जी भाईसाहब जी: पत्थर फेंकने से लेकर पदयात्रा तक, क्या उमा भारती ने खो दी शक्ति
शराबबंदी की मांग की आक्रामकता से नशा मुक्ति के अभियान पर आ जाने से महसूस किया जा रहा है कि उमा भारती में अब पहले जैसा राजनीतिक तेज बचा नहीं है। दूसरी तरफ, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की राह में कांटें बिछाने का काम जारी है। कथित शिकायत के बाद अब जातीय एजेंडा बना बाधा।

बीजेपी से अलग हो कर भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाने वाली तेज तर्रार नेता उमा भारती ने क्या अपनी राजनीतिक शक्ति और जमीन खो दी है? पिछले दिनों शराबबंदी की मांग को लेकर जिस तरह से वे सक्रिय हुई थीं और अब शराबबंदी की मांग नशा मुक्ति के अभियान पर आ कर खत्म हो गई है, उसे देख कर तो यही लगता है। महसूस किया जा रहा है कि उमा भारती में अब पहले जैसा राजनीतिक तेज बचा नहीं है।
उमा भारती ने अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन 2003 में किया था। उनके मैदान में उतरने के बाद बीजेपी मध्य प्रदेश की सत्ता में आई थीं और तब से लेकर अब तक कुछ माह को छोड़ कर सत्ता में बनी हुई है। पार्टी तो सत्ता में रही लेकिन उमा भारती का जलवा वैसा नहीं रह पाया। उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। पार्टी से उपेक्षा पर नया बदल बना कर मैदान में आईं भी। फिर बीजेपी में शामिल हो गईं तथा केंद्रीय मंत्री बनाई गईं। मगर उनकी मध्य प्रदेश में दमदार वापसी नहीं हो सकी है।
उमा भारती के मध्य प्रदेश से जाने के बाद उनके समर्थक भी कमजोर पड़ने लगे। अपनी खोई ताकत को पुन: पाने के लिए नई राजनीतिक जमीन तैयार करने की जरूरत थी और इसके लिए उमा भारती पिछले कुछ माह से बुंदलेखंड में सक्रिय हुईं। उन्होंने शराबबंदी को लेकर शिवराज सिंह चौहान सरकार को घेरा। आक्रामक अंदाज में शराब दुकानों पर जा कर प्रतीक रूप में पत्थर भी फेंके। सरकार की आबकारी नीति के खिलाफ सड़क पर उतरने की घोषणा भी की।
सरकार के लिए शराब विक्रय आय का श्योर फार्मूला है। इससे होने वाली आय बढ़ाने के लिए नई आबकारी नीति में देशी व विदेश शराब एक ही दुकान से देने, एयर पोर्ट पर अन्य स्थानों पर शराब की दुकान खोलने तथा शराब की होम डिलेवरी जैसे प्रावधान की राह खोल दी गई। उमा भारती ने बार-बार घोषणाएं की कि सरकार ने शराब बंदी नहीं की तो वे सड़क पर उतरेंगी।
उमा भारती व उनकी चेतावनियों को प्रदेश और केंद्रीय संगठन ने तवज्जो नहीं दी। अलबत्ता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मुलाकात जरूर की। उमा भारती शराबबंदी की मांग पर अड़ी थी तो सरकार नशा मुक्ति की ढपली बजाती रही। अब उमा भारती सरकार के सुर में सुर मिला कर नशा मुक्ति की बात कर रही है।
गांधी जयंती पर भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में उमा भारती ने पदयात्रा की और अपने संबोधन में युवतियों से अपील करते हुए कहा कि जो शराब पीए, नशा करें उससे शादी मत करना। भलें ही कुंवारी रह जाना। लोगों से भी शराबियों को सबक सीखाने को कहा। उन्होंने सरकार से नियंत्रित शराब वितरण प्रणाली लागू करने तथा शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले लोगों पर सख्त कार्रवाई करने की मांग की।
सीएम शिवराज सिंह चौाहन ने कहा कि आबकारी नीति ऐसी बनाएंगे कि नशे को बढ़ावा ना मिले। उन्होंने हुक्का लाउंज पर बुल्डोजर चलाने तक की बात कही आबकारी नीति के उन प्रावधानों पर बात नहीं की जिससे शराब का विक्रय बढ़ा है। यानी, शराबबंदी से बात नशा मुक्ति के लिए जागरूकता तक आ गई है। सरकार शराब विक्रय सीमित नहीं करेगी, जनता खुद नशे से दूर हो।
इस तरह, शराबबंदी के बहाने राजनीति में सक्रिय होने के उमा भारती समर्थकों के मंसूबे विफल हुए हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होना है तो उमा भारती को नए मुद्दे खोजने पड़ेंगे अन्यथा तो उनके लिए गुंजाइश न्यून हो चुकी है।
वीडी शर्मा की कुर्सी रहेगी या सोलंकी आएंगे
संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर के लिए यह संयोग है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जबलपुर के दामाद हैं और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी। एक दामाद को तो अध्यक्ष पद पर एक्सटेंशन मिल गया है लेकिन क्या दूसरे दामाद को कार्यकाल में वृद्धि मिलेगा?
लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने वर्तमान अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल तक बढ़ा दिया है। जेपी नड्डा का तीन साल का कार्यकाल 20 जनवरी 2023 को पूरा होने वाला था पर अब वह 2024 तक अध्यक्ष पद पर बने रहेंगे. एमपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल फरवरी 2023 में पूरा हो रहा है, सवाल है कि क्या उन्हें दोबारा मौका मिलेगा या उनकी जगह कोई नया चेहरा आसीन होगा
अब तक तो माना जा रहा था कि चुनाव को देखते हुए फिलहाल वीडी शर्मा बीजेपी के अध्यक्ष बने रहेंगे। मगर रातपानी में हुई बीजेपी की बैठक और पिछले दिनों वायरल हुए एक पत्र ने समीकरण बदलने का संकेत दिया है। एक आवासीय सोसायटी के निवासियों की ओर से जारी कर बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा पर निशाना साधा गया है। ऐसे पत्र जारी कर वीडी शर्मा की राह में कांटें बिछाने कर कोशिश की गई है।
इस कोशिश से अलग जिस मुद्दे ने वीडी शर्मा के पद पर खतरे के संकेत दिए हैं वह रातपानी की बैठक में चर्चा का केंद्र रहा है। राष्ट्रीय और प्रदेश के प्रमुख नेताओं की इस बैठक में मिशन 2023 पर चर्चा हुई। यहां आदिवासी समुदाय में पैठ बनाने की कोशिशों पर भी बात हुई। कयास लगाए जा रहे हैं कि आदिवासी समाज को आकर्षित करने के लिए बीजेपी अपना नया अध्यक्ष इसी समुदाय से बना सकती है।
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इस कयास के बाद जब पार्टी के आदिवासी चेहरों पर नजर दौड़ाई गई तो सांसद सुमेर सिंह सोलंकी का चेहरा प्रमुख रूप से उभरा है। सुमेर सिंह सोलंकी को पार्टी ने राज्यसभा में भेजा है। सोलंकी निमाड़ के बारेला आदिवासी जनजाति के प्रतिनिधि हैं। उनके जरिए बड़े आदिवासी समुदाय को साधा जा सकता है। सुमेर सिंह सोलंकी के पिछले दिनों सपरिवार पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद इन कयासों ने जोर पकड़ा है। करीब 80 विधानसभा सीटों पर प्रभाव बढ़ाने के लिए पार्टी आदिवासी चेहरे पर दांव लगाएगी तो वीडी शर्मा का पद पर बने रहना मुश्किल हो सकता है।
चर्चा में बीजेपी नेताओं की लीला
मध्य प्रदेश के बीजेपी नेता अपने प्रयोगात्मक कामों के कारण हमेशा चर्चा में रहते हैं। कभी ये नेता शौचालय साफ कर सुर्खियां बटौरते हैं तो कभी दलितों को खाना परोस कर चर्चा में आते हैं। इनदिनों दो नेताओं की लीलाओं की चर्चा है।
केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री केंद्रीय मंत्री फगन सिंह कुलस्ते ने दिल्ली के रामलीला मैदान पर आयोजित रामलीला में निषाद राज की भूमिका निभाई है। बीते दिनों मीडिया से चर्चा में कुलस्ते ने कहा था कि रामलीला में निषाद राज का किरदार निभाना उनके लिए गर्व का विषय है. वे रामलीला देखने तो कई बार गए हैं लेकिन जस आयोजन कमेटी ने निषाद राज का किरदार निभाने का न्योता दिया तो मंत्री कुलस्ते ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
मंत्री कुलस्ते ने इस किरदार को निभा कर आदिवासी समाज में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की है। सातवीं बार सांसद बने कुलस्ते प्रदेश अध्यक्ष बनने की दौड़ भी रहे हैं। उनकी यह रामलीला राजनीति में किस किरदार का पर्दा उठाएगी देखना होगा।
ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह बीजेपी के ऐसे नेता जिनकी लीला हमेशा चर्चा में रहती है। कभी वे सफाई के लिए नाली में उतर जाते हैं तो कभी पकोड़े तलने लग जाते हैं। बीते दिनों वे मंच पर दंडवत हो केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का आभार जताते नजर आए थे।
