जी भाई साहब जी: जेपी नड्डा के साले ने कही तीखी बात, कितने भाई साहब बदलेंगे 

जबलपुर में हार के बाद बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा के साले ने सोशल मीडिया पोस्‍ट के जरिए प्रदेश संगठन के फैसले पर ही सवाल नहीं खड़े किए हैं बल्कि खरी खरी सुनाई भी है। दूसरी तरफ, संगठन में कई भाई साहब की विदाई या उनपर नकेल के संकेत हैं। अपनी पार्टी में उपेक्षा का दंश झेल रही उमा भारती पर विपक्ष भी हमलावर है।

Updated: Jul 26, 2022, 05:51 AM IST

बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा और सीएम शिवराज सिंह चौहान
बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा और सीएम शिवराज सिंह चौहान

2023 विधानसभा चुनाव में बहुमत पाने की तैयारी कर रही बीजेपी को नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों ने झटका दिया है। पहले उसके समर्पित कार्यकर्ता नजरअंदाज कर दिए जाने से खफा हो कर बागी हो गए। उन्‍हें चुनाव मैदान से हटाने में पार्टी को पसीना आ गया। जो नहीं हटे उन्‍हें पार्टी से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया। पार्टी ने पिछले वर्षों की तुलना में सबसे ज्‍यादा कार्यकर्ताओं के विरूद्ध कार्रवाई की है। अब, पार्टी की हार के कारणों को बताते हुए बयानों का युद्ध जारी है। सोशल मीडिया पर एक के बाद एक नेता बयान दे कर पार्टी को संकट में डाल रहे हैं। 

इधर, बीजेपी संगठन हार-जीत के कारणों की समीक्षा कर रहा है उधर विंध्‍य, महाकौशल, ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र में हार पर बीजेपी के नेताओं में तनातनी जारी है। ताजा नाम राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा के साले का है, जिन्‍होंने सोशल मीडिया पोस्‍ट के जरिए प्रदेश संगठन के फैसले पर ही सवाल नहीं खड़े किए हैं बल्कि खरी खरी सुनाई भी है। 

नगरीय निकाय चुनाव में 9 नगर-निगमों में महापौर और वार्ड पार्षदों की जीत से बीजेपी में खुशी है लेकिन भीतर ही भीतर सवाल उठ रहे हैं कि जबलपुर का महापौर पद कैसे खो दिया। जबलपुर के महापौर उम्मीदवार डॉ. जितेन्द्र जामदार की हार गले नहीं उतर रही है। पूर्व महापौर प्रभात साहू ने पोस्ट किया कि 'वाह रे मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू...डॉक्टर जामदार जी कैसे हार गए कौन जिम्मेदारी लेगा'?  जिम्‍मेदारी के सवाल पर सभी मौन हैं। बीजेपी नगर अध्यक्ष जीएस ठाकुर ने भी कमेंट लिखा कि कई बड़े पदों पर रहने के बाद आपकी खीज किससे है? सोशल मीडिया पर इस आचरण को नगर अध्‍यक्ष ने अमर्यादित भी बताया।

दोनों नेताओं के झगड़े के बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साले चर्चा में आ गए। नड्डा के साले व स्‍थानीय बीजेपी नेता डॉ. दीपांकर बनर्जी ने अपनी पोस्‍ट में लिखा कि 'डॉ जितेंद्र जामदार जी का व्यक्तित्व विशिष्ट है, वह महापौर का चुनाव लड़ने लायक थे ही नहीं। अतः किन परिस्थितियों में कैसे उन्हें चुनाव लड़वाया गया, यह अंदरूनी व्यवस्थाएं हो सकती है, वजह जो भी हो, किंतु डॉ जितेंद्र जामदार जी का चुनाव में नकारात्मक परिणाम आना बहुत बड़े चिंतन का विषय है। विशेषकर भारतीय जनता पार्टी और अन्य सभी श्रेष्ठ संपर्कित संगठनों के लिए। राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से सड़ गल गई है, पूरी तरह से बैकफुट पर आ गई है, अतः समय रहते ठोस कार्य प्रणाली अगर नहीं अपनाई जाती है, तो वह दिन तो वह दिन दूर नहीं जब और भी विषमताएं संगठनात्मक दृष्टि से सामने आ सकती हैं। जिम्मेदार सोचे, विचार करें और समसामयिक परिणाम निकालें'।

डॉ. जामदार के लिए प्रचार में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कोशिशों को सभी ने देखा है। उसके बाद स्‍थानीय स्‍तर पर जारी इन आरोप-प्रत्‍यारोपों से साफ हो गया कि स्‍थानीय संगठन ने मन लगा कर काम नहीं किया है। अपेक्षा और प्रत्‍याशी थोप दिए जाने का विरोध करते हुए कई नेता समूचे महाकौशल, विंध्‍य, ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र में सक्रिय नहीं हुए। जिसके परिणामस्‍वरूप पार्टी ने अपनी परंपरागत सीट भी खो दी। अब पार्टी का ध्‍यान मैदान से आ रही कलह की खबरों पर है।

कितने भाई साहब जाएंगे ... कितने आएंगे... 

