शरदोत्फुल्ल मल्लिका:

चन्द्रमा शरद पूर्णिमा को ही सम्पूर्ण कलाओं के साथ उदय होता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में पायस बनाकर खुले आकाश में चन्द्रमा के नीचे रखने से पायस रात्रि में चन्द्र किरण से सिंचित होने पर ओषधि समान हो जाता है, इससे बहुत से रोगों की निवृत्ति हो जाती है

Publish: Oct 30, 2020, 12:18 AM IST

शरदोत्फुल्ल मल्लिका:
आज शरद पूर्णिमा का परम पावन अवसर है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा की किरणों से अमृत स्राव होता है। चन्द्रमा में अमृत रहता है, लेकिन जब वह अपनी सम्पूर्ण कलाओं के साथ आकाश मंडल में उदय होता है तब अमृत स्राव होता है। परिणाम स्वरूप जितनी भी औषधियां हैं सबमें अमृत का संचार हो जाता है।
सोमो अस्माकं ब्राह्मणानां राजा
समस्त स्वास्थ्य प्रदान करने वाली औषधियों में शक्ति चन्द्रमा से ही मिलती है। वह चन्द्रमा शरद पूर्णिमा को ही सम्पूर्ण कलाओं के साथ उदय होता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा की रात्रि में पायस बनाकर खुले आकाश में चन्द्रमा के नीचे रख दिया जाय और वह पायस रात्रि में चन्द्र किरण से सिंचित हो जाय तो उस पायस को ग्रहण करने से बहुत से रोगों की निवृत्ति हो जाती है। इसीलिए शरद पूर्णिमा के बाद ही औषधियां उखाड़ी जाती हैं। इसके बाद ही उनमें गुणवत्ता आती है। बहुत से लोग तो शरद पूर्णिमा के बाद ही वर्षारम्भ (साल की शुरुआत) मानते हैं। इसके साथ ही नवरात्रि में जो भगवती की आराधना आरंभ होती है  उसकी पूर्णाहुति शरद पूर्णिमा को ही होती है।
प्रतिपन्मुख्य राकान्त तिथि मंडल पूजिता
ये पराम्बा भगवती का एक नाम है। इसका अर्थ ये है कि प्रतिपदा से पूर्णिमा तिथि तक पूजित। अब यहां प्रश्न ये उठता है कि प्रतिपदा से पूर्णिमा तक की तिथि तो प्रति माह आती है, फिर शरद की पूर्णिमा ही क्यूं? इसका समाधान ये है कि "मुख्य राका" अर्थात् मुख्य पूर्णिमा। यह पूर्णिमा मुख्य इसलिए मानी गई है कि सत्ताइस नक्षत्रों में पहली नक्षत्र अश्विनी ही है और अश्विनी के कारण ही यह आश्विन मास कहलाता है। आश्विन पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा है, इसलिए यह मुख्य राका (पूर्णिमा) है। इसलिए भगवती राजराजेश्वरी की प्रिय होने के कारण भी शरद पूर्णिमा का महत्व विशेष है। शरद पूर्णिमा के वैशिष्ट्य का एक और भी महत्वपूर्ण कारण है। इसी मंगलमयी रात्रि में भगवान मदन मोहन श्यामसुन्दर ने व्रज सीमन्तिनी जनों के साथ रासोत्सव मनाया।
भगवानSपि था रात्रि:
शरदोत्फुल्ल मल्लिका:
वीक्ष्यरंतुं मनश्चक्रे,
योगमाया मुपाश्रित:।।
रास का अर्थ है-
रसानां समूहो रास:

सम्पूर्ण सृष्टि के रस जहां एकत्रित हो जाएं उसे रास कहते हैं। असल में जिनके साथ ये लीला हो रही है वे परमात्मा रस स्वरूप हैं।
 रसो वै स:
अतः रास का शुभ दिन होने कारण भी शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है।
आज के दिन रात्रि में चन्द्र किरण से सिंचित पायस ग्रहण करना चाहिए।