इस बार जब ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह अपने क्षेत्र में दौरे पर पहुंचे तो कुछ ऐसा कर बैठे कि खबर बन गए। अपनी ही विधानसभा के दौरे पर उन्होंने लोगों की परेशानियां सुनी। सड़कों पर गड्ढों की भरमार व नालियां बंद देख उन्होंने अधिकारियों को मौके पर बुलवा लिया। ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह एक अधिकारी को पानी से भरे गड्ढे में उतार दिया और कहा कि जनता इन सड़कों से निकलती है तो क्या परेशानी आती होगी गड्ढे में खड़े हो कर महसूस कीजिए।
गड्ढें भरेंगे या नहीं, जनता की समस्या का अंत कब होगा यह तो बताया नहीं जा सकता है मगर मंत्री की लीला ने कुछ देर के लिए तालियां बटौरी।
छिंदवाड़ा में बीजेपी की जीत के मायने
मध्य प्रदेश के 46 निकाय चुनाव में कई जगह से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। सिंगरौली जिले में सात नगर पार्षद पद पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी जीते हैं तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने छह सीटें जीतीं हैं। बहुजन समाज पार्टी ने भी तीन सीटें जीती हैं। सबसे ज्यादा चौंकाने वाला परिणाम मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा से आया। यहां बीजेपी ने सेंधमारी कर दी। जिले में बीजेपी पार्षदों ने छह में से चार सीटें अपने नाम करने में सफल रहे। बीजेपी ने छिंदवाड़ा में पूरी ताकत लगा दी थी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक सीट ही जीता देने की अपील की थी। इस जीत को बड़ा मानते हुए बीजेपी खेमे में उल्लास है।
आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि 46 नगरीय निकायों में पार्षदों के कुल 814 पदों में से राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी ने 417 सीटें जीती हैं। कांग्रेस के खाते में 250 और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 131 सीटें जीती की हैं। कई जगह से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। आम आदमी पार्टी सिंगरौली जिले में सात नगर पार्षदों का पद हासिल किया है। इसके नतीजे शुक्रवार को घोषित किए गए है। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने छह सीटें जीतीं हैं। बहुजन समाज पार्टी ने तीन सीटें जीती हैं।
इन 46 निकायों में हुए पिछले चुनावों से तुलना करें तो पाएंगे कि बीजेपी के पास पहले भी 11 नगर पालिका थीं, इस बार भी 11 पर बहुमत में है। नगर परिषद में जरूर 3 अधिक स्थानों पर बीजेपी जीती है। कांग्रेस को नगर पालिका और नगर परिषद दोनों में नुकसान हुआ है। हालांकि कुल 10 ऐसी नगर पालिका व नगर परिषद हैं, जो पिछली बार कांग्रेस के कब्जे में थीं, इस बार इन पर बीजेपी ने जीत दर्ज की। कांग्रेस ने 4 नगर पालिका बीजेपी से छीनी हैं। कांग्रेस ने 5 नगर परिषद ऐसी जीती हैं जहां पिछली बार बीजेपी जीती थी।
आंकड़ों के लिहाज से बाजी 19-20 की है मगर दो, तीन बातें कांग्रेस की परेशानी बढ़ाने वाली है। छिंदवाड़ा जैसे गढ़ में बीजेपी का ताकतवर होना मायने रखता है। छिंदवाड़ा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का अभेद्य गढ़ रहा है मगर इस बार बीजेपी प्रत्याशी छह में से चार सीटों पर जीत गए। छिंदवाड़ा के सौसर में कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल सकी। आप, गोंगपा, निर्दलीय ने भी प्रदेश में अपनी ताकत दिखलाई है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने प्रतिक्रिया में कहा कि सरकार ने धन बल और प्रशासनिक तंत्र का उपयोग किया है। बीते दिनों कांग्रेस के नगरीय निकाय प्रत्याशियों की बैठक मे भी यह मुद्दा उठा था। कांग्रेस के हारे हुए उम्मीदवारों ने सवाल उठाया था कि पार्टी बीजेपी के धनबल और सत्ता बल से कैसे निपटेगी? कांग्रेस प्रत्याशियों को दिए जाने वाले लालच, लाभ के वादे और प्रशासनिक कार्रवाइयों के दबाव से मुक्ति कैसे दिलाई जाएगी? मिशन 2023 की तैयारियों में यह सवाल बेहद महत्व रखते हैं।