जी भाईसाहब जी: जाने लीडर घोड़े पे क्यों सवार हैं
MP BJP Vikas Yatra: मध्य प्रदेश में नेताजी घोड़े पर सवार हुए हैं। कोई विकास दिखाने के लिए घोड़े और बग्गी पर सवार हुआ है तो किसी ने विकास की पोल घोलने के लिए ‘योद्धा’ की तरह घोड़े की लगाम थामी है। एक सज्जन तो गधे पर सवार हो कर विकास यात्रा में पहुंच गए। दूसरी तरफ, भीम आर्मी के प्रदर्शन और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के बागेश्वर धाम पहुंचने के राजनीतिक समीकरणों के नफा नुकसान को जांचा जा रहा है।

हाल ही में आई फिल्म ‘कला’ का एक गाना बहुत चर्चित हुआ है, ‘कोई कैसे उन्हें ये समझाए/ सजनिया के मन में अभी इंकार है... जाने बलमा घोडे पे क्यों सवार है?’ गाना तो ठीक है मगर मध्य प्रदेश की राजनीति में नेताजी घोड़े पर सवार हुए हैं। कोई विकास दिखाने के लिए घोड़े और बग्गी पर सवार हुआ है तो किसी ने विकास की पोल घोलने के लिए ‘योद्धा’ की तरह घोड़े की लगाम थामी है। इतना नहीं, विकास नेताओं और अफसरों का हुआ है, यह कहते हुए एक सज्जन तो गधे पर सवार हो कर विकास यात्रा में पहुंच गए।
मध्यप्रदेश में बीजेपी सरकार विकास दिखाना चाहती है और जनता को विकास का नजारा दिखाने के लिए मंत्रियों, विधायकों व अन्य नेताओं को मैदान में उतार दिया है। विकास दिखाने के लिए नेताजी तरह-तरह के साधन अपना रहे हैं ताकि दूसरों से अलग दिखाई दे। इस क्रम में बीजेपी सरकार के वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव बग्गी पर सवार हुआ। मौका रहली विधानसभा क्षेत्र के शाहपुर में विकास यात्रा का था। मंत्री गोपाल भार्गव घोड़ा गाड़ी में सवार हो कर बाजे गाजे के साथ विकास दिखाने के लिए निकले। हालांकि, उन्होंने कहा कि वे लोगों की जिद के कारण बग्गी में बैठे थे।
बुंदेलखंड में पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव बग्गी पर सवार हुए तो ग्वालियर चंबल क्षेत्र में सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया घोड़े पर सवार होकर विकास यात्रा का झंडा थामे हुए दिखाई दिए। मंत्री भदौरिया विकासखंड अटेर के ग्राम पवई में विकास यात्रा में पहुंचे थे। मंत्रियों की देखा देखी रायसेन जिले में पूर्व विधायक राम किशन पटेल भी घोड़े पर बैठ कर विकास यात्रा में शामिल हुए।
जब सत्ताधारी दल के नेताजी विकास दिखाने के लिए घोड़े की सवारी कर रहे तब ही विकास की पोल खोलने के लिए भी नेताजी घोड़े पर सवार हुए। खंडवा नगर निगम की बैठक में कांग्रेसी पार्षद और नगर निगम के नेता प्रतिपक्ष दीपक राठौर उर्फ मुल्लू राठौर घोड़े पर बैठकर पहुंचे। उन्होंने कई पोस्टर पहन रखे थे। जब घोड़े पर बैठ कर आने का कारण पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि जिस तरह युद्ध के मैदान में योद्धा घोड़े पर बैठकर जंग के लिए जाते थे वैसे ही आज वह भी नगर निगम में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए घोड़े पर सवार होकर पहुंचे हैं।
