जीव का उत्तम पड़ाव मानव शरीर की उपलब्धि

बुद्धिमान मनुष्य अपने जीवन के चरम लक्ष्य को सामने रखकर मार्ग के प्रलोभन छोड़कर लक्ष्य तक पहुंचने में सफल हो जाता है, हम सदा अपने लक्ष्य को सामने रखें और देखते रहें कि हम किधर जा रहे हैं

Publish: Aug 11, 2020, 07:59 PM IST

जो वस्तु अनेकों उपकरणों से निर्मित होती है, वह अपने से विलक्षण किसी एक के लिए होती है। जैसे शय्या और भवन अनेकों उपकरणों से बनने के कारण संघत कहलाते हैं। यह किसी शयन करने वाले या भवन के स्वामी के लिए होते हैं।

संघतस्य परार्थत्वात्, शय्या-प्रासादादिवत्

यह एक सिद्धांत है। इसके अनुसार शरीर इंद्रिय, मन, बुद्धि, और अहंकार इनका संघात ही शरीर है। यह सब जड़ हैं और किसी चेतन के लिए हैं। वह चेतन अनादि, अनंत है। उसके लिए अगणित शरीर निर्मित हुए और काल पाकर बिखर गए। उस श्रृंखला में मानव शरीर की उपलब्धि जीव का उत्तम पड़ाव है। जो जन्म से लेकर मृत्यु तक रहता है। इस अवधि में चेतना आत्मा जो ईश्वर का अंश है, श्रोत्र,चक्षु,जिह्वा, घ्राण और त्वक्  इन पांचो और छठवें मन के द्वारा विषयों का सेवन करता है और जब इस शरीर को छोड़ता है तो जैसे पवन बगीचे की सुगंध लेकर चला जाता है इसी प्रकार इन को लेकर जीव स्थूल शरीर से निकल जाता है। निकलकर जैसा कर्म और उपासना होती है उसके अनुसार उपयुक्त भोगों के लिए अन्य शरीर ग्रहण करता है।

इस प्रकार विचार करके देखा जाए तो जीवात्मा का यह पड़ाव काल से कालांतर की यात्रा है, जो परलोक गमन देश से देशांतर की यात्रा का हेतु बनती है।

एक दृष्टांत है-

कोई एक राजा था। उसने बहुत बड़ी भूमि को दीवार से घेरकर उसके भीतर एक दिव्य बगीचे का निर्माण किया। बगीचे के भीतर पानी की नहरें, सरसी- सरोवर, कमल- कमलिनी, रंग- बिरंगी मछलियां, सुंदर पक्षी, पुष्पित- पल्लवित वृक्ष, लता- निकुंज, मनोरम चौपायत और उसमें रहने के लिए सुंदर आवास स्थान बनवाए। राजा ने दूर-दूर तक यह घोषणा करवा दी कि कोई मुझे अमुक तिथि में सवेरे से लेकर शाम तक इस बगीचे के भीतर ढूंढ लेगा तो मैं उसको इस बगीचे के सहित पूरा राज्य एवं अपनी एकमात्र कन्या प्रदान कर दूंगा।

राजा की घोषणा अनुसार घोषित तिथि के पहले ही सहस्रों व्यक्ति उस बगीचे के दरवाजे पर खड़े हो गए। दूसरे दिन जैसे ही फाटक खुला लोग राजा को ढूंढकर राज्य पाने के लोभ में बगीचे में प्रविष्ट हुए पर वह बगीचा इतना मनोरम था कि जहां जिसकी दृष्टि पड़ी वह वहीं रह गया। कोई कोयल की मधुर कुहू-कुहू सुनने लगा, कोई रंग बिरंगी मछलियां देखने लगा, कोई फूलों की सुगंध लेने लगा, कोई फलों का स्वाद लेने लगा, और कोई निकुंज में विश्राम करने लगा, जब किसी ने स्मरण दिलाया कि राजा को खोजना है तो लोग कहने लगे कि अभी तो पूरा दिन पड़ा हुआ है। अभी आनंद ले लें राजा को बाद में खोज लेंगे। उनमें से एक व्यक्ति ऐसा था, जिसने सोचा कि पहले राजा को खोजना चाहिए फिर तो बगीचा अपना ही होगा और वह राजा को खोजने में सफल हो गया। राजा की घोषणा के अनुसार उसका राजकन्या से विवाह हो गया और वह पूरे राज्य का राजा हो गया।

इसका अर्थ है- परमात्मा राजा है, संसार उसका बगीचा है, मुक्ति राजकन्या है, सवेरा जन्म और मृत्यु सांझ है। जीव इस बगीचे में आते हैं और अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को भूल कर बगीचे की शोभा निहारने में रम जाते हैं। कोई एक बुद्धिमान पुरुष अपने जीवन के चरम लक्ष्य को सामने रखकर बगीचे का प्रलोभन छोड़कर लक्ष्य तक पहुंचने में सफल हो जाता है। इससे हमें शिक्षा मिलती है कि हम सदा अपने लक्ष्य को सामने रखें और देखते रहें कि हम किधर जा रहे हैं। उपनिषदों में लिखा है-

आराममस्य पश्यन्ति न तं, पश्यन्ति केचन

अर्थात् उसके बगीचे को तो लोग देखते हैं किंतु उसकी ओर नहीं देखते। अपने लक्ष्य की ओर हम कितने आगे जा सकें इसका ज्ञान अपने अंतः करण का निरीक्षण करके प्राप्त किया जा सकता है।