नगरीय निकाय और त्रिस्‍तरीय पंचायतों चुनाव में हार को भाजपा संगठन ने गंभीरता से लिया है। मैदान में निष्क्रिय हुए नेताओं से जवाब तलब तो होंगे मगर शीर्ष नेतृत्‍व ने बदलाव का दौर शुरू कर दिया है। बीजेपी ने पहली बार मध्‍य प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ के लिए क्षेत्रीय संगठन मंत्री की नियुक्ति की गई है। अब गिना जा रहा है कि किस भाई साहब को कब बदला जाएगा। 

निकाय चुनावों के नतीजों के तुरंत बाद बीजेपी ने क्षेत्रीय संगठन महामंत्री के पद पर अजय जामवाल की नियुक्ति कर दी। इसे मिशन 2023 के लिए संगठन सुधारने की पहली कोशिश माना जा रहा है। माना जा रहा है कि अब जल्द ही मध्यप्रदेश में संघ के तीन प्रांतों के संगठन ढांचे के अनुसार प्रांतीय संगठन मंत्री बनाए जा सकते हैं। हालांकि, कुछ माह पहले ही बीजेपी ने संभागीय संगठन मंत्री का पद खत्‍म किया है। नगरीय निकाय चुनाव में बगावत रोकने में इन हटाए गए संभागीय संगठन मंत्रियों का सहयोग लेना पड़ा था। 

संगठन में फैली नाराजगी, असंतोष, विद्रोह, निष्क्रियता को देखते हुए बीजेपी ने मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में सुधार की जिम्मेदारी अजय जामवाल को दी है। जामवाल के साथ देश में पहली बार चार क्षेत्रीय संगठन महामंत्री बनाए गए हैं। उनका फोकस महाकौशल और ग्वालियर चंबल क्षेत्र होगा जहां कांग्रेस ने प्रभावी प्रदर्शन किया है। ग्वालियर चंबल क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से बीजेपी नंबर गेम में मजबूत हुई है, लेकिन नेताओं की आपसी खटास बढ़ गई है। जामवाल का काम होगा कि वह बिखरे संगठन को फिर खड़ा करें। 

इस लिहाज से आकलन किया जा रहा है कि अब प्रदेश संगठन में विभिन्‍न दायित्‍व निभा रहे नेताओं की या तो छुट्टी होगी या उसके ऊपर किसी नेता को प्रभारी बना कर बैठा दिया जाएगा। 

अपनों की मारी उमा भारती पर विपक्ष भी हमलावर 

प्रदेश में नई शराब नीति का विरोध कर दोबारा सक्रिय होने के लिए अपनी राजनीतिक जमीन तलाश कर रही पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती को बीजेपी ने सिरे से नजरअंदाज कर दिया है। वे बार बार अपनी तल्‍खी जाहिर करती है, कहती हैं कि अब वह घुटन महसूस कर रही हैं लेकिन पार्टी नेतृत्‍व उन पर ध्‍यान ही नहीं दे रहा है। अब विपक्ष भी उमा भारती को लेकर हमलावर है। 

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने टीकमगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को आपराधिक प्रवृत्ति और आतंकवादियों को सहयोग देने वाली बता दिया। उन्होंने कहा कि जब मैं दूसरी बार विधायक बना था तो उनका भाई डकैती का मुल्जिम था, फरार था। 

गोविंद सिेह ने यह बात स्‍थानीय नेता यादवेंद्र सिंह बुंदेला और राकेश गिरी गोस्वामी के बीच विवाद पर कही लेकिन उमा भारती का संकट यह है कि आबकारी नीति को लेकर उनकी सक्रियता पर विपक्ष तो मजे ले रहा है मगर अपनी ही पार्टी के नेता कुछ नहीं कह रहे हें। प्रदेश संगठन उन्‍हें राष्‍ट्रीय नेता बता कर गेंद राष्‍ट्रीय नेतृत्‍व के पाले में डाल देता है तो राष्‍ट्रीय संगठन उनके विरोध को प्रदेश का मामला मानता है। 

चुनाव करीब है और उमा भारती अधर में। वे 2 अक्‍टूबर से शराब बंदी को लेकर आंदोलन की घोषणा कर चुकी है। पार्टी ने इस पर ध्‍यान नहीं दिया है। अब समर्थक प्रार्थना कर रहे हैं उमा भारती को पार्टी सीरियस ले ले नहीं तो उमा का तो जो होगा सो होगा उनके समर्थकों के राजनीतिक कॅरियर का अंत हो जाएगा। 

कांग्रेस में कमजोर कड़ियों की खोज 

निकाय चुनाव में आशातीत सफलता से कांग्रेस में खुशी का माहौल जरूर है मगर पार्टी ने उन कमजोर कड़ियों को भी तलाशना शुरू कर दिया है जिनकी वजह से वह जीत सकने वाली सीटों पर भी हार गई। जिला संगठनों से ऐसे लोगों के नाम मांगे गए हैं जो चुनाव में सक्रिय नहीं थे और उन्हें नोटिस भेजने का सिलसिला शुरू हो गया है। जल्द ही कांग्रेस में भी बड़े पैमाने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।

प्रदेश कांग्रेस ने नगरीय निकाय चुनाव में अपनी पार्टी के नेताओं के खिलाफ काम करने वाले नेताओं की की जिला संगठन से रिपोर्ट मांगी है। इसके आधार पर ही उपाध्यक्ष संगठन प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर ने कुछ नेताओं को नोटिस जारी किए है। ऐसे नेताओं से 7 दिनों के के जवाब भेजने को कहा है। नोटिस में साफ लिखा है कि आपका जवाब संतोषजनक नहीं होने पर आपके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

कांग्रेस संगठन को उज्जैन, रतलाम, इंदौर सहित कई जिलों से शिकायत मिली है कि स्‍थानीय नेताओं ने अधिकृत प्रत्याशी के पक्ष में काम नहीं किया है। मिशन 2023 के पहले इस स्थिति को नहीं सुधारा गया तो सत्‍ता में लौटने की राह मुश्किल हो जाएगी।