धनतेरस पर बरसे धन, लक्ष्मी कुबेर की पूजा से आएगी समृद्धि

धनतेरस पर सोना, चांदी या बर्तन की खरीदारी करने का है विधान, दक्षिण दिशा में यम के नाम का एक दीपक जलाने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता

Updated: Nov 02, 2021, 07:36 AM IST

Photo courtesy: Naidunia
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पांच दिवसीय दीपोत्सव की शुरुआत हो चुकी है, पहले दिन धनतेरस का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन शाम के समय प्रदोष काल में भगवान सूर्य, भगवान गणेश, भगवान धन्वंतरि के साथ कुबेर और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। इस धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग होने से तीन गुना फायदा मिलेगा। सभी स्थापित देवताओं की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार पूजा करें। आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा, हल्दी, चंदन, फूल, रोली, अक्षत से करें। खील बताशे चढ़ाएं, खीर का भोग लगाएं। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं। एक दीपक यम देवता के नाम का जलाएं। अकाल मृत्यु से बचने और अच्छी सेहत की कामना से घर के बाहर यमराज के लिए दक्षिण दिशा में एक बत्ती का दीपक जलाया जाता है।

पुराणों में कहा गया है कि धनतेरस के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि हाथ में सोने का कलश लेकर प्रकट हुए। यह कलश अमृत से भरा हुआ था। भगवान धनवंतरि के दूसरे हाथ में औषधियां थीं उन्होंने आयुर्वेद का ज्ञान दिया था। यही वजह है कि इस दिन आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की पूजा का विधान है।

धनतेरस के शुभ मौके पर खरीदारी का विशेष महत्व है। इस दिन वाहन, अचल संपत्ति में निवेश करना भी शुभ होता है। नई शुरुआत के लिए पूरे दिन शुभ मुहूर्त होता है।धनतेरस पर्व पर खरीदारी का अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इसदिन किसी भी समय पर खरीददारी की जा सकती है। जानकारों की मानना है कि धनतेरस पर चंद्रमा अपने ही नक्षत्र में है, वहीं बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही है। जिसकी वजह से सुख-समृद्धि और शुभ फल देने वाली धनतेरस रहेगी। इस शुभ दिन सोना-चांदी,तांबा, पीतल से बना सामान या बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। ।

धन्वंतरि के हाथ में सोने का कलश था इसलिए इस दिन बर्तन और सोना खरीदने की परंपरा शुरू हुई। बाद में आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए चांदी और अन्य धातुओं की खरीदी होने लगी। तब से परिवार में समृद्धि बनाए रखने की कामना से इस दिन चांदी के सिक्के, गणेश व लक्ष्मी जी की मूर्तियां और ज्वेलरी की खरीदारी की जाती है। साथ ही पीतल, कांसे, स्टील व तांबे के बर्तन भी खरीदने की परंपरा है।