सुख शांति चाहते हैं तो अपनी सृष्टि सुधारिए

हमारा मन राग और द्वेष से प्रेरित होकर ही यहां-वहां भटकता है, हमारा पुरुषार्थ इसी में है कि मन और इंद्रियां हमारे वश में रहे, उच्छ्रंखल न होने पाएं

Publish: Jul 29, 2020, 12:33 PM IST

अध्यात्म शास्त्रों में ईश्वर सृष्टि और जीव सृष्टि भेद से दो सृष्टि बताई गई है। उनमें जीव के सुख दु:ख का कारण उसकी अपनी सृष्टि है।

इस विषय में एक दृष्टांत है किसी एक ग्राम में दो व्यक्ति व्यापार करके धनोपार्जन करने निकले। दोनों ने परिश्रम करके व्यापार किया परंतु एक व्यक्ति बीच में ही रुग्ण होकर मर गया। और दूसरे ने धनोपार्जन में सफलता प्राप्त की और स्वस्थ भी रहा। उसने किसी संदेश वाहक से अपने घर में अपनी कुशलता और शीघ्र लौटने का तथा अपने साथी की मृत्यु का समाचार उसके घर में सुनाने के लिए कह दिया। पर वह संदेशवाहक दुष्ट था। उसने जिस घर का प्राणी सकुशल था उसके घर में उसकी मृत्यु का और जिसकी मृत्यु हो गई थी उसके घर उसके सकुशल लौटने का उल्टा संदेश सुना दिया। परिणाम यह हुआ कि जिस घर का व्यक्ति जीवित था उस घर में रोना मच गया, और जिस घर का प्राणी मर गया था उसके घर में हर्ष छा गया।

इसका कारण यह था कि यद्यपि ईश्वर की सृष्टि में वह व्यक्ति जीवित था पर जीव की सृष्टि में मर गया इसलिए वहां रोना मच गया और ईश्वर की सृष्टि में दूसरे के मरने पर भी जीव की सृष्टि में वह जीवित था इसलिए वहां हर्ष छा गया। इससे यह निष्कर्ष निकला कि यदि आप सुख शांति चाहते हैं तो अपनी सृष्टि सुधारिए।

सुखित्व और दुखित्व ही संसार का स्वरूप माना जाता है।अपने से भिन्न प्राणी और पदार्थ मैं अहंता और ममता सुख-दुख के कारण बनते हैं। जिनमें अहंता (मैं) और ममता(मेरा) होती है उससे राग और उन से विपरीत द्वेष होता है। हमारा मन राग और द्वेष से प्रेरित होकर ही यहां-वहां भटकता है। इंद्रियां भी अनियंत्रित होने पर मन के भटकने में सहायक होती है। हमारा पुरुषार्थ इसी में है कि मन और इंद्रियां हमारे वश में रहे, उच्छ्रंखल न होने पाएं।