रैक्टर बनाया। भारत तो गुलाम देश था, तो उसने ट्रैक्टर बनाने के बारे में सोचा ही नहीं। लेकिन देश में पहला ट्रैक्टर दूसरे विश्व युद्ध के आसपास आ गया था।

देश की आजादी के बाद, भारत की कृषि प्राथमिकताओं के मद्देनजर अनेक विदेशी कम्पनियाँ अपने ट्रैक्टर बेचने भारत आईं। नेहरू जी मशीन लेने के साथ-साथ उसकी तकनीक का सौदा यानी ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी भी करते थे। और यही कारण है कि भारत में 1960 में पहला ट्रेक्टर आयशर कम्पनी की फरीदाबाद इकाई में बना। (राफेल डील में भी ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी बहुत बड़ा विषय था, जिस पर पिछली सरकार अड़ गई थी, लेकिन मोदी सरकार ने इस मुद्दे को हवा में उड़ा दिया)

1949 में आयशर कम्पनी (Eicher GoodEarth) ने भारत में अपना उत्पादन शुरू किया, 1959 में महिंद्रा ने गुजरात ट्रैक्टर कम्पनी की स्थापना की। देश की पहली गणतंत्र दिवस परेड में, ट्रैक्टरों का प्रदर्शन किया गया। फैसला लेने वालों में मैं तो था नहीं, लेकिन जितना नेहरू जी को पढ़ा और समझा है उसके आधार पर कह सकता हूँ कि खेती के उन्नत औजार अर्थात ट्रैक्टर को गणतंत्र परेड में शामिल करके नेहरू जी ने दो काम किये। पहला, किसानों को आधुनिक खेती के औजारों का महत्व बताया और दूसरे, दुनिया को बताया कि तुम भले ही खच्चर और घोड़े पर अटके रहो, लेकिन भूखे, कमजोर और साँप-सपेरों का ये देश, अब आधुनिक कृषि के माध्यम से दुनिया की आँख में आँख डालकर बात करेगा। और ये सच भी हुआ। ट्रैक्टर, आधुनिक खेती, किसान की मेहनत, वैज्ञानिकों का काम, सब मिलकर देश को इस स्थिति में ले आये कि 1947 का भूखा देश 1980 में खाद्य निर्यातक बन गया।

आज चंद पूँजीपति किसानों की मेहनत पर गिद्ध दृष्टि डाले हुए हैं, इसलिए किसान के ट्रैक्टर ने ऐसे गिद्धों को कुचलने और लोकतंत्र की रक्षा के लिए गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेने का फैसला किया है। मेरे पास ट्रैक्टर नहीं है, पर मेरे बहुत से मित्र किसान हैं। इसलिए 26 जनवरी को मैं भी किसी मित्र के ट्रैक्टर पर बैठकर, गणतंत्र की रक्षा की इस ऐतिहासिक परेड का हिस्सा बनूँगा।

ट्रैक्टर ने पिछली बार 1952 में परेड में शामिल होकर देश के आधुनिक होने की घोषणा की थी। इस बार ट्रैक्टर देश में स्वतंत्रता और लोकतंत्र के मजबूत होने और उसकी रक्षा की घोषणा करेंगे। जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय लोकतंत्र!

(प्रेम बहुखंडी की फेसबुक पोस्ट से साभार)