जी भाईसाहब जी: क्या हरदा के असली दोषियों पर चलेगा मोहन का सुदर्शन
MP Politics: अवैध पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट मामले में परते धीरे-धीरे खुल रही हैं। यह प्राकृतिक हादसा नहीं है, सरकार के संरक्षण में विकसित हुए अपराध का परिणाम है। अधिकारियों को लापरवाही के लिए हटा रहे मुख्यमंत्री मोहन यादव क्या इस हादसे के असली दोषियों पर कार्रवाई करेंगे?

हरदा पटाखा फैक्ट्री में लापरवाही के विस्फोट ने सत्ता, अफसरों और माफिया के गठजोड़ को फिर उजागर कर दिया है। यह एक अकेला मामला नहीं है जहां प्रशासनिक लापरवाही और सत्ता के गठजोड़ के कारण निर्दोषा मासूमों की जानें गई हैं। पेटलावद, दमोह, बालाघाट फिर हरदा तक सूची बड़ी है। अभी पटाखा फेक्ट्री मालिकों की गिरफ्तारी हो चुकी है। लेकिन बात इतनी नहीं है। यह प्राकृतिक हादसा नहीं है, सरकार के संरक्षण में विकसित हुए अपराध का परिणाम है। अधिकारियों को लापरवाही के लिए हटा रहे मुख्यमंत्री मोहन यादव क्या इस हादसे के असली दोषियों पर कार्रवाई करेंगे?
अवैध पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट मामले में परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं। इस अवैध फैक्ट्री का दायरा ढ़ाई एकड़ में फैला हुआ था। आसपास बड़ी संख्या में लोगों के निवास के बाद भी फैक्ट्री चलाने की अनुमति दी गई। इस फैक्ट्री में दो साल पहले भी एक हादसा हुआ था। उसमें भी तीन लोगों की मौत हुई थी। स्थानीय लोगों ने फैक्ट्री को लेकर चार-पांच बार कलेक्टर से भी शिकायत की थी। लेकिन प्रशासन ने उनकी शिकायतों को नजरअंदाज किया। उसी का नतीजा है कि एक बार फिर से बड़ा हादसा हो गया है।
कांग्रेस का आरोप है कि फैक्ट्री मालिक राजू अग्रवाल सजायाफ्ता है। उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती थी। अनुमति के मामले पर प्रशासनिक अधिकारी ही आपस में भिड़ गए हैं। कुछ समय पहले हरदा जिला प्रशासन ने इस फैक्ट्री को अनफिट बताकर सील कर दिया था। बाद में होशंगाबाद संभाग के तत्कालीन कमिश्नर मालसिंह भायडि़या ने लाइसेंस को बहाल कर दिया था। अब अधिकारी एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।
सरकार ने राहत कार्य किया। पुलिस ने फैक्ट्र संचालक को पकड़ लिया लेकिन सवाल इस फौरी कार्रवाई से आगे के हैं। झाबुआ जिले के पेटलावद में 12 सितंबर 2015 को जिलेटिन छड़ों के गोदाम में विस्फोट से 79 लोगों की मौत हो गई थी। बालाघाट जिला मुख्यालय से करीब 7 किलोमीटर दूर ग्राम खैरी में 7 जून 2017 को अवैध पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट हुआ था। इस तेज धमाके के बाद 26 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। 31 अक्टूबर 23 को दमोह में अवैध पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट से 6 लोगों की मौत हुई। ये सारे हादसे हरदा की तरह ही सत्ता संरक्षण में चल रही अवैध गतिविधियों का नतीजा है।
तात्कालिक रूप से अधिकारियों को हटा देना घटना से ध्यान हटाने का कार्य हो सकता है लेकिन उन नेताओं का क्या जिनके दबाव में अफसर काम करते हैं और अवैध कारोबारी मौज? अफसरों को गलती पर हटा कर सख्त प्रशासन का संदेश दे रहे मुख्यमंत्री मोहन यादव क्या नेताओं की सिफारिशों पर अवैध कारोबार को मिल रहे संरक्षण पर कार्रवाई कर पाएंगे? इस सवाल का जवाब ही तय करेगा कि भविष्य में ऐसे हादसे रूकेंगे या नहीं।
शिवराज की दिल्ली दौड़, दिल्ली के दिल में क्या
जब मध्यप्रदेश में बीजेपी भारी बहुमत से सत्ता में वापस आई और मुख्यमंत्री के नाम पर संशय था तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ-साफ कहा था कि वे दिल्ली नहीं जाएंगे। उनका यह कहना प्रतीक रूप में था। यानी न तो वे केंद्र की राजनीति में रूचि रखते हैं और न ही मध्य प्रदेश में पद पाने के लिए दिल्ली दरबार में हाजरी लगाएंगे। सार्वजनिक रूप से दिल्ली न जोन के इरादे जताने वाले शिवराज सिंह चौहान अब बार-बार दिल्ली जा रहे हैं। लोग अंदाजा लगा रहे हैं कि शिवराज की दिल्ली दौड़ के मायने क्या हैं और आखिर उनके दिल में क्या है?