यह भ्रष्टाचार के खिलाफ खंडवा में युद्ध का ऐलान था तो छतरपुर में विकास यात्रा के दौरान मंजू अग्रवाल नामक एक व्यक्ति गधे पर सवार होकर पहुंच गए। उन्हें देख कर बीजेपी के नेता चौंक गए। मंजू अग्रवाल जिस गधे पर बैठे थे, उस गधे के गले में सैकड़ों फूल मालाएं थी और पीछे से लोग नारे लगा रहे थे। मंजू अग्रवाल ने गधे पर बैठ कर आने का कारण बताया कि क्षेत्र का विकास नहीं हुआ है बल्कि नेताओं और अधिकारियों का विकास हुआ है। नेता और अफसर जनता को गधा समझ रहे है इसलिए वे गधे पर बैठ कर विरोध जताने आए हैं।
इरादे अलग-अलग हैं मगर साधन एक है क्योंकि नेताजी जानते हैं: ‘धीरे धीरे जतन करने से खुलते सत्ता के द्वार हैं।’
प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के खिलाफ ‘बीजेपी’ का मोर्चा
युवाओं के बीच में अच्छी संगठन क्षमता का प्रदर्शन करने वाले वीडी शर्मा बड़ी उम्मीद के साथ 15 फरवरी 2020 को बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे। उनका कार्यकाल 15 फरवरी 2023 को खत्म हो रहा है। अब उनके समर्थक उम्मीद कर रहे हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की ही तरह प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल में भी वृद्धि की जाएगी। वे आस लगाए बैठे हैं कि किसी भी क्षण कार्यकाल वृद्धि का पत्र जारी हो जाएगा। मगर, उनके मन में एक डर भी है।
यह डर प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के खिलाफ बीजेपी में खुला मोर्चा है। कई नेता वीडी शर्मा की कार्यप्रणाली से खुश नहीं हैं। वे दिल्ली से लेकर भोपाल तक उनके खिलाफ मोर्चाबंदी कर चुके हैं। इतना ही नहीं, सांसद वीडी शर्मा के क्षेत्र खजुराहो में बीजेपी संगठन की स्थिति को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। जमीनी नेता आक्रोश के साथ कह रहे हैं कि छतरपुर, पन्ना, कटनी जिलों में बीजेपी संगठन बिखर रहा है।
चंदला से बीजेपी विधायक राजेश प्रजापति के साथ टीआई द्वारा की गई अभ्रदता इसका उदाहरण है। विधायक राजेश प्रजापति देर रात तक पुलिस थाने में धरने पर बैठे रहे। इसके पहले अपनी सरकार में बीजेपी विधायक राजेश प्रजापति को तत्कालीन कलेक्टर के बंगले पर धरना देना पड़ा था क्योंकि कलेक्टर बीजेपी विधायक को मिलने का समय नहीं दे रहे थे। छतरपुर जिले से बीजेपी के एकमात्र विधायक होने के बाद भी राजेश प्रजापति की बात को प्रशासन सुनता नहीं है। विधायक राजेश प्रजापित के पिता पूर्व बीजेपी विधायक आरडी प्रजापति ने दु:खी हो कर पार्टी छोड़ने की धमकी तक दे डाली। इस मामले में टीआई को लाइन अटैच जरूरी किया गया मगर वीडी शर्मा पर आरडी प्रजापति द्वारा उठाए गए सवाल तो अब भी बकाया हैं।
वीडी शर्मा तब भी स्थानीय बीजेपी नेताओं की नाराजगी का शिकार हुए थे जब कटनी में महापौर प्रीति सूरी को उन्होंने बीजेपी में शामिल करवाया था। प्रीति सूरी ने बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ा था। पार्टी ने उन्हें छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था मगर छह माह में ही उन्हें माफ कर पार्टी में ले लिया गया। पन्ना में भी वीडी शर्मा के संरक्षण पाए नेताओं पर सवाल उठते रहे हैं।
अब देखना होगा कि समर्थक नेताओं के डर सच साबित होगा या पार्टी तमाम समीकरणों को देखते हुए वीडी शर्मा के कार्यकाल में वृद्धि करेगी।
चंद्रशेखर आजाद की रैली में किसका गुणा और किसका भाग