वैसे तो पार्टी ने अभी अधिकृत रूप से शिवराज को कोई जिम्मेदारी दी नहीं है लेकिन तमिलनाडु के उनके दौरों से पता चल गया है कि उन्हें दक्षिण में भेज दिया गया है। इस तरह मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए राजनीतिक मैदान खाली करवा दिया गया है। लंबी लाइन खींचने की कोशिश कर रहे मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शिवराज सरकार में ताकतवर रहे नेताओं और अफसरों को किनारे कर दिया है। यह किनारे किया जाना अफसरों को ही नहीं खुद शिवराज को भी नागवार गुजरा है। इसबार कि शिवराज की दिल्ली यात्रा से तो यही संदेश मिला।
यह संयाग नहीं है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद ही शिवराज के पसंदीदा अफसर आईएएस मनीष रस्तोगी को ताकतवर बना दिया गया। सामान्य प्रशासन विभाग में प्रमुख सचिव बनाए गए मनीष रस्तोगी को पहले एक माह खाली बैठाया गया था फिर जेल विभाग जैसे कमतर माने जाने वाले विभाग में भेज दिया गया था।
माना जा रहा है कि शिवराज ने दिल्ली यात्रा के दौरान यह शिकायत दर्ज करवाई थी कि उनके साथ के लोगों पर बदले की भावना जैसी कार्रवाई हो रही है। इसके बाद ही दिल्ली से मिले संकेत को पूरा करते हुए मोहन सरकार ने पांच दिन में ही आईएएस मनीष रस्तोगी की पोस्टिंग बदल दी। इस आकलन को देखते हुए शिवराज के करीबी होने के कारण साइड लाइन कर दिए गए लोगों में भी उम्मीद जाग गई है।
मिस्टर गायब जैसे मोहन के मंत्री
सरकार बने दो महीने हो गए है। अब तक यह अनुभव हुआ है कि शिवराज सिंह चौहान के समय भी सरकार ‘वन मेन आर्मी’ की तरह चल रही थी तो नए मुख्यमंत्री मोहन यादव भी हर तरफ खुद ही बल्लेबाजी कर रहे हैं। कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता को छोड़ दें तो अधिकांश मंत्री ‘मिस्टर गायब’ की तरह हैं। वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे। कोई मंत्री मीडिया से मुखातिब हुआ भी है तो सवालों में उलझ गया है।
काम करने के लिए मंत्रियों को सहायक स्टाफ चाहिए लेकिन मंत्रियों की पसंद पर मुख्यमंत्री का इंकार है। मोहन यादव ने अपने कैबिनेट में शामिल 15 मंत्रियों को की सिफारिशी नोटशीट को रिजेक्ट कर उन्हें झटका दिया है। तय किया गया है कि पहले अफसरों के काम की पड़ताल होगी फिर नियुक्ति। ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के ओएसडी के रूप में आरोपों से घिरे अफसर की नियुक्ति के बाद यह कदम उठाया गया है।
इसबीच सरकार ने पहली बार मंत्री बने विधायकों को काम की सीख देने के लिए ओरिएंटेशन प्रोग्राम आयोजित किया था। काम की ट्रेनिंग तो हो गई लेकिन काम के लिए स्टाफ नहीं है। मंत्रियों के मन से कुहासा है आखिर वे करें तो क्या? एक तरफ तो वे ‘सत्ता’ में वैसे जम नहीं पा रहे हैं दूसरी तरफ पार्टी ने लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी इन्हीं मंत्रियों को सौंपी है।
कमलनाथ हर बयान पर कयासों का घेरा
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ बीते कुछ समय से अलग-अलग कारणों से चर्चा में है। उनका हर निर्णय, बयान और एक्शन नए कयास को जन्म देता है। पिछले सप्ताह जब कमलनाथ छिंदवाड़ा पहुंचे तो उनका बयान सुर्खियों में आ गया। उनसे आचार्य प्रमोद कृष्णन के बीजेपी में जाने पर सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा कि हर कोई स्वतंत्र है। कोई पार्टी से बंधा नहीं है। हालांकि, बीजेपी में शामिल होने की अटकलों को उन्होंने अफवाह बताया मगर हर कोई स्वतंत्र है जैसे बयान को ऐसे ही अर्थ में देखा गया।
अपने अलग अंदाज के कारण हमेशा बीजेपी नेताओं के निशाने पर रहे कमलनाथ को निर्णयों के कारण भी घेरा गया। जब सांसद बेटे नकुलनाथ ने छिंदवाड़ा के विधानसभा प्रत्याशियो की घोषणा की थी तक बीजेपी ने आरोप लगाया है कि कमलनाथ ने स्वयं को पार्टी से ऊपर रख कर प्रत्याशियों की अलग घोषणा अपने बेटे से करवाई है। उनका यह कदम लोकसभा चुनाव में भी जारी है। जहां खबरें हैं कि कांग्रेस भी अपने बड़े नेताओं को लोकसभा चुनाव में उतार सकती है वहीं कमलनाथ के पुत्र सांसद नकुलनाथ ने घोषणा कर दी है कि छिंदवाड़ा से वे ही चुनाव लड़ेंगे। इससे बीजेपी को आरोप लगाने का मौका मिल गया कि कमलनाथ अपनी पार्टी अलग चला रहे हैं।
दूसरी तरफ, कमलनाथ द्वारा चार करोड़ 30 लाख राम नाम पत्रकों का पूजन कर अयोध्या के लिए रवाना करना भी चर्चा में रहा। कमलनाथ के निवासस्थान शिकारपुर में कांग्रेस और मारुति नंदन सेवा समिति ने राम नाम पत्रक लेखन किया है। इसे लेकर भी कहा गया कि कमलनाथ पार्टी लाइन से अलग काम कर रहे हैं। बहरहाल, मुद्दा कुछ भी हो, कमलनाथ फिर कयासों और आरोपों से घिरे हुए हैं।