करणी सेना के प्रदर्शन के लगभग एक माह बाद भोपाल में हुए भीम आर्मी के शक्ति प्रदर्शन ने राजनीतिक समीकरणों को गड़बड़ा दिया है। भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने इस प्रदर्शन में कहा 9 माह के संघर्ष के लिए तैयार हो जाइए। 9 माह बाद प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनेगा। इस घोषणा के बाद आदिवासी मुख्यमंत्री के मुद्दे से बड़ा सवाल दलित और आदिवासी वोट के गुणा भाग का है। यह धु्व्रीकरण किस को वोट में बढ़ोतरी करेगा और किसके वोट विभाजित करेगा इस नफा-नुकसान का आकलन किया जा रहा है।
इसकी वजह यह है कि सत्ता की राह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर जीत से हो कर ही गुजरती है। इन दोनों वर्गों के लिए प्रदेश की 36 फीसदी यानी 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। यही कारण है कि बीजेपी और कांग्रेस का पूरा ध्यान आदिवासी और दलित वोटों की तरफ है। इन्हीं सीटों पर जीत के कारण कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि 2003 से 2013 तक हुए चुनावों में इन आरक्षित सीटों पर बीजेपी का वर्चस्व रहा है। इस वर्ग में दोबारा अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए बीजेपी हर तरह के प्रयास कर रही हैं।
अब आकलन यह है कि करणी सेना के आंदोलन के चलते बीजेपी को राजपूत वोट खोने का खतरा था तो भीम आर्मी, आजाद समाज पार्टी, जयस के आंदोलन एकजुट होने से दलित और आदिवासी वोट के कांग्रेस से दूर जाने की आंशका है। कांग्रेस की ताकत बांटने के लिए यह एक फार्मूला हो सकता है। इसकी सफलता राजनीतिक चालों पर निर्भर होगी।
हनुमान भक्त का बागेश्वर दर्शन और उसके निहितार्थ
बागेश्वर धाम के महंत धीरेंद्र शास्त्री पिछले कुछ दिनों से चर्चा में हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ जब धीरेंद्र शास्त्री से मिलने पहुंचे तो भी खबर बनी। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने स्वयं को हनुमान भक्त बताते हुए बागेश्वर धाम के दर्शन किए। यहां महंत धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से हुई मुलाकात के सियासी मतलब तो निकाले ही जा रहे हैं अब बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी धीरेंद्र शास्त्री से मुलाकात करने जा रहे हैं। वीडी शर्मा हनुमान कथा और कन्या विवाह में शामिल होंगे।
इन मुलाकातों से राजनीतिक गर्माती जा रही है तथा इनके निहितार्थों का तलाशा जा रहा है। माना गया कि धीरेंद्र शास्त्री जिस तरह से हिंदू राष्ट्र की बात कर रहे हैं यह राजनीतिक रूप से बीजेपी के लिए फायदेमंद है लेकिन जब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ बागेश्वर धाम पहुंचे तो सवाल और समर्थन में स्वर उठे। कुछ ने इसे साफ्ट हिंदुत्व की ओर एक कदम बताया तो कुछ नेताओं का मानना था कि मंदिर पहुंचना अलग बात है मगर धीरेंद्र शास्त्री से मुलाकात का कांग्रेस को कोई लाभ नहीं होगा।
हालांकि, धीरेंद्र शास्त्री से मुलाकात के बाद कमलनाथ से जब पत्रकारों ने हिंदू राष्ट्र के बारे में सवाल किया तो उन्होंने इतना ही कहा कि भारत संविधान के हिसाब से चलता है। संविधान सबके लिए एक जैसा है। यानी कमलनाथ ने मुलाकात जरूर की है, मगर महंत धीरेंद्र शास्त्री के लक्ष्य पर सहमति नहीं दी है।